Uncategorised

क्या क्लोन गाड़ियाँ चलाने की तकनीक को पाला मार गया है?

भारतीय रेल में बीते वर्ष बड़े जोरशोर से शुरू की गई ‘क्लोन’ गाड़ियोंके चलने का सिलसिला अचानक ही थम सा गया लगता है। नियमित गाड़ियाँ यात्रिओंसे खचाखच भर कर चल रही है।

यूँ तो रेल के हर कोच पर उसकी यात्री क्षमता लिखी रहती है, मगर ताज्जुब की बात यह है की यह लिखी हुई यात्री संख्या न तो सवार यात्रीओंको समझ पड़ती है और ना ही रेल अधिकारियों को। 90 यात्री संख्या के द्वितीय श्रेणी कोच में बड़े आसानी से 200 यात्री आपको यात्रा करते मिल जाएंगे। यह हाल जब है, जब यह कोच सम्पूर्ण आरक्षित व्यवस्था में चलाए जा रहे है और अनारक्षित बुकिंग बन्द है।

अब आप आसानी से समझ सकते है, की कोच पर लिखित यात्री संख्या और सवार यात्री संख्या का दूर दूर तक कोई मेल क्यों नही है। भई, जिनके आरक्षण नही है वह यात्री लोग बिना टिकट मतलब बिना अनुमति यात्रा कर रहे है। मगर यह बात रेलवे के अधिकारी, टिकट जांच दल, सुरक्षा दल इनको तो बिल्कुल दिखाई नही देता, ना ही वे इनकी कोई शिकायत सुन सकते है और ना ही उनको कुछ सलाह देते है। जी, आप सही समझे है, न देखना, न सुनना और न ही बोलना।

लम्बी दूरी की लगभग हर गाड़ी का द्वितीय श्रेणी कोच जो की पूरे गाड़ी में केवल 2 या 3 कोच ही होते है, आरम्भ के स्टेशन से ही फूल हो जाता है। जितने भी प्रतिक्षासूची के यात्री है, सब धरे के धरे रह जाते है, कन्फर्म ही नही हो पाते तो बीचवाले स्टेशन के यात्रिओंकी क्या बात करेंगे? ऐसी स्थिति में यात्री क्या करें? 100-200 की टिकट, रद्द करें तो पैसे कटेंगे अलग। यात्री उसी अवस्था मे गाड़ी में चढ़ जाता है, किसी चेकिंग कर्मी या सुरक्षा कर्मी ने पकड़ा तो माँगा गया जुर्माना देकर वहीं बैठे बैठे अपने गंतव्य तक पहुंच जाता है।

आप यकीन कर सकते है, कितनी दयनीय अवस्था है? टिकट के पूरे पैसे चुकाए, जुर्माना भी दिया फिर भी वह यात्री बिना टिकट ही। और तो और यात्रा भी कर लेगा कोच के जमीन पर बैठ कर, लेट कर या दरवाजे के पास या फिर टॉयलेट के दरवाजे के बाजुमे या बेसिन के नीचे या सामान रखने के मात्र 1 फुट के संकरे से रैक पर। यह हमारे देश के मजदूर, कामगार वर्ग के हाल है। उत्तरी भारत से बड़े शहरोंकी और जाने वाली प्रत्येक गाड़ी का यह आंखों देखा हाल है। मित्रों, बहुत बुरा हाल है, बहुत ही बुरा हाल है।

रेल प्रशासन क्या आरक्षण के इस वर्ग पर निगरानी रखना छोड़ चुका है? क्या उनको इस द्वितीय श्रेणी की बुकिंग से कोई लेनादेना नही है? क्या क्लोन गाड़ियाँ केवल वातानुकूल या शयनयान की प्रतिक्षासूची देखकर ही चलाई जाती है? बहुत गम्भीर प्रश्न है।

यह यात्रिओंका वर्ग तो इतना सहनशील है, बेचारोंकी रेल प्रशासन से बहुत मामूली सी माँग है, बस! द्वितीय श्रेणी अनारक्षित टिकटें शुरू करवा दीजिए, हम पहले की तरह हर 90 यात्री क्षमता के कोच में 200-300 यात्री भर के निकल लेंगे, कमसे कम बिना टिकट तो यात्रा नही करनी पड़ेगी। हमे हमारे हाल पर छोड़ दीजिए, हम किसी तरह अपने रोजी रोटी की जगह पहुंच जाएंगे।

देखिए, रेल प्रशासन, यह यात्री टिकट लेने के लिए तैयार है, रेलवे को पैसा देकर सन्मान से यात्रा करना चाहते है और एक यह व्यवस्था है की टिकटें ही उपलब्ध नही है। रेल विभाग को चाहिए की जब उन्होंने द्वितीय श्रेणी को आरक्षित कर ही दिया है तो उसके प्रतिक्षासूची की भी मोनिटरिंग यथावत करें और उन प्रतिक्षासूची के लोगों को अतिरिक्त कोच या अतिरिक्त गाड़ियोंकी व्यवस्था करें। अपनी ‘क्लोन’ गाड़ियोंको सिर्फ वातानुकूल या शयनयान के आधारपर ही चलाने के बजाए द्वितीय श्रेणी के प्रतिक्षासूची पर भी चलाने की व्यवस्था करें।

Photo courtesy indiarailinfo.com

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s