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कमोबेश पूरे भारतीय रेल में स्लीपर क्लास की यही अवस्था है। हम भारतीय इतने सहनशील है, की 80 यात्री क्षमता के कोच में दुगुने, तिगुने यात्री भी हो तो भी कानूनी कार्रवाई के लिए आग्रह नही करते और इसी ‘एडजस्टमेन्ट’ वाली पॉलिसी में यात्रा पूरी हो जाती है।
जाहिर सी बात है, आरक्षित वर्ग के इस स्लीपर क्लास में 8 शायिका/बैठक के 10 कप्पे याने कुल 80 यात्री अधिकृत होते है। समझ लीजिए 16 RAC यात्री भी कोच में अधिकृत किये गए है तो भी अधिकतम यात्री संख्या 88 से ज्यादा नही होनी चाहिए, और भी आधे टिकट वाले, 12 वर्ष से कम के 10-20 यात्री और गिन लीजिये जिन्होंने शायिका नही ली है, मगर वह अधिकृत यात्री है और उनके नाम चार्ट में दर्ज है। कुल मिला कर छोटे, बड़े 100 से अधिक यात्री तो स्लीपर कोच में दिखना ही नही चाहिए, फिर यह लोग कौन है और किस तरह सम्पूर्ण आरक्षित कोच में अनाधिकृत तरीके से घुसे रहते है?
ज्यादातर यह लोगोंके पास प्रतीक्षा सूची का PRS टिकट होता है और स्लीपर कोच के 4, 6 डिब्बों के बीच एक टी टी ई अपनी यात्री सुविधाओंकी ड्यूटी निभा रहा होता है, तो यह प्रतिक्षासूची टिकट धारक उस रेलवे टिकट जांच अधिकारी से बच कर डिब्बे में चढ़ जाते है। दिन की यात्रा के समय अक्सर स्लीपर कोच की अप्पर बर्थ पर कोई यात्री नही रहता, उस पर यह लोग कब्जा जमा लेते है। किसी आरक्षित यात्री ने आपत्ति भी उठायी तो उसे समझा दिया जाता है, की जब वह सोना चाहेगा बर्थ खाली कर दिया जाएगा।
कुछ यात्री कम दूरी की यात्रा करने वाले होते है, जो बस एक स्टेशन तो जाना है, थोडासा बैठ लेने दीजिये, अब घंटे भर में उतर जाएंगे और यह सिलसिला गाड़ी के आरंभिक स्टेशन से शुरू होकर गन्तव्य तक चलते रहता है। कुछ यात्री MST धारक, जो विशिष्ट स्टेशनोंके बीच रोजाना जाना आना करते है, बिल्कुल हक़ से, अधिकृत यात्री को सोये हुए को उठाकर उसकी जगह में धँस जाते है, किसी की क्या मजाल जो उन्हें मनाही कर दे, टी टी ई तो उनकी तरफ झाँकते ही नही। कुछ यात्री रेलवे के दामाद बने फिरते है। यह लोग रेलवे के आजी, माजी कर्मचारी होते है, जेब मे रेल मजदूर यूनियन का कार्ड फँसा कर बेखटके यात्रा करते है, जिन्हें रेलवे के सारे कोटे वगैरह मालूम रहते है और सीधे उन सीटों पर कब्ज़ा जमाए रहते है।
ऐसा नही है, की रेल प्रशासन ने इन अवान्तर यात्रिओंके रास्ते काटे है, रेल कर्मियों की पास डिजिटल कर दी है, जिससे पास का बारम्बार दुरुपयोग रुका है। MST धारकोंको संक्रमण के बाद से किसी भी आरक्षित कोच में यात्रा करने की अनुमति नही है। खैर, वह तो पहले भी नही थी। मगर अब लम्बी दूरी की गाड़ियोंसे MST धारकोंको दूर रखा गया है। लेकिन अब भी PRS टिकट की प्रतिक्षासूची के यात्रिओंपर रेलवे कड़ा निर्णय नही ले पाई है।
रेल प्रशासन को चाहिए की अब वे अपनी टिकिटिंग सिस्टम को सम्पूर्ण डिजिटल कर दे। ” नो कैश” बिना नगदी के व्यवहार होने से जो भी प्रतिक्षासूची के चाहे वह ई-टिकट धारक हो या PRS टिकट धारक उनके खाते में रिफण्ड कर दिया जाए। जब प्रतिक्षासूची का हर तरह का टिकट अपने आप रदद् हो जाएगा तो टिकट जाँच दल और रेलवे सुरक्षा बल के कर्मियों को उन अनाधिकृत यात्रिओंपर कार्रवाई करने हेतु नैतिक बल रहेगा। क्योंकि वह यात्री तत्त्वतः बिना टिकट ही यात्रा कर रहा होगा। यह निर्णय लेना नितांत आवश्यक है और जब गाँव तक के लोगोंके बैंकोमे ‘आधार’ युक्त और अलग अलग सब्सिडियोंके हेतु खाते खोले जा चुके है, तब क्यों न इस तरह की योजना भारतीय रेल अपना नही सकती?
समस्या है, तो उसके समाधान भी है। बस, आवश्यकता है निर्णय लेने की और उसके कड़ाई से पालन करने की।
Photo courtesy : Dainik Jagran