कभी कभी शक होता है, यह एकछत्र भारतीयरेल है या विविध क्षेत्रीय रेलवे में बटी स्वतंत्रता पूर्व काल की स्टेट रेलवे? तब एक राज्य, निज़ाम नही चाहता था की कोई दूसरा उसके क्षेत्र में दखल दे। यहाँतक की इसके लिए एक स्टेट रेलवे अपना गेज बदल लेती थी। इसका उदाहरण आपको गुजरात, राजस्थान, मप्र में मिल जाएगा। प्रत्येक राजा अपने इलाके के लिए अपनी खुद की रेल चलाता था और वह बगल के राजा की रेलवे से अलग गेज की रहती थी। आज फिर वही हालात है, किसी एक क्षेत्रीय रेल में अनारक्षित टिकट मिल रहे है, तो किसमे नही।
NWR उ प रेल ने घोषणा कर दी, हम 11 तारीख से ही 97 मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमे अनारक्षित यात्री सेवा शुरू कर देंगे तो प रे WR ने 01 जुलाई से उपरोक्त सेवा शुरू हो पाएगी यह कह दिया। भाई, उत्तर रेलवे NR ने तो गजब कर दिया उन्होंने 250 के करीबन गाड़ियोंकी सूची छपवा दी और प्रत्येक गाड़ी में अनारक्षित सेवा शुरू की अलग अलग तिथियाँ भी। कुछ क्षेत्रीय रेलवे ऐसी भी है, जो मौन व्रत ले कर चुपचाप बैठी है, जैसे की मध्य रेल।
अब परेशानी क्या है, आज भी मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंके डिब्बों में अपनी क्षमता से दुगने यात्री यात्रा कर रहे है। कोई क्षेत्रीय रेलवे अनारक्षित टिकट जारी कर अपने यहाँसे अनारक्षित डिब्बों को यात्रिओंसे लबदब करा भेज रही है तो कोई रेलवे (CR) बिना आरक्षण द्वितीय श्रेणी में पैर भी धरने न दे रही है। ऐसे में जब केवल मध्य रेलवे के ही कार्यक्षेत्र में चलनेवाली गाड़ियाँ यदि यात्रिओंसे ठूँस ठूँस कर चले तो रेल प्रशासन के नियम, कानून, अनुशासन तो ताक पर रखे पड़े है, क्यों? सही है या नही?
रेलवे स्टेशनोंपर रेल सुरक्षा बल खड़ा है, ट्विटर के जरिये हर वरिष्ठ अधिकारी, मन्त्रीगण तक यात्रिओंसे सीधे जुड़े है, फिर भी ऐसी अराजकता मची है? आखिर चल क्या रहा है? या तो रेल प्रशासन सीधे कह दें अब कोई आरक्षित द्वितीय श्रेणी नही रहेंगी और सभी मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंके द्वितीय श्रेणी कोच अनारक्षित समझे जाएंगे, जिन यात्रिओंने द्वितीय श्रेणी का अग्रिम आरक्षण कर रखा है उसे अब आरक्षित रेल यात्रा यह एक सुन्दर बिसरा ख्वाब समझ कर भुला देना चाहिए। रेल विभाग वैसे भी आरक्षित आसन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी नही लेता अतः अब तो घोषित ही क्यों न कर दिया जाय की यात्री अपने बलबूते पर यात्रा करें, यज्ञपी हमने यात्री को आरक्षण दिया है, लेकिन उसके साथ अन्य रेल्वेज के अनारक्षित यात्री भी यात्रा कर सकते है।
कितनी कमाल बात है, ढेर व्यवस्था है मगर नियोजन के नाम पर सब शून्य और व्यर्थ है। तर्कहीन और निरी अनुशासन हीनता। ट्विटर पर अधिकारियों से रोजाना कम से कम एक तो भी शिकायत “ओवर क्राउडिंग” की रहती है। सम्बंधित शिकायत कर्ता से उसका PNR पूछा जाता है मगर कार्रवाई क्या हुई यह आजतक भी किसे ट्विटर पर प्रसारित होते दिखाई नही दी। मध्य रेल क्षेत्र में चलनेवाली ऐसी कई गाड़ियाँ है जिसमे रोजाना क्षमता से अधिक यात्री यात्रा कर रहे है, प्रशासन देख रहा है। न तो अनारक्षित टिकटें जारी किए जा रहे न ही बन्द हो चुकी गाड़ियाँ बहाल की जा रही है। पता नही, रेलवे अपने अधिकारों का उपयोग कब करनेवाली है?