रेल किरायोंमे वरिष्ठ नागरिकोंके लिए रियायत क्या, किसी भी तरह की रियायतोंकी मांग के लिए आग्रही रहना यह निरी मूढ़ता है। जिन व्यक्तियों के पास सामर्थ्य है, चाहे वह शारिरिक हो, मानसिक हो या साम्पत्तिक हो वह अपनी यात्रा, जीवनयापन रियायतोंके भरोसे नही करता।
रेल प्रशासन, रेल यात्रा के लिए यात्रिओंके पास अनेक पर्याय उपलब्ध कराता है। ग़ैरवातानुकूलित में द्वितीय श्रेणी, द्वितीय श्रेणी सिटिंग, स्लीपर और वातानुकूलित में 3 टियर, 3 टियर इकोनॉमी, 2 टियर और प्रथम श्रेणी। इसके अलावा वातानुकूलित कुर्सी यान, एक्जेक्यूटिव कुर्सी यान। इतना ही नही अनकों वर्ग गाड़ियोंके भी है, जिसमे कम किराया श्रेणी की साधारण मेल/एक्सप्रेस, अन्त्योदय, जनसाधारण, गरीबरथ इत्यादि
फिर क्यों रियायत के लिए हाथ फैलाये जाते है? इसे फलाना छूट दिया, उसे टैक्स में छूट दी यह किस प्रकार के तर्क है? इन चिजोंका, मुद्दोंका वरिष्ठ नागरिकोंकी रियायत से क्या मेल है?
रियायत के हक में आवाज उठाने वाले लोग कहते है, बुजुर्गों के पास धन की कमी होती है। क्या यात्रा के पैसे कम लगने सब पूरा हो जाएगा?
हम भारतीय है, हमारे यहाँ बचत की परम्परा है, परिवार में बुजुर्गों का सन्मान करने की परम्परा है। बुजुर्गों को यात्रा के लिए लेकर जाते है, उन्हें भेजते नही और खर्चा उठाते है, करवाते नही।
हम कभी नही चाहते कि हमारे बुजुर्ग अपने खर्चे में बचत हेतु किसी के भी सामने हाथ फैलाए फिर वह प्रशासन ही क्यों न हो।
प्रशासन खुद से कोई रियायत देती है यह और बात है। आगे उसका उपयोग करना या न करना यह और आगे की बात है लेकिन प्रशासन के नीतियोंपर दुहाई दे दे कर उनसे यात्री किरायोंमे रियायत की भीख मांगना यह कतई सन्मान जनक नही है।
एक उदाहरण है, हमारे देश मे, कुछ सामाज में एक प्रथा है। मृतक की अस्थियाँ जिन्हें फुल कहते है, किसी निकटतम बड़े तीर्थक्षेत्र पर विसर्जित करने ले जाया जाता है। अस्थिकलश के साथ परिवार के 2-4 व्यक्ति जाते है और आपको सुनकर आश्चर्य होगा उस अस्थिकलश का भी यात्री के समान अलग से टिकट, आरक्षित किया जाता है।