मुम्बई उच्च न्यायालय के नागपुर बेंच में एक यात्री ने रेल विभाग पर तत्काल टिकट योजना को लेकर दावा करने की खबर आयी है। उक्त दावे में न्यायालय ने रेलवे मुख्यालय को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया है।
गौरतलब यह है, रेल विभाग की तत्काल योजना 1997 में तत्कालीन रेल मंत्री मा. नीतिश कुमार के कार्यकाल में लायी गयी। तत्काल किराया श्रेणी मे, सामान्य टिकिटोंके मूल किरायोंसे, द्वितीय श्रेणी मे 10% और बाकी सभी श्रेणियों मे 30% अतिरिक्त किराया जोड़ा जाता है। इसके अलावा दूरी की सीमा भी तय की गई है। तत्काल किराये किस तरह तय होते है इसके लिये निम्नलिखित चार्ट देखिए,

भारतीय रेल्वे मे अग्रिम आरक्षण अवधि 120 दिन की है, पर्यटन करनेवाले यात्रीओंके लिए तो यह ठीक है मगर तुरतफुरत काम निमित्त, कम अवधि की सूचना मे यात्रा के लिए निकल पड़ने वाले यात्रीओं के लिए इस तत्काल सेवा का आविष्कार किया गया। तत्काल टिकटों की बुकिंग गाड़ी के प्रारम्भिक स्टेशन से छूटने की तिथि से 1 दिन पहले शुरू होती है। वातानुकूलित वर्गों के लिए सुबह 10:00 बजे और गैरवातानुकूलित वर्गों के लिए सुबह 11:00 बजे बुकिंग खुलती है। तत्काल टिकटें PRS काउंटर्स के साथ साथ आईआरसीटीसी के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी एक साथ शुरू होती है। गाड़ी की कुल आसन व्यवस्था के करीबन 30% आबंटन तत्काल सेवा के अतर्गत किया जाता है। अर्थात 100 आसन मे से 30 तत्काल कोटे के लिए आरक्षित रहती है। तत्काल स्कीम के उत्साही परिणाम दिखाई देने के बाद 2014 मे प्रीमियम तत्काल योजना लाई गई। इसमे तत्काल कोटे मे आरक्षित रखी गये आसनों से 50% आसन प्रीमियम तत्काल कोटे के लिए बाँट दिए गए। यह प्रीमियम तत्काल कोटा हवाई यात्रा की टिकट बुकिंग अनुसार किराया बढ़ाता है। जितनी मांग बढ़ेगी उतना ही किरायों मे प्रीमियम की बढ़ोतरी होगी।
तत्काल और प्रीमियम तत्काल मे मूलभूत फरक किरायों का तो है ही मगर प्रीमियम तत्काल टिकट मे प्रतीक्षा सूची नहीं होती सारे टिकट केवल कन्फर्म ही दिए जाते है। वहीं कन्फर्म तत्काल टिकटों के तरह ही यह टिकट भी रद्द नहीं किए जा सकते या रद्दीकरण पर कोई रिफ़ंड नहीं दिया जाता। तत्काल टिकट मे प्रतीक्षा सूची का टिकट आबंटित होता है और चार्ट तैयार किए जाने तक भी यदि टिकट प्रतीक्षासूची मे ही रह गया हो तो नियमानुसार धनवापसी भी की जाती है। यह तो तत्काल और प्रीमियम तत्काल टिकटों की सामान्य जानकारी हुई, अब हम फिर हमारी उस खबर की ओर बढ़ते है।
उक्त यात्री ने न्यायालय मे अपने नागपूर से वर्धा के यात्री टिकट का उदाहरण दिया है। नागपूर – वर्धा यह अंतर 78 किलोमीटर है। नियमानुसार स्लीपर क्लास मे 200 किलोमीटर मिनिमम अंतर की टिकट लेना पड़ता है तो उसके मूल किराये 124 और 20 रुपये आरक्षण के ऐसे कुल 145 की टिकट बनेगी। तत्काल टिकट मे मिनिमम अंतर 500 किलोमीटर होता है, अतः 275 रुपये मूल किराया और 100 रुपये तत्काल चार्ज ऐसे 375 रुपये लगेंगे और वहीं प्रीमियम तत्काल श्रेणी मे टिकट लेंगे तो किराया प्रीमियम के साथ बढ़ते बढ़ते 975 तक भी जा सकता है जैसा की खबर मे दावा किया गया है।
मित्रों, मामला न्यायलायाधीन है इसीलिए हम इसपर कोई भी टिप्पणी करना योग्य नहीं। जहाँ तक आम यात्री की बात की जाए तो वह बेचारा टिकटों के विविध दर और प्रकार को समझ कर इतनी कम दूरी के लिए तत्काल या प्रीमियम तत्काल के कतार मे खड़ा नहीं होगा वह या तो अन्य रेल गाड़ी के बुकिंग की उपलब्धी खंगालेगा या सड़क मार्ग का रुख करेगा। किसी मंजिल पर पहुँचने के लिए राहें बहुत सी है। रही बात विशिष्ट गाड़ी मे और विशिष्ट आरक्षित वर्ग मे ही यात्रा करने की सबल इच्छा हो तो रेल विभाग भी आखिर क्या करें? हमे तो लगता है, रेल विभाग अपने टिकटों को बेचने के लिए यात्रीओं को प्रोत्साहित कम और हतोत्साहित ही ज्यादा करता है, यकीन न हो तो आईआरसीटीसी की बुकिंग मे कैपचा से थोड़ी टक्कर ले कर देख लीजिए।