

पोस्ट का शीर्षक बहुत कुछ कह रहा है। मराठवाड़ा में यात्रिओंकी ढेर मांगे अनसुनी है। आज भी हिंगोली जिला मुख्यालय से राजधानी मुम्बई के लिए सीधा रेल सम्पर्क उपलब्ध नही है। यात्री गाड़ियोंके कमी की लगातार मांग होती रही है। ऐसे में अचानक क्षेत्र को रेल मंत्रालय मिल जाये तो किस तरह प्रोजेक्ट्स “अम्ब्रेला” ही नहीं “पैराशूट” से क्षेत्र में टपकते है। जालना पीट लाइन, जालना – जलगाँव रेल मार्ग का सर्वे यह उदाहरण है।
खैर, वर्षोंसे प्रताड़ित, प्रलंबित रेल प्रोजेक्ट्स को किधर से ही सही, राह मिली यह महत्वपूर्ण बात है। औरंगाबाद में न हो और जालना में पीट लाईन हो जाये या जालना ही जलगाँव, भुसावल, खामगांव से जुड़ जाता है तो भी क्षेत्र में रेल गाड़ियोंकी आवाजाही बढ़ेगी। वैसे भी मनमाड – औरंगाबाद और अकोला – पूर्णा – नांदेड़ विद्युतीकरण प्रगतिपथ पर है।
अच्छा है, अब क्षेत्र में यात्री गाड़ियाँ भी बढ़ने की खबरें चलने लगे तो, ‘हर गंगे!’