आईआरसीटीसी IRCTC यह भारतीय रेल की उप कम्पनी भारतीय शेयर बाज़ारोंमें लिस्टेड है। 14 अक्टूबर 2019 को करीबन 315-320 रुपयों में लिस्ट हुई यह कम्पनी आज करीबन 4250 रुपए कीमत पर चल रही है। बीचमे इसकी क़ीमत 6200 के ऊपर जाकर एक लाख करोड़ के मार्केट कैपिटल के पार हो गयी थी।
खैर, हमे शेयर बाजार की बातें नही करनी है मगर जो उतार – चढ़ाव इस कम्पनी के शेयरोंमें हुए है उसके पीछे मसला क्या है यह जानना है। दरअसल इन झटकोंके पीछे है, इस कम्पनी की होने वाली कमाई। आईआरसीटीसी की तगड़ी कमाई भारतीय रेलवे के इकलौते ऑनलाइन टिकिटिंग व्यवस्था में लगाई जानेवाली कन्विनियन्स फीस या यूँ कहिए सर्विस चार्ज से होती है। वैसे रेल नीर, पर्यटन गाड़ियाँ, पर्यटन पैकेज, रिटायरिंग रूम, कैटरिंग के ठेके आदि मद भी है जो आईआरसीटीसी को कमाई देते है, मगर जिनकी सर्विस चार्ज वाली कमाइसे बराबरी कतई नही हो सकती।
आईआरसीटीसी वातानुकूल टिकट पर ₹30/- और गैर-वातानुकूल टिकट पर ₹15/- सर्विस चार्ज वसूलती है। सबसे पहले मतलब 2014 से यह चार्ज ₹40/- और ₹20/- ऐसा था और रेल प्रशासन उसमे 20% हिस्सा लेती थी। कुछ अरसे बाद यह हिस्सा रेल प्रशासन ने बढाकर 50% करवा लिया। चूँकि रेलवे की बहुतांश टिकट ऑनलाइन याने आईआरसीटीसी के हिस्से जा रही थी। वर्ष 2016 की नोटबन्दी के बाद ढाई वर्षोंतक अर्थ मंत्रालय ने डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा मिलें इसलिए इस सर्विस चार्ज को पूरा ही बन्द कर दिया था। जब आईआरसीटीसी अपने सर्विस चार्ज के नुकसान का हर्जाना लेने रेल प्रशासन के पास पहुंची तो रेल प्रशासन ने उसे मांग के कुछ आधा हर्जाना देकर फिर से सर्विस चार्ज वसूली शुरू करने के लिए हरी झंडी दे दी और रेवेन्यू शेयरिंग से आज़ाद कर दिया। 2019 में गाड़ियाँ दी-ढाई महीने बन्द रही मगर जब शुरू हुई तो आईआरसीटीसी की कमाई फिर जोर शोर से चल पड़ी। यही शायद उसके शेयर बाजार में मूल्यवान होने का भी राज था।
दो दिन पहले रेल प्रशासन ने आईआरसीटीसी को सर्विस चार्ज में फिर से 50% हिस्से की मांग कर डाली और यही बात आईआरसीटीसी के निवेशकोंको नागवार गुजरी। भाई, क्यों न हो, यह तो सीधे ही आईआरसीटीसी की जेब आधी काटने की बात थी। अपने उच्चतम कीमत से शेयर धड़ाधड़ नीचे आते चला गया और फिर अचानक रेल प्रशासन ने अपनी माँगोपर पीछे मुड़ वाली स्थिति बना ली। अपनी रेवेन्यू शेयरिंग की मांग को बिल्कुल ही छोड़ दिया। शायद है, यह प्रशासन की PPP वाली संकल्पना को भी झटका देने वाली स्थिति बनने जा रही थी तो इसे रेल प्रशासन ने तुरन्त ही संवार लेना मुनासिब समझा।
तो आप भी समझ जाइए, आखिर कम्पनी के आटे-दाल का सवाल था। कमाई नही तो कुछ नही। 😊😊