माननीय रेल मंत्री जी का हालिया ट्वीट देखिए,
“1 रुपए 16 पैसे खर्च होते हैं पैसेंजर को ट्रेवल कराने के लिये, हम पैसेंजर से लेते हैं मात्र 48 पैसे। जो भी यात्रा करते हैं उन्हें बहुत बड़ा डिस्काऊंट दिया जाता है” : माननीय रेल मंत्री https://t.co/ITMfD1rY7A
यह बहुत बड़ा विषय है और गम्भीर भी है। जब सार्वजनिक तौर पर यह कहा जाता है, की सार्वजनिक परिवाहन में यात्रिओंको बहुत बड़ी याने 1रुपये 16 पैसे के मुकाबले 48 पैसे वसूले जाते है, अर्थात लगभग 58% की छूट दी जा रही है। रेलवे अपने पूर्ण देय किराया टिकट पर भी यह बात छापती है। यह किस तरह की व्यवस्था है? क्यों दिया जा रहा है यह ‘डिस्काउंट’?
आजसे पहले भी यह बातें हो चुकी है, सामाजिक जिम्मेदारी निभाने हेतु यात्रिओंसे, भारतीय रेल यह किराया कम वसूलती है। यात्री किरायोंमे दी गयी छूट को वह पण्यवहन करके, मालभाड़े के उत्पन्न से समायोजित करती है। जब ऐसी समायोजन की व्यवस्था की गई है तब ऐसा बयान क्यों?
वैसे भी संक्रमणकाल से रेल प्रशासन ने वरिष्ठ नागरिकों सहित कई रियायतोंको स्थगित कर रखा है। द्वितीय श्रेणी अनारक्षित सवारी गाड़ियाँ जिनके किराये की श्रेणी बहुत ही कम है, अब तक भी शुरू नही की गई है। नवनिर्मित वातानुकूल इकोनॉमी कोच में लिनन, कम्बल नही देने का निर्णय लिया जा चुका है, प्रमुख रेलवे स्टेशनोंके रखरखाव को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है। भारत गौरव नामक FTR पूर्ण किराया देय गाड़ी के जरिये यात्री गाड़ियोंमे भी निजी क्षेत्र की शिरकत हो रही है। कुल मिलाकर यह साफ है, रेलवे यात्री किरायोंके रियायती बोझ को अब सह नही पा रही और शायद इसीलिए रेल मन्त्री का इस तरह से बयान आया है।
रेलवे में रियायत पाने वालोंकी सच्चाई देखें तो, दौड़के गाड़ी पकड़ने वाले दिव्यांग, मुफ्त का अखबार पढ़ने वाले दृष्टिहीन, स्मार्टफोन विथ ब्लू टूथ कॉर्डलेस ईयरफोन धारक मूक बधिर, दिव्य औषधी प्राप्त निरोगी मरीज और जिन्हें रेलवे पटरी पर दौड़ती है यह तक पता नही ऐसे रेलकर्मी, रेलवे में ऐसे कई प्रकार के रियायती नमूनेदार यात्री रहते है जिसकी सघन जांच होना जरूरी है।
सार्वजनिक परिवहन में उसका उपयोग करने वाले यात्रिओंकी नैतिकता सही होना जरूरी है। प्रशासन आवाहन करती है, ‘बिना टिकट रेलवे के अहाते में प्रवेश न करें’ है न विवेक पर छोड़ी हुई बात? कोई भी प्रशासन प्रत्येक व्यक्ति के पीछे जाँच दल तो नही न लगा सकता? बिना टिकट यात्रा करना, बिना आरक्षण के आरक्षित यान में प्रवेश करना, अनैतिक तरीकेसे गाड़ियोंमे बिक्री करना यह सब सामाजिक अपराध है, आपकी अपनी परिवाहन व्यवस्था को नुकसानदेह है।
साथही इस तरह के सार्वजनिक बयान से यात्रिओंको यह भी अहसास हो जाना चाहिए की रेल प्रशासन जिस तरह सामाजिक दायित्वों के तले दबे जा रही है, जरूरी है की इस बोझ को जल्द से जल्द कम करने का प्रयत्न हो। पण्यवहन और यात्री यातायात में समायोजन को भी सुस्थिति में लाया जाए ताकि रेल प्रशासन के पण्यवहन में भी वृद्धि हो और रास्ते से चलनेवाली माल को रेलवे की तरफ आकर्षित किया जा सके।