हमारे देश मे यात्री यातायात का सर्वोत्तम साधन भारतीय रेल है, जो सर्वोपरी होने के साथ साथ अत्यंत किफायती भी है। बीते 5-6 वर्षोंमें रेलवे स्टेशनोंका हुलिया भी स्वच्छ, सुन्दर और आंतरराष्ट्रीय यात्री सुविधायुक्त किया गया है।
रेलगाड़ियाँ और स्टेशनोंका विकास करते हुए एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है, की स्टेशनोंपर यात्रिओंका दबाव दिनोंदिन बढ़ते जा रहा है। यज्ञपी यात्री गाड़ियोंके स्टोपेजेस का समय घटाने हेतु कई उपाय किये गए है, जैसे अब लोको बदलने का झंझट समग्र विद्युतीकरण कार्यक्रम के चलते कई जगह खत्म हो गया है। डिब्बों में पानी भरने की प्रक्रिया उच्च शक्ति के पम्प से बहुत तेजी से की जाती है। गाड़ियोंकी आवश्यक जांच अत्याधुनिक साधनोंसे कर ली जाती है। प्लेटफार्म संख्या में वृद्धि की गई है। यात्री आवागमन हेतु लिफ्ट्स, एस्कलेटर, बैटरीचलित वाहनों का उपयोग किया जाता है। यात्री गाड़ी प्लेटफार्म पर आने से लेकर उसके प्रस्थान तक रेल सुरक्षा बल के जवान यात्रिओंकी सुरक्षा में मुस्तैदी से निरीक्षण करते है।कुल मिलाकर वह तमाम मुद्दों पर नजर रखी जाती है, की यात्री गाड़ी स्टेशनोंपर अनावश्यक समय जाया न करे। इसके बावजूद कई गाड़ियाँ अपने स्टॉपेज पर पहुंचने से पहले स्टेशनोंके बाहर रोकनी पड़ती है।
यह तो हुई बीच मार्ग के स्टेशनोंकी बात मगर बड़े जंक्शन्स जहाँ गाड़ियाँ टर्मिनेट की जाती है या चालाक दल अपनी ड्यूटी बदलता है वहाँ गाड़ियोंका काफी समय जाया होता है। खास कर टर्मिनल स्टेशनोंके लिए अब बड़े स्टेशनोंके दायरे में आने वाले सैटेलाइट स्टेशनोंको टर्मिनलों में बदलने पर जोर दिया जा रहा है। अब तक बड़े मुम्बई, हावड़ा, बेंगलुरू जैसे स्टेशनोंके आसपास टर्मिनल्स बढाये जाने की खबरें हम सुनते थे मगर अब पुणे, नागपुर, भोपाल, सूरत जैसे छोटे महानगरों तक भी यह समस्या आ गयी है। भोपाल में रानी कमलापति टर्मिनल अपना काम शुरू कर चुका है और निशातपुरा स्टेशन का विकास बाईपास स्टेशन के तौर पर किया जा रहा है। बेंगलुरु में भी विश्वस्तरीय सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया टर्मिनल पर गाड़ियाँ बढाने का कार्य शुरू हो गया है। नागपुर के लिए इतवारी और अजनी दोनों दिशाओंके लिए टर्मिनल का काम कर रहे है।
इसी कड़ी में पुणे स्टेशन के लिए मुम्बई की दिशा में पुणे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खड़की स्टेशन का टर्मिनल के रूप में विकास किये जाने की बात चर्चा में है। वैसे पुणे – दौंड के बीच पुणे से 5 किलोमीटर की दूरी पर हड़पसर स्टेशन को भी टर्मिनल बनाने का प्रयास मध्य रेल की ओरसे किया जा रहा है, लेकिन अभी अंगूर बहुत खट्टे है। 😊 चूँकि हड़पसर स्टेशन पर अब तक भी टर्मिनल योग्य तो क्या किसी अच्छे रेलवे स्टेशन के दर्जे की भी यात्री सुविधाएं रेल प्रशासन उपलब्ध नही करा पाया है।
खैर! मूल बात यह है, इन जंक्शन्स बाईपास मार्गो और सैटेलाइट टर्मिनलों की वजह से मुख्य स्टेशनोंपर गाड़ी बदलने वाले यात्रिओंकी बेहद असुविधा होती है। किसी मुख्य स्टेशन से सैटेलाइट टर्मिनल के लिए जाना याने रेल यात्रा के किराए से ज्यादा धन मात्र टैक्सी, ऑटो के किरायोंमे लग जाता है और यात्री के साथ सामान हो तो फिर परेशानियोंका कोई हिसाब ही नही। यात्री उम्रदराज हो, मरीज हो तो वह इन सैटेलाइट टर्मिनल्स की गाड़ियोंको गिनती में ही नही पकड़ता, क्योंकि वह गाड़ियाँ उसके बिल्कुल ही उपयोग की नही रहती।
इन परेशानियोंको देखते हुए एक बात सामने निकलकर आती है। क्यों न गाड़ी की मुख्य जंक्शन पर दो मिनट का स्टॉपेज दे कर उस पार के सैटेलाइट टर्मिनल पर टर्मिनेट किया जाए? उदाहरण के लिए रायपुर, गोंदिया की ओरसे नागपुर की ओर आनेवाली गाड़ियोंको इतवारी की जगह अजनी में और वर्धा से नागपुर की ओर आनेवाली गाड़ियोंको अजनी की जगह इतवारी में टर्मिनेट करना चाहिए। ठीक यही पैटर्न पुणे के लिए भी हो। मुम्बई की ओर से आनेवाली गाड़ियाँ यदि खड़की में टर्मिनेट की गई तो पुणे से आगे सोलापुर, दौंड, बारामती के यात्रिओंकी अपनी अगली यात्रा की रेल के लिए खड़की से पुणे आने की कवायद करनी पड़ेगी जो फिलहाल नागपुर में इतवारी, अजनी टर्मिनल्स की वजह से हो रहा है। जोधपुर में भगत की कोठी, कोटा में सोगारिया, प्रयागराज के छिंवकी यह बुरे या बाईपास टर्मिनल के उदाहरण है।
वैसे मुख्य स्टेशन को पार कर अगले टर्मिनल स्टेशन पर ले जाने की व्यवस्था पटना बिहार, वाराणसी उप्र में भलीभाँति की गई है। पटना के आगे पीछे दानापुर और राजेंद्रनगर टर्मिनल्स है। गाड़ियाँ पटना हो कर अगले स्टेशन पर टर्मिनेट होती है। हम यह समझते है, इससे स्टेशनपर यात्री संख्या का दबाव कम करने के अपेक्षित परिणाम कम होंगे यह निश्चित है मगर यात्री सुविधा में जबरदस्त फायदा होगा।