“सब चलता है, देख लेंगे, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा?” प्रत्येक नियम और कायदे के लिए हम भारतीय लोगों का यह रटा रटाया उत्तर है। किसी भी विषय मे जुगाड़ करना हमे बखूबी आता है।
मित्रों, हम किसी बड़े नियम या कानून की नही अपितु सर्वसाधारण रेलवे के नियमोंकी ही बात यहाँपर कर रहे है। बड़ी धाराएं वगैरह देखना, हमारी चर्चा का विषय नही है, कृपया अन्यथा न लेवे। हाँ तो रेलवे के जो भी छोटे छोटे नियम बने है, उसे किस तरह झुकाकर, मोड़कर यात्री अपना काम चला रहे है इस पर बात करते है।
महाराष्ट्र राज्य में या यूं कहिए मध्य रेलवे CR पर सद्य स्थिति में द्वितीय श्रेणी टिकट बन्द है। इन दिनों यात्री गाड़ियोंमे दीपावली और छुट्टियोंकी भीड़ बराबर बढ़ती चली जा रही है। ऐसे में कन्फर्म आरक्षणका मिलना बड़ी टेढ़ी खीर है, चाहे आप महीनों पहले से टिकट बुक कर के रख लीजिए या तत्काल बुकिंग कराइए, टिकट बुकिंग साईट की स्क्रीन पर प्रतिक्षासूची, नो रूम या नॉट अवेलेबल दिखाई देना सहज हो गया है। इसके बावजूद किसी को अकस्मात यात्रा करना पड़े, यदि निहायती जरूरी हो तो यात्री बेचारा क्या करें?
आजकल इस संक्रमण निर्बन्धोंके दौर में, आम यात्री एक तरीका अपनाते हुए दिख रहे है। जहां से रेल यात्रा प्रारम्भ करनी हो, उस स्टेशन पर जाकर, टिकट खिड़की से प्लेटफार्म टिकट लेकर गाड़ी में चढ़ जाते है और अपनी यात्रा शुरू कर देते है। अब शॉर्ट डिस्टेन्स हो तो बिना किसी पूछ परख वह यात्रा पूरी भी हो जाती है, मगर लम्बी दूरी की यात्रा के लिए वह चल टिकट निरीक्षक से बातचीत कर, अपना दुखड़ा सुनाकर कुछ “एडजस्ट” में यात्रा करते चले जाते है। हक़ीकत में नियम यह है, की आपकी यात्रा शुरू करने से पहले ही प्लेटफार्म टिकट लेकर टिकट निरीक्षक को अपनी स्थिति बयान करनी है और उसकी अनुमति लेकर ही यात्रा शुरू करनी है। इसमें कायदेसे ₹250/- की पेनाल्टी या आपकी इच्छित रेल यात्रा का दुगुना किराया इन मे जो अधिक है वह देय रहेगा।
पर नियम में तोड़ निकालना तो हम लोगोंकी विशेषता है। चाहे वह प्रतिक्षासूची का टिकट हो या इस तरह प्लेटफार्म टिकट लेकर यात्रा की तैयारी हो। हम लोग उसे ‘टिकट निरीक्षक भी तो आखिर इन्सान ही है, क्या उसे कभी आपातकाल में कुछ जुगाड़ किया नही होगा?’ ऐसी सोच रख कर, नियमोंकी ऐसी तैसी कर, रेल यात्रा करने का भरकस प्रयत्न करते है और कूद पड़ते है अपनी रेल यात्रा के मिशन पर। भारतीय रेल में, छुट्टियोंके दौरान, सम्पूर्ण आरक्षित कोच में प्रतिक्षासूची वाले यात्रिओंकी भरमार दिखाई देना, 90 यात्री संख्या के द्वितीय श्रेणी कोच में 200/300 यात्रिओंका होना यह बहुत साधारण बात है। साथ ही TTE का कोच के पास हाजिर न रहना, रेल में सुरक्षा कर्मी का ठिकाना न होना यह भी काफी आम बात है। क्या इस तरह की बद्तर स्थितीयोंसे रेलवे के टिकट जाँच कर्मी, सुरक्षा कर्मी या अधिकारी गण वाकिफ़ नही होंगे?
जब हम नियम तोड़ने वाली गणना में होते है तो सारी बाते हमे जायज़ लगती है। वहीं जब हम भुक्तभोगी होते है तो यह सब नियमोंके विरुद्ध लगता है। तकलीफ यह है, की नियम और क़ायदे का कार्यान्वयन करने वाले के बारे में हम सकारात्मक भावना क्यों नही रखते? नियमोंके विकल्प क्यों खोजने लगते है? दरअसल यात्री भी ऐसे नियमबाह्य वर्तन की शिकायत रेल प्रशासन से करना टालते है, क्योंकि हर व्यक्ति कभीं न कभी ऐसी स्थितियोंसे गुजरा हुवा होता है (कितनी सहिष्णुता, कितना अपनापन!) और इसी अपनेपन, मेलमिलाप से फर्जीवाड़ा बढ़ता चला जाता है। इसी तरह, अवैध विक्रेता के बारे में यात्रिओंके प्रति अपार दया उमड़ आती है। उसकी रोजी-रोटी पर हम क्यों आँच लाए? देखेगा कोई अधिकारी या पुलिसवाला तो करेगा बराबर, मगर हम उस पर आपत्ति तक उठाना मुनासिब नही समझते।
मित्रों, नियम और कानून जब बनते है तब उनके पीछे आम नागरिक उसका पालन करें, सन्मान करें यह धारणा रहती है। इसके कार्यान्वयन करने वाले कर्मी और करवाने वाले पुलिस तो दूसरें पायदान पर है, लेकिन शुरुवात हम और आप से है। यह जरूरी है, की आम नागरिक नियमोंके, कानून के प्रति सजग रहे, उसका स्वयं भी पालन करें और इतरोंको भी पालन करने का आग्रह करें।