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रेल सम्बन्धी स्थायी समिति की सूचनाओं के अलावा यात्रीओंकी और भी अपेक्षाएं है। यात्रीओं को यह भी जानकारी चाहिए,

कल रेल आरक्षण प्रणाली पर सांसदों की रेल सम्बन्धी स्थायी समिति की रिपोर्ट पर हमारे ब्लॉग के लेख पर यात्रीओं की कई सारी प्रतिक्रियाएं आई। बहुतांश प्रतिक्रियाओं का सुर नाराजगी की तरफ जा रहा था।किसी ठोस एवं समाधानपूर्ण मांग का अभाव इस रिपोर्ट मे साफ साफ दिखाई दे रहा था। रेल आरक्षण करते वक्त यात्रीओं को धरातल पर जो परेशानीयों का सामना करना पड़ता है, उसका समाधान क्या केवल आरक्षण प्रणाली को अद्यतन करना इतनाही ही है? आरक्षण प्रणाली उच्च तकनीक और तीव्र गति वाली हो यह तो अध्यारूत है, वह तो होनाही चाहिए परंतु और भी बहुत सारे छोटे छोटे उपाय किए जा सकते है।

यात्रिओंको सिर्फ टिकटोंकी नही बल्कि कन्फर्म टिकटोंकी उपलब्धि चाहिए है। रेल प्रशासन PRS के अलावा डाकघर, IRCTC की वेबसाइट और ऍप, YTSK काउंटर्स पर आरक्षित टिकट उपलब्ध कराती है। YTSK काउंटर के सर्विस चार्ज का भी एक अलग गणित है। रेलवे समिति को कुछ और ही बता रही है और हकीकत में वसूली कुछ अलग ही हो रही है। YTSK यात्री टिकट के बारे में समिती को यह दर्शाया गया है की पर टिकट शुल्क लिया जाता है न की प्रति यात्री, जब की ऐसा नही है। निम्नलिखित YTSK टिकट और नियमावली देखी जा सकती है।

वातानुकूल वर्ग के लिए YTSK का ₹40/- प्रति यात्री शुल्क लगा टिकट
YTSK की नियमावली : सर्विस चार्ज प्रति पैसेंजर लगता है
समिति के रिपोर्ट में YTSK या बुकिंग एजेन्ट प्रति तिकिट सर्विस चार्ज लेंगे यह दर्शाया गया है।

दोनोंही परिपत्रक हाल ही के है, फिर समिति को रेल प्रशासन क्यों कर सही चार्जेस नही दिखा रही है?

रेलवे की कोटा सिस्टम :-

रेलवे की कोटा प्रणाली समझने के लिए हमे थोड़ा पीछे जाना होगा। जब PRS सिस्टम नही था और सारे आरक्षण भौतिक रूप से चलते थे तब प्रत्येक स्टेशन या यूं समझिए जंक्शन स्टेशन, ब्रांच लाइन के स्टेशन पर बहुतांश गाड़ियोंमे यात्रिओंके किए आरक्षण कोटा निर्धारित किया जाता था। वह कोटा निर्देशित स्टेशन से ही आबंटित होता था। फिर कम्प्यूटर PRS आरक्षण सिस्टम कार्यान्वित हुई तो कई स्टेशनोंके कोटे सिमट गए और लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे 2-4 स्टेशनोंके बीच में रह गए। उदाहरण के तौर पर 12627 बेंगलुरू नई दिल्ली कर्नाटक एक्सप्रेस को लीजिए। इस गाड़ी मे बंगलुरु, कलबुरगी, मनमाड और भुसावल से कोटा दिया गया है। मगर आम यात्री को यह कोटा पता नहीं होता और उसके चलते वह प्रतीक्षासूची मे अटक कर रह जाता है। यदि सभी गाड़ियोंके सामने स्टेशन कोटा पता लग सके तो यात्री पहले स्टेशन का कोटा ले कर अपने टिकट खरीद सकता है, जिससे रेल्वे का राजस्व भी बढ़ेगा और यात्रीओंको भी सुविधा मिलेगी।

रेल यात्रिओंकी यह मांग है, रेल प्रशासन सभी गाड़ियोंके कोटे स्टेशनवाईज दर्शाए। जब निजी वेबसाइटों पर यह कोटे स्टेशन से सामने दिख सकते है तो रेलवे की अधिकृत वेबसाइटों पर क्यों नही दिखाए जा सकते?

रेल द्वारा नियुक्त बुकिंग एजन्ट को किसी भी अन्य PRS पर भौतिक टिकट बुक कराने की अनुमति न दी जाए, इसके एवज में उनके स्वामित्व वाले टर्मिनल्स पर समयसीमा का बंधन हटा देना चाहिए। एक तरफ रेल प्रशासन टिकट बुक कराने एजंट नामित करता है और दूसरी और जब सबसे ज्यादा मांग होती है उन समय मे टिकट निकालने मनाही करता है। यह किस तरह की व्यवस्था है?

यह साधारण सी बात है की मांग ज्यादा और वितरण की कमी ( डिमाँड़ एण्ड सप्लाय ) यह नियम लागू होता है। आरक्षण करनेवाले प्रत्येक यात्री की फ़ोटो आइडेंटिटी को अनिवार्य किया जाए तो भी आरक्षण के गैरप्रकार कम हो सकते है। ज्यादा तर लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे कम अंतर की यात्रा करनेवाले यात्री भीड़ करते है, इसके लिए कम अंतर वाली इंटरसीटी गाड़ियोंका प्रावधान बेहतर हो सकता है। यात्रीओंकी संख्या ज्यादा है और जगह कम तो कालाबाजारी होना स्वाभाविक है। कालाबाजारी को रोकने के लिए उपाय तो किए जाते है परंतु वहीं यदि गाड़ियों मे जगह बढ़ती है तो यह भी कालाबाजारी पर अंकुश लगा सकती है।

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