“रेलवे 15 एप्रिल से डीजल लोको द्वारा चलाये जानेवाली गाड़ियोंके यात्रिओंसे अतिरिक्त किराया वसूलेगी।”
दोस्तों, क्या लगा आपको यह खवर पढ़कर? अर्ररर यह हम नही बल्कि एक रेल सम्बन्धी लोकप्रिय वेबसाइट का अपने पाठकोंके साथ किया गया ‘प्रैंक’ याने पहली अप्रैल करते है वह ‘एप्रिल फूल’ वाला छोटासा हेल्दी मजाक था। जिससे किसी का कोई नुकसान नही होनेवाला था।

बन्दे ने बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में जाल बुना, रेलवे बोर्ड, HCS नामक टैक्स और हाइड्रोकार्बन सरचार्ज ☺️😊
फिर क्या, बड़े बड़े ? ज्ञानी इस जाल में उलझते चले गए। कोई रेलवे पर चिढ़ रहा था तो कोई यात्री की तरफ से बोले जा रहा था की भई, गाड़ी डीजल लोको खींच रहा है, उसमे यात्री का भला क्या दोष? वह क्यों चुकाए ऐसा सरचार्ज? एक से बढ़कर एक कॉमेंट और बढ़ चढ़ कर बहस!
एक हिन्दी जाने माने दैनिक ने भी इसकी हेडलाइन बनाकर छाप दी। जी हाँ, और आगे यह भी जोड़ दिया, ‘उच्च अधिकारी ने बताया.. ‘ 😢
हद हो गयी साहब, तथाकथित पत्रकारोंकी! आजकल यह रेलवे पत्रकारिता बहुत लोकप्रिय होते जा रही है। दरअसल हम भारतीयों को रेलवे से लगाव ही इतना ज्यादा है, रेलवे शब्द देखते ही पूरी खबर चाट जाते है। पत्रकार इसी का लाभ उठाने का प्रयत्न करते है। जरूर करें, कोई हर्ज भी नही, लेकिन थोड़ा … बस थोड़ा सा अपना दिमाग भी लगा लिया करें। बस फिड देखी नही की उठाकर सीधे ‘कॉपी और पेस्ट’?
मित्रों, यह सचमे छोटा सा मज़ाक है। रेलवे इस तरह का डीजल लोको चलित गाड़ियोंपर कोई अतिरिक्त अधिभार नही लगाने जा रहा है। हाँ, मगर आप जरूर परख लीजिये, की खबरें किसकी और कौनसी पढ़नी है, किसे गम्भीरता से लेना है और किसे यूँ ही छोड़ देना है।