एक खबर सोशल मीडिया मे आई है, की रेल प्रशासन अब नवनिर्मित वातानुकूल थ्री टियर इकोनोमी कोच वाली पूरी गाड़ी ही शुरू करने का नियोजन कर रहा है। दरअसल अब तक यूँ हो रहा था की हर एक गाड़ी मे एक, दो कोच जोड़े जा रहे थे और यात्रीओं मे इन डिब्बों मे यात्रा करने की बड़ी ही उत्सुकता रहती है। रेल प्रशासन, अब इसी उत्सुकता को ‘फूल रैक’ की ट्रेन चलवाकर कैश करने का प्रयत्न करने जा रही है।

यह तो हो गई जानकारी वाली बात, मगर सोशल मीडिया बड़ा ही नटखट और चुलबुला रहता है। अभी तो इस गाड़ी के नियोजन की खबरें ही चल रही है पर सोशल मीडिया में एक अलग ही चर्चा ने जोर पकड़ लिया। भारतीय रेल्वे अपने क्षेत्र मे कई सम्पूर्ण वातानुकूलित गाडियाँ चलाता है। राजधानी, वन्दे भारत, शताब्दी, गतिमान, हमसफ़र, गरीबरथ, कुछ वातानुकूलित दुरांतों ऐसी पूर्ण वातानुकूलित गाड़िया है। जिसमे भी केवल राजधानी, हमसफ़र गाडियों मे ही शयिका रहती है। वन्दे भारत, शताब्दी, गतिमान मे तो केवल बैठक व्यवस्था ही है और कुछ दुरांतों और गरीब रथ मिक्स्ड याने द्वितीय श्रेणी स्लीपर, द्वितीय श्रेणी और गरीब रथ ने सीटींग आदि श्रेणियाँ रहती है। यदि वातानुकूलित थ्री टियर इकोनोमी कोच की यह गाड़ी चली तो यह हमसफ़र की तरह पूर्णतय: वातानुकूलित 3 टियर स्लीपर डिब्बों से युक्त रहेगी और फिर इसका नाम क्या रखा जाएगा? सोशल मीडिया इसमें जुट गया है।
अब सोशल मीडिया मे कोई इसे गरीब रथ की तर्ज पर “निर्धन रथ ” कह रहा है तो कोई ” दिन दयालु सफर” कह रहा है। अलग अलग विचार आ रहे है। चूंकि इन वातानुकूल थ्री टियर इकोनोमी कोच मे नियमित वातानुकूल थ्री टियर श्रेणी से 8% कम किराया लगता है और इसी वजह से रेल प्रशासन ने इस डिब्बे को वातानुकूल इकोनोमी यह नाम दिया है। यह जो नाम निकल कर आ रहे है, यह उसी इकोनोमी नाम पर तंज कसे जा रहे है। क्योंकी जो यात्री वातानुकूल कोच मे पूरा किराया देकर यात्रा कर सकता है उसके लिए 8% किराया कम होना यह कोई आकर्षित करने वाली बात नहीं है। वहीं गरीब रथ के किरायों से यह किराये बहुत ज्यादा है तो गरीब रथ के किराये से आकर्षित हुए यात्री भी इस श्रेणी मे यात्रा करने के लिए आकर्षित नहीं हो पाएंगे।

खैर, यात्रीओंको आकर्षित करने का कोई उद्देश्य भी रेल प्रशासन के सामने नहीं होगा उन्हे तो शायद सभी लंबी दूरी की गाड़ियों मे सारे गैर वातानुकूलित कोचेस को हटाकर सम्पूर्ण वातानुकूलित गाड़ी चलवाना यह भविष्य की संकल्पना हो सकती है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। देखिए, रेल गाड़ियों की गति अब 130 kmph हो चली है और आगे 150/180 की भी चालन क्षमता को जोखा जा रहा है। ऐसे मे गाड़ी का सम्पूर्ण वातानुकूलित होना अति आवश्यक हो जाता है, ताकि रेल गाड़ी की गति मे हवा का अवरोध कम रहे।
फिलहाल तो बाते नियोजन की ही हो रही है मगर जल्द ही यह गाड़ी पटरी पर आने की संभावना भी है। जिस तरह सोशल मीडिया मे गाड़ी के नाम पर चर्चा चल रही है, आपके भी जहन मे कोई न कोई नाम उभर कर आया होगा, आप उसे हमारे साथ जरूर शेयर कर सकते है। वैसे हमने इस गाड़ी का नाम ” संचयनी ” सोचा है। संचयनी याने बचत। बचत समय की और थोड़ी सी पैसों की भी। क्या कहते हो!