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क्या रेल प्रशासन अपने स्टेशनोंमें यात्रिओंके किराए में “यूजर फि” जोड़ने जा रही है?

जी, जी वहीं, जो आपने पीछे कुछ चर्चाओंमें सुना था। प्रत्येक जंक्शन स्टेशनोंमें, यात्रिओंको जो सुख-सुविधाएं रेल प्रशासन उपलब्ध कराती चली गयी, अब उनका “उपयोगकर्ता शुल्क” चुकाना पड़ सकता है। रेल सबन्धित जानकारी प्रकाशित करनेवाली वेबसाइट एवं ग्रुप्स पर ऐसी चर्चा जोरशोर से चल रही है।

यह “यूजर फि” नामक बोतल का भूत यात्रिओंके सर पर पिछले वर्ष से ही मंडरा रहा है। बीते वर्ष रेल प्रशासन ने यह प्रस्ताव बनाया था। भारतीय रेलवे में तकरीबन 7,000 रेलवे स्टेशन है, जिनमे से 10 से 15 % स्टेशनोंपर यह शुल्क लगाने का प्रस्ताव विचाराधीन है। जहाँसे यात्री गाड़ी में सवार होंगा उस स्टेशन पर, द्वितीय श्रेणी अनारक्षित यात्री ₹10/-, ग़ैरवातानुकूलित वर्ग ₹25/- और वातानुकूलित वर्ग ₹50/- यह शुल्क लगेगा और उतरने वाले स्टेशनोंके के लिए उपरोक्त शुल्क से आधा शुल्क देय रहेगा। यह शुल्क सिस्टम में स्टेशनोंके अनुसार फीड किया रहेगा। जैसे टिकट बनेगा, शुल्क जोड़ लिया जाएगा और उक्तानुसार किराया लिया जाएगा।

अब आप सोच रहे होंगे, जहां उपनगरीय गाड़ियाँ चलती है, लाखों यात्री रोजाना जाना आना करते है, मसलन मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगर, वहाँ उपनगरीय गाड़ियोंसे यात्रा करने मासिक पासधारकोंके लिए किस तरह शुल्क लिया जायेगा? जी, उन्हें भी बख़्शा नही है, उन्हें प्रत्येक फेरे के लिए ₹3/- शुल्क जोड़ने का प्रस्ताव है। अर्थात द्वितीय श्रेणी मासिक पास में ₹90/- का इज़ाफ़ा हुआ तय है। एक बात और जो प्लेटफार्म टिकट ₹10/- है, वह आगंतुक शुल्क है, जो जारी रहेगा। उपरोक्त उपयोगकर्ता शुल्क में प्रत्येक 5 वर्षोंसे समिक्षा किए जाने का भी प्रस्ताव है। पिछले वर्ष तो यह प्रस्ताव रेल मंत्रालय से मान्य नही हो पाया, मगर फिर से मान्यता प्राप्ति के लिए विचाराधीन है।

मित्रों, रेल प्रशासन का कहना है, वे यात्रिओंको हवाई अड्डे के जैसी यात्री सुविधाएं प्रदान करते है, यह उपयोगकर्ता शुल्क वसूलने के पीछे की उनकी दलील हो सकती है। साफ-सुथरे, मार्बल, कोटा, ग्रेनाइट स्टोन से सजे प्लेटफार्म, एस्कलेटर और लिफ्ट, बैटरी चलित वाहन, पीने के लिए शीतल जल, पंखे, शानदार सर्क्युलेटिंग एरिया, सुरक्षित वातावरण इत्यादि बदलाव को तो यात्रिओंने निश्चित ही सराहा है, मगर सभी रेलवे स्टेशन तो ऐसे नही है न? आज भी रेलवे स्टेशनोंपर आवारा और गैरकानूनी लोग मिल ही जायेंगे। अनाधिकृत विक्रेता, बिनाटिकट यात्री, मांगनेवाले, तृतीयपंथी स्टेशनोंपर, गाड़ियोंमे यथावत यात्रिओंको परेशान करते दिखाई देते है।

एक बात तो तय है, यदि रेल प्रशासन ऐसा कोई शुल्क यात्रिओंपर लादने की तैयारी कर रही है तो यात्रिओंकी ओर से भी शिकायतोंमें कोई कोताही नही बरती जाएंगी। आज यात्री मात्र ट्विटर पर शिकायत करता है, उपयोगकर्ता शुल्क चुकाने के बाद शिकायतोंका स्वरूप दावोमे बदल सकता है, क्या रेल प्रशासन इसके लिए तैयार है?

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