भारतीय रेल की यूँ तो अनेक विशेषताएं, विविधताए है, मगर रेल्वे की चाय, यह देशभर के रेल्वे स्टेशन देख लीजिए एकदम युनीक मिलेगी, बिल्कुल एक जैसी। वही गंध, वहीं रंग और वही स्वाद। क्या स्टेशन के स्टाल और क्या गाड़ी की पेंट्री कार! जो ना पिए वह पछताए और पी लिए तो पक्का ही पछताए !!
खैर, कल से एक पोस्ट वायरल हुई, बड़ा उधम मचा रही है। बन्दे ने भोपाल शताब्दी मे चाय क्या पी ली बिल देख कर चाय की सारी तरावट ही काफ़ुर हो गई। चाय के एक प्याली की कीमत रु 20/- मात्र और सेवा का मोल रु 50/- कुल जोड़कर बिल हाथ पर टीका रु 70/- का। ऐसा कैसे हो सकता है की चाय से जादा उसे पिलाने का खर्च हो और वह भी चाय की कीमत से अढ़ाई गुना ज्यादा? बड़ी बहस छिड़ गई के कैटरिंग ठेकेदारों ने रेलवे में बड़ी लूट मचा रखी है और क्या क्या?

बात पहुंची रेल प्रशासन तक, मगर यह क्या? रेल प्रशासन ने उस पेंट्रीकार के ठेकेदार ने जो चाय के 20 रुपये प्याली और सर्विस के नाम पर पचास रुपये बिल में जोड़े थे, उस बिल को बिल्कुल जायज ठहराया। उन्होंने अपने 2018 के एक परीपत्रक को सामने रखा और नियम बताया। यह नियम इस प्रकार है, राजधानी, शताब्दी या इस तरह की कोई भी प्रीमियम गाड़ी हो, जिसमे टिकट के साथ खानपान के शुल्क भी जोड़े जाते हो और यदि यात्री अपना अग्रिम आरक्षण टिकट बुक करते वक्त खानपान सेवा लेने से मना कर दे और अग्रिम खानपान शुल्क ना दे तो उसे यात्रा के दौरान खानपान की किसी भी वस्तु खरीदने पर, उसकी मांग करने पर 50 रुपये सेवा भार अतिरिक्त रूप से देना होगा फिर वह चाय की एक प्याली ही क्यों न हो। irctc का खानपान विभाग उसका बिल बाकायदा वस्तु सेवा कर जोड़कर उसे देगी।

चूंकि प्रीमियम गाड़ियोंमे खानपान सेवा ऑप्शनल कर दी गयी है तो भैय्या आगे से कोई भी प्रीमियम रेल गाड़ी मे यात्रा करना हो तो खानपान का विचार पहले ही अर्थात टिकट बुक कराते वक्त ही फाइनल कर दे नहीं तो रेल यात्रा के दौरान अन्य यात्रीओं के खानपान की ओर दुर्लक्ष कर पूरी तटस्थता से अपनी रेल यात्रा करें अन्यथा अतिरिक्त 50 रुपये अपनी प्रत्येक खानपान की मांग के साथ जोड़ लीजिए, देने पड़ेंगे।