संक्रमण काल मे भारतीय रेल ने तमाम गाड़ियाँ बन्द कर दी थी, जिन्हें एक-एक कर चलवा दिया। भलेही स्वरूप बदला हो, किराया बढ़ गया हो मगर गाड़ियाँ चल पड़ी।
मध्य रेल के भुसावल मण्डल में स्थानीय यात्रिओंके प्रति बड़ी अनास्था है। वजह है, मध्य रेलवे का मुख्य मार्ग होना और बहुतायत में लम्बी दूरी की गाड़ियोंका चलना। मगर क्या यह कारण उचित हो सकता है, जो स्थानीय सवारी गाड़ियाँ बन्द की गई है, फिरसे न चलवाने की? आज भुसावल – देवलाली भुसावल शटल, भुसावल वर्धा भुसावल सवारी, भुसावल नागपुर भुसावल सवारी, भुसावल पुणे के बीच चलनेवाली हुतात्मा एक्सप्रेस, भुसावल नागपुर वाया खण्डवा दादाधाम एक्सप्रेस, शालीमार लोकमान्य तिलक टर्मिनस एक्सप्रेस और अन्य कई साप्ताहिक गाड़ियाँ अब भी बन्द स्थिति में है।
संक्रमण काबू में किये जाने के बाद जीवन चल पड़ा है, रोजगार पर लोग निकल पड़े है। रोजमर्रा की दौडधूप बढ़ गयी है, ऐसी अवस्था मे स्थानीय लोगोंको उचित गाड़ियाँ उपलब्ध न हो तो? आम रेल यात्री जो रोज रेल यात्रा करता है, कभी नही चाहता की गैरकानूनी तरीकेसे उसे आरक्षित गाड़ियोंमे यात्रा करनी पड़े या छुपते छुपाते अपनी जान जोखिम में डालकर रोजगार पर पहुंचना पड़े। क्या स्थानीय मण्डल रेल अधिकारियोंको, राजनेताओंको यह दिखाई नही देता या वह अन्जान बने रहना चाहते है?
हर रोज तकरीबन एक भी दिन ऐसा नही जाता की ट्विटर पर भुसावल मण्डल व्यवस्थापक ने आरक्षित यात्रिओंकी अनावश्यक, गैरकानूनी भीड़ की शिकायत पर खेद जाहिर न किया हो, माफी न मांगी हो। यह देखना अतिदुखद है, एक उच्च अधिकारी अपने अव्यवस्था के लिए क्षमा तो मांग सकता है मगर यात्रिओंकी उचित व्यवस्था नही कर सकता। यह किस प्रकार की मजबूरी है?
ठीक यही बात स्थानीय राजनेताओंपर भी लागू होती है। रेल अधिकारियों की क्या समस्या है, क्यों वह स्थानीय गाड़ियाँ चलवाने में असमर्थता बरत रहे है, कहाँ गाड़ियाँ अटक रही या अटकाई जा रही है यह जानना, समझना और उसका अपने स्तर पर निराकरण करना क्या यह जिम्मेदारी इन लोगोंकी नही है? यात्री मजबूर है, क्योंकी जून महीने के अंत तक सभी मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमे साधारण टिकटें नही मिलेंगी। साधारण टिकटों वाली गाड़ियाँ एक्का दुक्का चलाई जा रही है जो बिल्कुल ही पर्याप्त नही है। एक तरफ गाड़ियोंकी कमी, दूसरी तरफ आरक्षित टिकट उपलब्ध नही यात्री बेचारा क्या करें?
रेल प्रशासन के पास आरक्षित यात्री की शिकायत पहुंचे तो वह जांच और सुरक्षा दल को भिड़ा देते है। ऐसे में यात्री किसी अनहोनी घटना का शिकार होता है, क्या तब प्रशासन, राजनेता अपनी आँखें खोलेंगे?