एक ‘इंफ्रास्टोरी’ नामक ट्विटर अकाउंट है, यहाँ से कल रेलवे कोच प्रोडक्शन सम्बन्ध में निम्नलिखित ट्वीट देखने मिले।


400 वन्देभारत गाडियोंकी घोषणा की जा चुकी है, जिनमे 75 गाड़ियोंकी बात मा. प्रधानमंत्री जी ने लाल किले से की थी। अब हमारे मुख्य विषय, इस ट्वीट पर आते है, भारतीय रेल कोच उत्पादन कार्यक्रम वर्ष 2022-23 में ICF इंटेग्रल कोच फैक्टरी, पैराम्बूर को 880, RCF रेल कोच फैक्टरी कपूरथला को 160 एवं MCF मॉडर्न कोच फैक्टरी रायबरेली को 160 वन्देभारत कोच बनाने होंगे। यह हुई वन्देभारत गाड़ियोंकी बात, आगे 1812 थ्री टियर वातानुकूलित इकोनॉमी, 1508 थ्री टियर वातानुकूलित नियमित, 220 तेजस कोच और 70 विस्ताडोम कोच ऐसे कुल 3610 अन्दाजन सभी वातानुकूलित कोच निर्मिती का लक्ष्य दिया गया है और 550 ग़ैरवातानुकूलित, नॉन एसी स्लिपर कोच भी इस लक्ष्य में जोड़े गए है। अर्थात 4160 कोचमे केवल 13 फीसदी नॉन एसी कोचेस है।
बहुत आश्चर्य की बात है इस कोच प्रोडक्शन सूची की, 87% कोच प्रोडक्शन सिर्फ और सिर्फ वातानुकूलित डिब्बों का किया जा रहा है, कुछ समझे? मित्रों क्या भारतीय रेल मे संपूर्ण वातानुकूलित गाडियोंका दौर आने जा रहा है?
जब देशभर के कोने कोने तक के सारे रेल मार्गोंका विद्युतीकरण प्रगतिपथ पर है, सेल्फ प्रपोल्शन अर्थात लोको समाहित वाली गाड़ियाँ लायी जा रही है, पुरानी शंटिंग कर डिब्बे डिब्बे जोड़कर बनने वाली गाड़ियाँ हटाकर सेल्फ प्रपोल्शन मेमू/डेमू लायी जा रही है। गाड़ियोंकी गति 130/160/200 kmph होने जा रही है। मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंको LHB किया जा रहा है, साथ ही उसमे लगने वाले डीजल के जनरटरोंको हटाकर कोचेस में OHE से बिजली सप्लाई की तकनीक अपनायी जा रही है। तेज गति में अवरोध उत्पन्न करने वाले समपार फाटक हटाकर RUB/ROB ऊपरी पुल/ सुरंग निर्माण किया जा रहा है। सिग्नल व्यवस्था अद्ययावत की जा रही है। यह बदलाव बुनियादी सुविधाओं में है।
अब परिचालनिक बदलाव देखिए, शून्याधारित समयसारणी लागू करने की जोरदार कवायदें चल रही है, इसी चक्कर मे 23-24 महीनोंसे नियमित समयसारणी प्रकाशित नही की गई। कई यात्री गाड़ियोंके छोटे स्टेशनोंके स्टापेजेस हटाये गए है। सवारी गाड़ियाँ, त्वरित तीव्र गति लेने वाली डेमू/मेमू में बदली गयी है। मुम्बई उपनगरीय क्षेत्र में लगातार वातानुकूलित EMU गाड़ियोंके रैक बढाए जा रहे और यात्रिओंके लिए उनके किरायों को भी सुसंगत करने की बात हो रही है।
यह सारी बाते हमे यह दर्शाती है, भारतीय रेलों में आनेवाले 2-4 वर्षोंमें आमूलचूल बदलाव होने जा रहा है। लम्बी दूरीकी की सारी गाड़ियाँ तेज गति, कम ठहराव और वातानुकूलित की जा सकती है। 400-500 किलोमीटर के रेंज में चलने वाली गाड़ियोंके लिए मेमू/डेमू रैक वाली गाड़ियाँ इंटरसिटी स्वरूप में लायी जा सकती है।
मित्रों, शून्याधारित समयसारणी और उपरोक्त सारी गतिविधियों से यात्रीगण और यात्री संगठनों ने भी यह बात समझ लेनी चाहिए की वह जिस तरह से पुराने स्टापेजेस और पुरानी गाड़ियोंको पुनर्स्थापित करने का आग्रह करते जा रहे है, बजाय उसके अपने मार्गोंपर अपने क्षेत्र के यात्रिओंके लिए उपयोगी डेमू/मेमू/इंटरसिटी गाड़ियोंकी मांग करनी चाहिए। ठीक यही बात लम्बी दूरी की मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंके द्वितीय श्रेणी सामान्य कोच की है। बिल्कुल शुरू के स्टेशन से ही भीड़ भरे कोचमे, बीच के स्टेशनोंसे चढ़ने वाले यात्रिओंको टिकट दिलवाने का आग्रह किस कदर किया जा रहा है यह भी समझ के परे है। यदि रेल प्रशासन के निर्धारण में गाड़ियाँ सम्पूर्णतयः वातानुकूलित की जाती है (वातानुकूलित सिटिंग कोच के निर्माण की भी चर्चाएँ है), तो यह द्वितीय श्रेणी सामान्य टिकट सीमित गाड़ियों भर के लिए रह जायेगा।
यात्रीगण हम आशा करते है, भारतीय रेल में आनेवाले क्रांतिकारी बदलावों के लिए आप सब लोग अपनी मानसिकता बना चुके होंगे।
लेख में प्रगट किये गए विचार, लेखक के सद्य स्थितियां देख कर बनाये गए अनुमान है। लेख में प्रकाशित ट्वीट के लिए @marinbharat और twitter.com का सादर आभार