पहले ही रेल प्रशासन अपने कई रेलवे स्टेशनोंसे पार्सल व्यवस्था बन्द करते चली जा रही थी। इसका कारण गाड़ियोंका स्पीड अप किया जाना यह कारण बताया जाता रहा है। रेल प्रशासन का नियम है, किसी स्टेशन पर 5 मिनट से ज्यादा का ठहराव हो तभी पार्सल विभाग अपना आदान – प्रदान कर सकती है और हाल में मुख्य जंक्शन स्टेशनोंपर भी रेल गाड़ियोंके वाणिज्यिक ठहराव 5 मिनट से ज्यादा नही दिए जाते तो छोटे स्टेशनोंकी तो बात ही क्या?
यह बात तो हम मुख्य मार्ग के मेल/एक्सप्रेस स्टॉपिंग स्टेशनोंकी बात कर रहे है मगर जो छोटे स्टेशन है, जहाँपर केवल सवारी गाड़ियाँ ही रुकती थी, उनका तो रेलवे पार्सल विभाग का नाता कब से ही कमजोर हो चुका था, न के बराबर था। बची खुची कसर इन डेमू/मेमू गाड़ियोंके रैक चलने से हो गयी। दरअसल पुराने रैक में गार्ड (अब ट्रेन मैनेजर) के डिब्बे में पार्सल, लगेज का हिस्सा होता था और छोटे स्टेशन से कभी कभार कृषि साधन, उपज का बुकिंग्ज हो जाया करता था। मगर इन रैक की जगह भारतीय रेल ने अत्याधुनिक डेमू/मेमू गाड़ियाँ चलाने का निर्णय लिया जिनमे लगेज/पार्सल के लिए कोई विशेष व्यवस्था बिल्कुल नही है।
रेल प्रशासन अब छोटे किसान, गाँव के छोटे व्यवसायी को अपनी किसी भी सेवा के लिए शहर के बड़े रेल्वे स्टेशनों या सड़क मार्ग का उपयोग करने मजबूर कर रही है। कुल मिलाकर यह समझ ले, छोटे रेलवे स्टेशन अब केवल रेल गाड़ियोंको हरी झण्डी दिखाने का ही काम करेंगे। दिनभर में 2-4 डेमू/मेमू गाड़ियाँ उनके स्टेशनोंकी शोभा बढाने और वह एक रेलवे स्टेशन है इसका एहसास दिलाने आती जाती रहेंगी।

इस संक्रमण काल के लगभग 18 महीनोंके अंतराल ने छोटे स्टेशनोंकी अर्थव्यवस्था वैसे ही मृतप्रायः कर दी। बची कसर दिनभर में, छुटपुट एक्का दुक्का चलनेवाली डेमू/मेमू गाड़ियाँ चलाने के निर्णय ने मृतप्राय स्टेशनोंके ताबूत में ठोके जानेवाली आखरी कील का काम किया है।