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भारतीय रेल की यात्री गाड़ियोंमे दिन ब दिन कम होते द्वितीय श्रेणियों के कोच

भारतीय रेल भारत के आम यात्रिओंके लिए एकमात्र किफायती और सुव्यवस्थित यातायात का साधन है। चाहे वह उपनगरीय यात्रा हो, कम दूरी की आकस्मिक/रोजाना यात्रा हो या लम्बी दूरी की कभी कभार करने वाली यात्रा हो रेल गाड़ियोंको कोई पर्याय नही। बीते 2-3 वर्षों पहले तक रेल यात्रा करना याने द्वितीय श्रेणी का टिकट, टिकट खिड़की से खरीदों और रेल गाड़ी में सवार होकर चल पडो बस ऐसा था। कुछेक यात्री अपनी रेल यात्रा सुनियोजित तरीकेसे करते तो वह आरक्षण करा लेते थे और कुछ उच्च श्रेणी के इच्छुक वातानुकूल में आरक्षण कर यात्रा करते थे। कुल मिलाकर यह था की भारतीय रेल बड़ी ही “पेसेन्जर फ्रेंडली” लगा करती थी।

संक्रमण का रेला क्या आया और रेल व्यवस्था का सारा ढर्रा ही बदलने लगा। साथ ही रेल विभाग के शून्याधारित समयसारणी और रेल गाड़ियोंके संरचना का मानकीकरण कार्यक्रम चल पड़ा और रेल यात्रा करना सर्वसाधारण बात नही रह गयी। संक्रमण काल मे लगभग पूरे वर्षभर रेल प्रशासन ने अपनी तमाम यात्री गाड़ियाँ आरक्षित कर दी थी। सामान्य टिकट दुर्लभ था और सामान्यतः रेल यात्रा भी। उसके बाद यज्ञपी सामान्य टिकट शुरू किए गए मगर गाड़ियोंके सामान्य कोच याने द्वितीय श्रेणी के जनरल डिब्बे दिनोंदिन कम किए जाने लगे। सवारी गाड़ियाँ मेल/एक्सप्रेस श्रेणी में बहाल की गई और आम रेल यात्री यह बदलाव देखकर भौचक रह गया।

सिर्फ इतना होता तब तक भी सहनीय होता मगर परेशानियां और भी बढ़ ही रही है। सामान्य मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंसे न सिर्फ द्वितीय श्रेणी बल्कि सामान्य मध्यम वर्ग यात्रिओंके स्लीपर कोच भी सम्पूर्ण गाड़ी में, घटते घटते नाममात्र 2 या 3 कोच रह गए है। एक भद्दी सी कहावत याद आती है, ‘नंगा नहायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या?’ मात्र 2-3 स्लीपर कोच में लम्बी डेढ़ दो हजार किलोमीटर यात्रा करने वाली गाड़ियोंमे क्या तो लम्बे दूरी के यात्री टिकट बुक कराएंगे और क्या बीच स्टेशनोंको कोटा बचेगा? उसमे भी 25/30% तत्काल और प्रीमियम तत्काल के लिए आरक्षित रहती है। यानी बुकिंग खुलते ही प्रतिक्षासूची शुरू यह हालात है।

रेल विभाग सामान्यजनों के स्लीपर कोच लगभग बन्द करने के कगार पर है। वैसे भी 22 कोच की गाड़ी में 2 कोच स्लीपर अर्थात आटे में नमक बराबर मात्रा रह जाती है। वातानुकूल 3 टियर के कोच बढ़ाये जा रहे है। उसमे भी रेल प्रशासन यह सोचती है, उन्होंने वातानुकूल इकोनॉमी नामक एक अलग श्रेणी का अविष्कार किया है वह स्लीपर के यात्रिओंको अनुकूल रहेगी। मगर जब मुख्यतः वातानुकूल 3 टियर और वातानुकूल इकोनॉमी के किरायोंमे मात्र 7-8% का ही फर्क हो और सुखसुविधा (कम्फर्ट) में बहुत अंतर हो तो कौन भला इकोनॉमी कोच को प्रधानता देगा? पहले तो उन इकोनॉमी कोच में यात्रिओंको बेडरोल की भी सुविधा उपलब्ध नही कराई गई थी लेकिन रेल प्रशासन के जड़ बुद्धि में कुछ उजाला कौंधा की हाल ही में, 20 सितम्बर से 3E कोच में भी यात्रिओंको बेडरोल उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है।

दूसरा महत्वपूर्ण विषय यह भी है, भारतीय रेल के यात्री सामान्यतः मध्यम श्रेणी के आम लोग बहुतायत है और जिस तरह से रेल विभाग अपना रूप बदलते जा रहा है, वही की वातानुकूल कोचेस में बढ़ोतरी, वन्देभारत श्रेणी की प्रीमियम गाड़ियाँ, कहाँतक आम यात्री का दायरा पोहोंच पाएगा? राजनेता, रेल यात्री संगठन बढ़चढ़कर वन्देभारत गाड़ियोंकी मांग करने में जुटे है, जो नही वह सोचता है, उसके प्रभाग से वन्देभारत गाड़ी चले, मगर क्या वन्देभारत जैसी प्रीमियम गाड़ी के किराये उनके इलाके के यात्रिओंको पोसाने वाले है? क्या वन्देभारत गाड़ी उनके क्षेत्र के छोटे छोटे स्टेशनोंके यात्रिओंको सेवा दे पाने वाली है? क्या वन्देभारत गाड़ी हर 25/50 किलोमीटर के ठहरावोंके साथ चलेंगी? की वन्देभारत शुरू किए जाने के बाद किराया घटाने और स्टोपेजेस बढाने के लिए अलगसे आंदोलन शुरू किए जाएंगे?

मित्रों, हम सिर्फ रेल विभाग में आने वाले बदलावों की आहट समझाने और समझने का प्रयास भर कर रहे है। एक तरफ द्वितिय श्रेणी और स्लीपर कोचों के लिए आक्रोशित यात्री नजर आते है तो दूसरी ओर वन्देभारत जैसी प्रीमियम गाड़ियोंके लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने वाले राजनेता। बस देखते जाना है, यह चित्र किस तरह मूर्त स्वरूप साकार करेगा? शेष शुभ!

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