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हम, हमारे ही उत्पाद पर गर्व नही कर सकते?

वन्देभारत एक्सप्रेस चलते हुए पटरी पर आए मवेशियों से टकरा गई और उसके सामने के कवर का नुकसान हो गया। खैर हमारे भारतीय रेल के तकनीशयन ने इसे चन्द घंटोंमे राइट कर रवाना किया। यूँ तो इस वाकये पर कई तस्वीरें और तरह तरह के ट्वीट्स आ चुके है अतः उसमे हम नही जायेंगे बस एक विचार आपके सामने रख रहे है।

सुरक्षा मानकों पर वन्देभारत का पूरी तरह से परीक्षण किया गया है। इसे उच्च गति और तीव्र पिकअप के लिए डिज़ाइन किया गया है। गाड़ी का बुनियादी ढांचा कहीं भी क्षतिग्रस्त नहीं है, यह मजबूत है। यह केवल कवर है जो क्षतिग्रस्त है और रेलवे तकनीशियनों को इसे बदलने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया गया है, कोई चिंता नहीं है।

इतनी रफ्तार से ट्रेनें चलाने के लिए इसी तरह की सामग्री की जरूरत होती है लेकिन इन चीजों में यात्रियों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाता है. इतना ही नहीं रेल प्रशासन ने पहले ही ट्रेन निर्माण के दौरान रेल लाइन पर बाड़ लगाने का आश्वासन दिया था, लेकिन इसे शुरू करने की जल्दी में बाड़ पर ध्यान नहीं दिया गया है.

खैर, हमें पता होना चाहिए कि यह हमारा होम प्रोडक्शन है। पता नहीं, हममें से कुछ लोग यह क्यों साबित करने पर उतारू होते है कि यह एक खटारा, नकारा चीज है?

कवर वगैरा का नुकसान होने के बावजूद जब रेलवे ने ट्रेन कैंसिल या लेट नहीं की तो रेल कर्मचारियों की तारीफ होना चाहिए या नहीं? जबकी हम में से कई लोग यह साबित करने पे तुले है, की फाइबर की फुस्सी गाड़ी बनाई गई है। क्या हमें ही हम पर भरोसा नही, जबकी 2 वन्देभारत रोजाना 160 की गति से दौड़ रही है। तीसरी भी पटरी पर चलना शुरू हो गयी है।

वन्देभारत गाड़ी हमारे भारतीय रेलवे की शान, हमारा गर्व होना चाहिए, है भी।

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