आजकल मेल/एक्स, सुपरफास्ट या अन्य यात्री गाड़ियोंके, मार्ग के, स्टेशनोंके स्टोपेजेस को लेकर बड़ा हंगामा चल रहा है। दरअसल यह मुद्दा संक्रमण काल के बाद गाड़ियोंके पुनर्स्थापित किये जाने के बाद हुवा है। संक्रमण काल मे कई गाड़ियोंके बीच मार्ग के स्टोपेजेस रद्द किए गए थे और जब गाड़ियाँ लौटी तो उन्हें पुनर्स्थापित नही किया गया। यात्री, यात्री संगठन और स्थानीय राजनियिक अपना दमखम लगाकर इन सारे रद्द हुए स्टोपेजेस को फिर से लौटाने के जद्दोजहद में लग गए। चूंकि रेल प्रशासन का शून्याधारित समयसारणी कार्यक्रम भी चल रहा है और उसी के अंतर्गत कुछ स्टोपेजेस रद्द किए जाने है।
जब राजनयिक इन मुद्दों को लेकर रेल प्रशासन से भिड़ने लगे तो रेल प्रशासन ने अपनी नीति ज़ाहिर कर दी। निम्नलिखित पत्र देखिए,
रेल प्रशासन यह बताने का प्रयत्न कर रहा है, “दो मिनट का कोई एक स्टोपेज यात्री गाडीको कितने में पड़ता है” रेल विभाग ने एक गणित बनाया है। एक गाड़ी के स्टोपेज के लिए उक्त स्टेशन की, वांछित गाड़ी की टिकट बिक्री अनुमानित रकम ₹16672/- से लेकर ₹ 22442/- तक होना आवश्यक है।

प्रपत्र का अगला हिस्सा यह समझाता है, उपरोक्त लागत किस तरह आंकी गयी है। रेल यात्री गाड़ियोंमे दो तरह के लोको अर्थात इंजिन लगाए जाते है। जिस मार्ग का ऊपरी विद्युतीकरण हुवा है, वहाँ इलेक्ट्रिक लोको और अन्य मार्ग पर डीज़ल लोको। यात्री गाड़ी जिनके 18, 20 या 24 डिब्बा संरचना है और अनुमानित गती 100 – 120 प्रति घंटा है, जिसके 2 मिनट के होल्ट के लिए गती को कम करना, रुकना और फिर चल कर अपनी निर्धारित गति को धारण करना इसके लिए 8 मिनट की आवश्यकता पड़ेगी। अर्थात 2 मिनट का हॉल्ट और गति के उतार-चढ़ाव के 8 मिनट ऐसे कुल 10 मिनट के लिए डीज़ल लोको वाली गाड़ी को 106 से 118 लीटर इन्धन लगेगा और वही इलेक्ट्रिक लोको के 130 से 182 यूनिट खर्च होंगे।
इसके अलावा हॉल्ट का दूसरा पहलू है, गाड़ी के गति की निरन्तरता का टूटना। यदि गाड़ी हॉल्ट न लेते हुए निकल जाती तो कमसकम 10 किलोमीटर आगे चली जाती। अतः रेल विभाग उसे परिचालन हानि में गिनता है और उसकी भी रकम उपरोक्त खर्च में जोड़ता है। आप निम्नलिखित चार्ट देख सकते है,

कुल मिलाकर जिन स्टेशनोंके यात्रिओंका, अपने पुराने होल्ट्स पुनर्स्थापित करने का प्रयास चल रहा है, उन्हें रेल विभाग का यह नियम बड़ा ही भारी जानेवाला है।