मध्य रेल के मुख्य वाणिज्यिक प्रबन्धक CCM के पत्र दिनांक 24 फरवरी से मध्य रेल में MST पासेस जारी करने की अनुमति तो मिल गयी मगर जिन गाड़ियोंमे यह पास वैलिड अर्थात मान्य रहेंगे ऐसी गाड़ियाँ तो बिल्कुल ही गिनीचुनी ही चल रही है।
दरअसल MST पास ग़ैरउपनगरिय मार्गोंके लिए रेल प्रशासन के नियमानुसार, अधिकतम 150 किलोमीटर की यात्रा के लिए जारी की जा सकती है। मध्य रेल में मुम्बई – नासिक 187 किलोमीटर और मुम्बई – पुणे 192 किलोमीटर यह इसके लिए अपवाद है। इन दोनों स्टेशनोंके बीच MST पास जारी करने के लिए अनुमति दी गयी है।
एक वक्त था की MST पास धारक अपनी पास को “ट्रम्प कार्ड” समझते थे, कोई भी मेल/एक्सप्रेस या दूरी प्रतिबंधित गाड़ियों में यात्रा करना, किसी भी आरक्षित यानोंमें चढ़ जाना यहाँतक की सुपरफास्ट गाड़ियोंमे भी यह लोग यात्रा करना अपना अधिकार मानते थे। द्वितीय श्रेणी में पैर धरने की जगह नही तो स्थानीय यात्री डिब्बेमें चढ़ेगा कैसे यह इनकी दलील रहती थी। रेल प्रशासन ने सुपरफास्ट गाड़ियोंके लिए सुपरचार्जेस वाली 15 एकल फेरोंका किराया लेकर पास भी जारी करना शुरू किया, लेकिन हजारों की तादाद में MST धारक और उनके मुकाबले जाँच करनेवाले कर्मी नाममात्र, कैसे जाँच सम्भव होती? मगर अबकी बार MST धारकोंको सम्पूर्णतयः आरक्षित गाड़ियों और आरक्षित यानों में यात्रा के लिए सख्त मनाही और सख्त कार्रवाई की हिदायत कारगर हो रही है। मध्य रेलवे में लम्बी दूरी की लगभग 99% फीसदी गाड़ियाँ सम्पूर्णतयः आरक्षित रूप में ही चलाई जा रही है तो MST धारकों के लिए पास जारी होकर भी गाड़ियोंकी कमी के कारण पास अनुपयोगी साबित हो रही है।
अब साधारण यात्री मासिक पास तो निकलवा रहे है और उनकी हमेशा की मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमे यात्रा करने की अनुमति की माँग ले कर राजनीतिक प्रभावोंकी ओर गुहार लगा रहे है, की वे कुछ रेल प्रशासन से छूट दिलवाए।
मध्य रेलवे में फिलहाल प्रत्येक मार्ग पर केवल एक-एक अनारक्षित मेमू/डेमू गाड़ियाँ चल रही है। भुसावल – इगतपुरी के बीच एक गाड़ी, भुसावल – बड़नेरा के बीच एक गाड़ी, भुसावल – इटारसी के बीच एक गाड़ी और कुछ इसी प्रकार की स्थितियां अन्य मण्डल नागपुर, सोलापुर, पुणे में भी है। यह गाड़ियाँ लोगोंके दफ्तर, कार्यालय समयोंमें मेल नही बैठा पा रही है और वह लोग पुरानी मेल/एक्सप्रेस में अनुमति वाली व्यवस्था शुरू किए जाने पर लालायित है।
एक तरफ जो भी सांसद है, राजनीतिक है या यात्री संघटन है अब तक लम्बी लम्बी पल्लेदार गाड़ियोंकी माँग करते नजर आते थे, अब उन्हें ‘लोकल कनेक्टिविटी’ के पड़नेवाले लाले समझ आ रहे है। अब गौर फरमाइए, भुसावल – इगतपुरी, नागपुर, भोपाल, सूरत इन सब स्टेशनोंके अंतर लगभग 300 से 400 किलोमीटर के बीच है, यदि इन स्टेशनोंके बीच दिन भर में 2-3 फेरे करने वाली अनारक्षित, इंटरसिटी गाड़ियाँ चलाई जाए, तो आम आदमी तो चमन हो जाएगा अर्थात बाग बाग हो जाएगा। सारी “लोकल कनेक्टिविटी” बड़ी आसानी से उपलब्ध और यही माँग बाकी भी जंक्शन स्टेशनोंके बीच होनी चाहिए, यही समय की माँग है, न की लम्बी दूरी की सुपरफास्ट, राजधानी, वन्देभारत और हमसफ़र ब्रांडेड गाड़ियोंकी।
लम्बी दूरी की यात्रा के नियोजन के लिए आम तौर पर यात्रिओंके पास खासा वक्त रहता है, मगर रोजाना की यात्रा के लिए या छोटे अंतर की अकस्मात यात्रा के लिए तत्काल निकलना होता है, जिसके लिए अनारक्षित गाड़ियाँ उपलब्ध होना नितान्त आवश्यक है। काश! हमारे नेतागण, रेल फैन्स और रेल समयसारणी का नियोजन करने वाले ज्ञानी लोगों के यह बात जल्द समझ आ जाए, अन्यथा रेल प्रशासन ने तो MST धारकों और छोटे अंतर के अनारक्षित यात्रिओंकी रेल यात्रा को निर्बन्धो में जकड़ ही रखी है।