Uncategorised

व्यंग : ऑनलाइन टिकटों के संख्या की सीमा बढ़ाने से आपसी भाईचारे पर गहरा असर

भारतीय रेल ने अचानक घोषणा क्या कर दी मेरे दोस्त का मेरी तरफ देखने का नजरिया ही बदल गया। दरअसल अब तक होता यूँ था की मेरे परिवार मे आईआरसीटीसी वेबसाइट की 3 जनों की पंजीकृत आईडी थी और उसके पास अदद एक, बन्दे को महीने मे 4-6 चक्कर गाँव के लगाने पड जाते थे और जब उसकी आईडी का 6 टिकटोंका निर्धारित कोटा समाप्त हो जाता था तो मै ही उसका खिवैया और मै ही उसका तारणहार। “भाई, मेरी एक टिकट बना दे न यार” और बड़े प्यार पुचकार के साथ पेश आना और कृतार्थ वाले भाव रखना, बड़ा मस्त माहौल था। और अब आईआरसीटीसी का कोटा डबल हो रहा है तो बन्दा क्या उसका नेटवर्क भी नॉट रिचेबल हो गया।

दरअसल होता यूँ है, इस्मार्ट वाला मोबाइल तो ‘घर घर मोदी’ की तरह हर हाथ मे ही पहुँच गया है। लेकिन आईआरसीटीसी वाले इतने आसानी से किसी को ‘टच’ थोड़े ही करने देते है? वह क्या गूगल के प्ले स्टोर से ऐप इंस्टाल करने जितना भर थोड़े ही है की ऐप इंस्टाल करे और धड़ाधड़ ‘स्नेक’ वाली गेम घूमने लग जाती है? आईआरसीटीसी के पंजीकरण करने मे बहुतोंके छक्के छूट जाते है। या तो फोन नंबर अटक जाता है या ईमेल आई डी फंस जाती है। ‘कैपचा’ नामक जानी दुश्मन का जिस किसीने भी अविष्कार किया है वह शायद आचार्य शुक्राचार्यजी के गणगोत्र का बेहद करीबी होगा। कैपचा समझने के लिए हमारे ताऊ मैगनीफाइंग ग्लास संभालते है और इस तरह शुक्राचार्य जी आँख फोड़ वेबसाइट के मुख्य मार्ग पर पहुंचा जाता है। पंजीकरण के बैरिकेड से कूदफाँद कर आगे बढ़ भी गए तो बुकिंग के समय फिर कैपचा का भुलभुलैय्या पार करना ही है। आम तौर पर सिर्फ जगह खाली है यह देखना है तो आईआरसीटीसी की वेबसाइट मखखन की तरह चलती है मगर टिकट निकालने की बारी आई तो बड़े नखरे! सिक्योर कनेक्शन ढूँढने या पासवर्ड री चेक नामक अड़ंगे निर्माण हो जाते है। इस ‘सेकंद’ की कीमत तुम क्या जानो बाबू? वाली हालत रहती है। सामने टिकट उपलब्ध दिखती है, बाबू नाम, उम्र, जेंडर बताता है, टिकट की कीमत भी अदा कर देता है मगर ..। मगर फुस्स!! खेल खत्म पैसा हजम अर्थात जगह फुल्ल और पैसा जमा। बैंक खाता खाली वह भी कम्स्कम 4 दिन के लिए।

भाई के पास रोकड़ा तो है लेकिन ई-पेमेंट करने के लिए बैंक खाता ठण्ठनगोपाल। ई-पेमेंट नही तो ई-टिकट भी नही। फिर जाओ पी आर एस पर रेलवे टिकट खिड़की पर या एजेंट के पास। आज तक की आईआरसीटीसी की यह दुश्वारी है और अब जब टिकट बुक करने का कोटा दुगना हुवा है तो पैसा अटकने के चान्स 4 गुने हो गए है और टिकट मिलने के आसार आधे।

हमारे गुरु गणेशजी महाराज कहते है, फोन टेक्नोलॉजी जल्द ही 4 G से बढ़कर 5 G हो रही है टिकट फटाफट बनेंगे मगर रेल ई-टिकटों की माईबाप रेल्वे के सर्वर को कब सुधारेंगी, क्या वह 5 G के साथ दौड़ने वाले होंगे? क्योंकी 4G में भी उनकी चाल बैल से घोड़े की न हो पायी और हम अपेक्षाएं सुपरफास्ट की लगाए है। क्या होगा यह तो आने वाले वक्त मे पता चलेगा, मगर आज की बात निश्चित है, आईआरसीटीसी का कोटा डबल होने से मेरा दोस्त ई-टिकट निकालने की कुश्ती अब खुद लड़ने की सोच रहा है। उसे मेरी बैसाखी आई मीन मेरे आई डी की जरूरत नहीं। भलाई भी खत्म और खुशामत भी गई।

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s