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रेलवे स्टेशनोंके आगे लिखे जंक्शन, टर्मिनस, रोड, सेंट्रल इनको यथार्थ रहने देना चाहिए।

भारतीय रेल की स्थापना ब्रिटिश राज में हुई थी। ब्रिटिशों को लम्बे नियोजन के लिए जाना जाता है। ऐसे में जब रेल की स्थापना की गई तो उन्होंने नियोजन में एक बात का खासा ख्याल रखा, जितने भी जिले, व्यापारी केंद्र या सरकारी कामकाज सम्बंधित शहर थे उन्हें जंक्शन या रेलवे के रखरखाव सम्बन्धी लगनेवाली बड़ी जगहोंसे 25-50 किलोमीटर दूरी पर स्थापित किया ताकी बड़े शहर की बुनियादी व्यवस्था में रेल विभाग का कोई खलल न पड़े। शहर अपने शहरीकरण और रेलवे अपने यार्डस के साथ बराबर बढ़ते चले जाए। इसके उदाहरण कई देखे जा सकते है, मसलन जलगाँव जिले में भुसावल जंक्शन, नासिक जिले में इगतपुरी, इटारसी, कल्याण, मुगलसराय ई.

यह संकल्पना सटीक थी, रेलवे को अपने कार्यकलापों के लिए बहुत बड़ी जगह लगती है और जिला मुख्यालयों या बड़े व्यापारिक केद्रों में शहर की जगह मूल्यवान होती है। ब्रिटिश राज में ऐसे बड़े शहरोंसे गाड़ियाँ सिर्फ गुजरने भर का महत्व रखा गया था, की रुके और चले। वहीं पास के रेलवे जंक्शन जहाँ पर रेलवे रखरखाव का केंद्र बनाया गया वहाँ पर रेल रखरखाव की पूरी व्यवस्था अर्थात कारखाने, जल शुद्धिकरण केंद्र तमाम लगनेवाले संसाधनों की व्यवस्था की गई। स्वतंत्रता के बाद जैसे जैसे रेल सुविधा का विस्तार किया गया, हम लोगोंने इस व्यवस्था के मद्देनजर कई सारी भूल करते चले गए। हम लोगोंने जिला मुख्यालय, पर्यटन और व्यापार केंद्र पर ही गाड़ियोंके टर्मिनल बनाते चले गए जो आज रेल व्यवस्था को सुचारू रूप में चलाने के लिए भारी पड़ रहे है।

अब हम लोग बड़े टर्मिनल स्टेशनोंको डिकंजेस्ट याने भीडरहित करने के लिए उन स्टेशनोंके आसपास नए टर्मिनल स्टेशन विकसित कर रहे है। हालांकि यह भी योजना तात्कालिक उपाय ही है, हमें फिर से पुरानी रचना पर गौर करना होगा और उसी के हिसाब से रेल गाड़ियोंकी रचना करनी होगी। इन लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे टर्मिनल स्टेशन को बड़े शहर से आगे के जंक्शन पर ले जाना होगा ताकि उस स्टेशनपर रेल गाड़ियोंके रखरखाव का भार न पड़े। उदाहरण के लिए पुणे स्टेशन लीजिए। पुणे स्टेशन, भीड़ से भरा और जगह की कमी से जूझ रहा है, ऐसे में पुणे स्टेशन से आगे दोनों ओर रेलवे को अपने कार्य करने के लिए बहुतेरी जगह मिले ऐसे स्टेशन खोजना और वहाँ बुनियादी सुविधाओं का विस्तार करना अति आवश्यक हो जाता है।

ब्रांच लाइन और मेन लाइन इनमें रेलगाड़ियोंको संचालित करना यह एक अलग प्रकार की संरचना है। आजकल जो गाड़ियोंका विस्तार करने की होड़ लगी है, उसमे यह संकल्पना बिल्कुल ही छोड़ी जा चुकी है। यात्री गाड़ियाँ एक ब्रांच लाइन से निकल मैन लाइन पर और फिरसे ब्रांच लाइन पर जा रही है। इस तरह के गाड़ियोंका विस्तार जब हमारे पास बहुत बड़ा और विस्तृत रेल नेटवर्क हो तभी सम्भव हो सकता है जो की फिलहाल नही है। हाल यह है, इससे न सिर्फ मुख्य मार्ग की गाड़ियाँ किसी विशिष्ट तीव्र गति से चलाई जा रही है बल्कि ब्रांच लाइन की गाड़ियोंकी भी कोई विशेषता नही रह गयी है।

लम्बी दूरी की गाड़ियोंके स्टापेजेस कम करने की बात की जा रही है, ऐसेमें ब्रांच लाइन में, मुख्य जंक्शन स्टेशन के बीच, कम दूरी की इंटरसिटी, मेमू, डेमू गाड़ियाँ रेल नेटवर्क में बढाई जाना अब अनिवार्य हो गयी है। बात घूम फिर कर वही आती है, लिंक एक्सप्रेस, स्लिप कोचेस जो दो मार्गोंको जोड़ती थी उनका महत्व फिर से अधोरेखित होता है। यदि मुख्य मार्ग की गाड़ियाँ तीव्र गति से, छोटे स्टेशनोंको स्किप करते चलानी है तो रेल प्रशासन को यह व्यवस्था फिर से बहाल करने के बारे में सोचना पड़ेगा। जंक्शन स्टेशनोंका महत्व तब भी था और अब भी बरकरार है।

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