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सारी गाड़ियाँ चल पड़ना, रेल यात्रिओंके लिए कितना जरूरी!

रेल प्रशासन ने हाल ही में अपने सभी क्षेत्रीय रेलवे मुख्यालयों को आग्रह किया की संक्रमण पूर्व परिचालित सभी यात्री गाड़ियोंको शीघ्रता से पुनर्बहाल करें।

संक्रमण पूर्व काल मे ग़ैरउपनगरीय क्षेत्र मे, तकरीबन 2800 यात्री गाड़ियाँ परिचालित हो रही थी, जिसमे 2300 गाड़ियाँ पुनर्स्थापित हो चुकी है और बची 100 मेल/एक्सप्रेस एवं 400 सवारी गाड़ियाँ 10 अगस्त के पहले पहले पटरी पर आ जायेगी ऐसा प्रयास चल रहा है। यात्रिओंकी गाड़ियोंकी मांग ही इतनी जोरदार है, की रेल प्रशासन को इन गाड़ियोंको पटरियों पर लाना आवश्यक हो गया है।

हालांकि रेल प्रशासन का शून्याधारित समयसारणी कार्यक्रम जो ZBTT इस संक्षिप्त नाम से बहुप्रचलित है, उसके अनुसार रद्द गाड़ियाँ, मेल/एक्सप्रेस में तब्दील गाड़ियाँ या मार्ग परिवर्तन, टर्मिनल्स में बदलाव और बीच के छोटे स्टेशनोंके ठहरावोंको रद्द करना इत्यादि मदों पर भी कार्रवाई कर लागू किया जा रहा है। सवारी गाड़ियोंको मेमू/डेमू गाड़ियोंमे बदल कर उन्हें विशेष मेल/एक्सप्रेस में बदला गया है और सवारी गाड़ियोंके अत्यंत किफायती किरायोंकी यात्रा के दिन लदते नजर आ रहे है।

दूसरा लम्बी दूरी की और परिचालनों में बाधा उत्पन्न करनेवाली गाड़ियोंको ZBTT में रद्द करने का प्रस्ताव था, वह गाड़ियाँ भी उन 500 प्रतीक्षित गाड़ियोंकी सूची में शामिल है। ZBTT कार्यक्रम में नियमित मेल/एक्सप्रेस, सवारी गाड़ियोंके समयसारणी की पुनर्रचना इस तरह की गई थी के रेल प्रशासन अपनी निजी गाड़ियोंको रोल-आउट कर सके मगर निजी गाड़ियोंके प्रस्तावोंको जिस तरह रेल प्रशासन की अपेक्षाएं थी उस कदर प्रतिसाद नही मिला है और यह हकीकत है।

अब चूंकि निजी गाड़ियाँ, जिनका सब्ज़बाग सोशल मीडिया रेल प्रेमियों और यात्रिओंको कई बार परोस चुका है, वह शायद ही धरातल पर आनी है। जो कुछ निजी गाड़ियाँ आईआरसीटीसी के माध्यम से रेल प्रशासन चलाने का प्रयास कर रही है वह भी अपेक्षाकृत आय नही दे पा रही है, अपितु घाटे में चल रही है। हम भारतीय रेल के यात्रिओंकी मानसिकता भलीभाँति समझते है, निजी सेवा याने महंगी या उच्च वर्गोंके लिए सीमित यह है और सरकारी सेवाओं में चाहे कितनी ग़ैरव्यवस्थाऐं हो, वह सम्मति प्राप्त है क्योंकि सरकारी सेवाओं में हम भारतीय लोग अपना जुगाड़ 😊 यों न त्यों चला ही लेते है। सरकारी व्यवस्था में निम्न, अति निम्न वर्ग से लेकर उच्च और अति उच्च वर्ग तक सब बड़ी आसानी से विचरते है। अपने अपने जुगाड़ से अपनी यथासंभव व्यवस्था कर रेल यात्राओंको सम्पन्न करते है।

इस स्थिति में क्या रेल प्रशासन कड़ाई से अपने निजी गाड़ियोंको जामा पहना पाएगा या ZBTT की रद्द की गई गाड़ियोंको राजनीतिक दबावोंके आगे फिर से पटरियों पर ले आयेगा यह बड़ा प्रश्न है। मुम्बई – पुणे प्रगति एक्सप्रेस, मुम्बई – मनमाड़ गोदावरी एक्सप्रेस इस तरह के दबावोंके चलते फिर से पटरियों पर लौट आयी है। इसी तरह बाकी बची गाड़ियोंकी भी मांग लगातार हो रही है। समय बदलाव, स्टोपेजेस की पुनर्बहाली, भले ही वह प्रायोगिक तौर पर 6 – 6 माह के लिए ही क्यों न हो, दी जा रही है।

आगे दबावोंके चलते, इस शून्याधारित समयसारणी के प्रस्तावोंको जिस तरह से बगल दी जा रही है, प्रस्तावोंके सारे फायदे एक तरफ हो कर कहीं यह कार्यक्रम ही रेल विभाग की स्टैबलिंग लाइन में न चला जाये!

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