गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो चुकी है, शादी ब्याह का मौसम है और यही वक्त है की मुम्बई, पुणे से उत्तरी, उत्तर पूर्वी भारत की गाड़ियाँ भर भर कर चलती है।
सामान्यतः आम यात्री अपने गाँव जाने के लिए 8-15 दिन पहले गाड़ियोंमे आरक्षण देखता है, वह उसे ‘रिग्रेट’ ‘नो रुम’ इस तरह दिखाई देता है। मध्य रेलवे में लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे साधारण श्रेणी (जनरल क्लास) टिकट अभी उपलब्ध नही है। जून, जुलाई में शुरू होंगे ऐसी खबर है। इस हालत में मजबूर यात्री क्या कर रहा है, उसके गाँव जानेवाला जिस गाड़ी में आरक्षित टिकट ले कर चल रहा है, उसके साथ वह गाड़ी में सवार हो जाता है। उसे यह बात पर पक्का भरोसा है, की उसे न ही उतारा जाएगा ना ही कोई कानूनी कार्रवाई होगी, ज्यादा से ज्यादा बिना टिकट के लिए दण्डित किया जाएगा वह भी उसका किसी टिकट चेकिंग स्टाफ से पाला पड़ा तो अन्यथा यात्रा ऐसे ही बिना टिकट ही पूरी हो जाएगी।


आप उपरोक्त तस्वीर, आरक्षित स्लीपर क्लास की देख रहे है। यह किस गाड़ी की, कौन से दिन की यह बताने की कोई आवश्यकता नही क्यों की यह तस्वीर हमारे भारतीय रेल की तमाम यात्री आरक्षण की सु(?)व्यवस्थाओं की उड़ी हुई धज्जियोंको उजागर करने वाली प्रतिनिधिक तस्वीरें है। भारतीय रेल के प्रत्येक क्षेत्र, प्रत्येक मण्डल के अधिकारी इस दुर्व्यवस्था से भलीभाँति परिचित है और इस समस्या से निपटने का कोई भी हल या निदान यह करना नही चाहते। किसी भी यात्री गाड़ी की एवरेज यात्रा अवधी 24 से 48 घंटे की होती है और हम भारतीय यात्री ‘एडजस्टमेन्ट’ टॉलरेन्स अर्थात समायोजन और सहिष्णुता के मामले मे सर्वोच्च पुरस्कार के अधिकारी होंगे इतने योग्य अवश्य ही है। थोड़ा बहुत थोड़ा बहुत करते करते 80 यात्री क्षमता के स्लीपर क्लास में 200 यात्री हम चला लेते है। किसी भूले भटके की शिकायत आ भी गयी तो उसे यूँ ही थोड़ी देर के लिए जगह कर दी जाती है, आगे वहीं ‘ढाक के तीन पांत’
फिलहाल यह भीड़ का रेला मुम्बई, पुणे, सूरत, अहमदाबाद की ओर से उत्तर भारत की ओर जा रहा है और साधारणतः जून के शुरवात से यह स्थिति उल्टी होगी, तब मुम्बई, अहमदाबाद, पुणे की ओर गाड़ियाँ भर भर चलेंगी। दूसरी समस्या कोयला गाड़ियोंकी है। देशभर की ताप विद्युत गृह को कोयले की जरूरत को देखते हुए यात्री गाड़ियाँ बन्द कर मालगाड़ियोंको चलाना पड़ रहा है। ऐसी बिकट स्थिति में, रेल प्रशासन, ज्यादा विशेष गाड़ियाँ कहाँ से चला पाएगी?
रेल प्रशासन को चाहिए की जिस मार्ग पर कोयले की मालगाड़ियोंका दबाव न हो उस मार्ग से अतिरिक्त गाड़ियोंके चलाने का प्रबंधन करें। यात्रिओंके लिए जनसाधारण, अंत्योदय विशेष गाड़ियाँ जिनमे आरक्षण कराने की आवश्यकता नही, उन्हें गोदान, पवन, कुशीनगर जैसी लोकप्रिय गाड़ियोंके आगे-पीछे क्लोन ट्रेन भांति चलवाये। रेल प्रशासन चाहे तो इस प्रकार की गाड़ियोंमे 2S आरक्षण बुकिंग भी शुरू कर सकती है, जिससे यात्रिओंकी यात्रा नियोजित हो सकती है।
रेल अधिकारी स्टेशनोंपर आकर यह सुनियोजित कर सकते है, की कौनसे गन्तव्योंके लिए यात्रिओंकी ज्यादा मांग है और उस प्रकार अतिरिक्त गाड़ियोंका नियोजन करें। यह हर गर्मी के नौसम की स्थिति रहती है, मगर न ही रेल प्रशासन, न ही उनके उच्च अधिकारी इस यात्री समस्या का निराकरण करने का कष्ट उठाते है।
लेख में उधृत तस्वीरे twitter.com से साभार