
चित्र केवल मध्य रेलवे का क्षेत्र दर्शाने हेतु ,
मध्य रेलवे जो किसी जमाने मे मुम्बई से दिल्ली तक और कर्नाटक के वाडी से महाराष्ट्र के सोलापूर, भुसावल होते हुए उ प्र के प्रयागराज तक विस्तारित था। रेलमन्त्री नितीश कुमार इनके कार्यकाल में भारतीय रेल में 9 रेल क्षेत्रों की पुनर्रचना कर उन्हें 16 क्षेत्र में बदल दिया गया। संकल्पना यह थी की रेल विभाग के प्रचण्ड कारोबार का यथायोग्य नियोजन किया जा सके। प्रत्येक क्षेत्रीय रेलवे की पुनर्रचना पर आम लोगों मे एक तर्क है, नई रचना इस तरह से की गई है की वह क्षेत्रीय रेल विभाग किसी एक राज्य के रेलवे को प्रशासकिय नियंत्रण करें अर्थात इसका स्पष्ट आधार कहीं उपलब्ध नही है। यह भी समझें, के भारतीय रेल यह केन्द्रीय नियोजित संस्था है और उसपर राज्य प्रशासन की दखल बहुत सीमित है। यह सीमा, अपने राज्य में रेल के यात्री एवं साधन सामग्री को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध करा देना यहाँ तक ही सीमित दिखाई देती है।
मध्य रेल्वे और पश्चिम रेल्वे का मुख्यालय मुम्बई है। पश्चिम रेल का कार्यक्षेत्र ज्यादातर गुजराथ और मध्य रेल्वे का महाराष्ट्र राज्य। हम महाराष्ट्र की बात करते है। मध्य रेल के मुम्बई क्षेत्रीय मुख्यालय के अंतर्गत 5 मण्डल आते है। मुम्बई, पुणे, सोलापूर, भुसावल और नागपूर। अब होता यह है, महानगर मुम्बई मे रेल व्यवस्था और उसका जाल भी व्यापक है। यहाँपर दिन भर मे हजारों की संख्या मे उपनगरीय गाडियाँ चलती है जिसके यात्री लाखों की तादात मे रहते है। मुम्बई की रेल सेवा पर, उसे चाकचौबंद रखने पर रेल प्रशासन की बारीकी से नजर रहती है जो बेहद आवश्यक भी है। ‘मुम्बई की रेल दुरुस्त तो मुम्बई चुस्त’ यह स्थिति है। इस गतिमान मुम्बई की अथक चलनेवाली उपनगरीय व्यवस्था मे ठाणे – दिवा मार्गिकापर 5वीं, 6ठी लाइन, और 36 नई वातानुकूलित उपनगरीय गाड़ियों का लोकार्पण दि. 18 फरवरी को माननीय पंतप्रधान नरेंद्र मोदी के कर-कमलों द्वारा किया जा रहा है।
मुम्बई के लिए जो व्यवस्था आवश्यक है वह अवश्य ही की जानी है, मगर मुम्बई के साथ साथ शेष महाराष्ट्र का क्या? वहाँ पे समुचित गाडियाँ चलना, वहाँ पर द्वितीय श्रेणी सामान्य टिकटों की, मासिक पास उपलब्धता की आवश्यकता नहीं है? क्षेत्रीय रेल प्रशासन द्वारा, प्रत्येक मण्डल के प्रमुख मार्गों पर एक – एक मेमू/डेमू गाड़ी चलवाकर खानापूर्ति कर दी गई है। केवल उन्ही एक – एक गाड़ियों मे सामान्य टिकटें उपलब्ध है, मासिक पास MST नहीं। कहने को मध्य रेल पर 90% से ज्यादा गाडियाँ पूनर्स्थापित कर दी गई है मगर राज्य के स्थानीय निवासियों के लिए चलनेवाली, उन्हे उनके रोजी-रोटी तक पहुचाने वाली, स्कूल-कालेजोंतक ले जाने वाली, व्यापार-व्यवसाय की आवश्यक भागदौड़ मे सहायता करानेवाली गाडियाँ अभी भी बंद ही है, जो चल रही है, उन गाड़ियोंमे सामान्य यात्रीओं को विना आरक्षण प्रवेश नहीं है और आरक्षण कभी भी उपलब्ध रहता ही नहीं।
संक्रमण काल के 2 वर्ष बित गए, यात्री गाडियाँ शुरू होकर भी लगभग पौने दो वर्ष हो गए है मगर आज भी मुम्बई से हिंगोली, वाशिम जिले रेल द्वारा जुड़ नहीं सके है। इस मार्ग पर चलनेवाली दैनिक गाडियाँ तो है ही नहीं मगर जो साप्ताहिक, द्विसाप्ताहिक गाडियाँ चल रही थी वह अभी भी रद्द ही है। इस क्षेत्र के यात्रीओंको अपने राज्य की राजधानी मुम्बई जाने के लिए अकोला या नांदेड जाकर, गाड़ी बदलकर मुम्बई जाना पड़ता है। समस्याएं है, मगर सुनवाई नहीं हो रही है। गैर – उपनगरीय मार्गों से सैकड़ों लंबी दूरी की गाडियाँ चलाई जा सकती है तो एक-एक मेमू/डेमू की जगह 2 -3 सवारी गाडियाँ क्यों नहीं चलाई जा सकती? मुम्बई मे, उपनगरीय मेमू/डेमू मे हजारों यात्री MST पास लेकर यात्रा कर सकते है तो गैर मुम्बई के यात्रीओं के लिए MST पास क्यों नहीं? इन प्रश्नों के पीछे के पीड़ा, वेदना, तकलीफ समझना जरूरी है। क्या रेल प्रशासन के पास ऐसे प्रश्नों का तर्कशुद्ध और आम जनता को समझ सके ऐसा कोई उत्तर है?
रेल सुविधाएं मुम्बई के लिए आवश्यक है, मगर कुछ छोटी छोटी मांग मुम्बई शेष – महाराष्ट्र और मुम्बई शेष – मध्य रेल की भी है। आशा है, रेल प्रशासन, शेष महाराष्ट्र एवं मध्य रेल के यात्रीओं की गुहार पर भी गौर करेंगे।