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‘द रॉयल टिकट’

रेल में यात्रा करने हेतु ऐसा टिकट चाहिए की यात्री को किसी भी वर्ग, कोई भी मार्ग, कोई भी यात्री गाड़ी में यात्रा करने से रोंका न जाये। वह चाहे तो अपनी यात्रा जारी रखे या किसी जंक्शन पर उतर कर कोई दूसरी यात्री गाड़ी में सवार हो जाये।

है न मजे की टिकट? मित्रों, ऐसी टिकट केवल विदेशी नागरिकोंको मिल सकती है, उसका नाम है “इंडरेल टिकट” इस टिकट में केवल यात्रा की अवधि और वर्ग अंकित होता है। यात्री चाहे, उस मार्ग, यात्री गाड़ी और टिकट उच्चतम वर्ग की हो तो चाहे उस वर्ग में अपनी रेल यात्रा कर सकता है।

मगर, यात्री के पास धन खर्च करने की क्षमता और मजबूत इच्छाशक्ति, शारारिक बल हो तो द्वितीय श्रेणी का टिकट भी लगभग इसी तरह काम दे सकता है। उदाहरण के लिए मुम्बई से हावडा वाया नागपुर की द्वितीय श्रेणी टिकट लेकर यात्री प्लेटफार्म पर अपनी रेल यात्रा करने पहुंचता है। उसे जरूरी नही है की वह सीधी हावडा की ही गाड़ी में यात्रा करें। वह जो प्रथम उपलब्ध यात्री गाड़ी जो उस मार्ग पर चलनेवाली हो, चाहे मनमाड़, भुसावल, नागपुर तक चले अपनी यात्रा शुरू कर सकता है। प्रत्येक जंक्शन पर उसे गाड़ी बदलकर आगे बढ़ना होगा। रही बात जगह की तो उसे प्रत्येक यात्रा खण्ड के लिए TTE से मिल अपनी आसन व्यवस्था करनी पड़ेगी अन्यथा अनारक्षित कोच में तो वह किसी तरह से यात्रा कर ही सकता है।

आजकल प्लेटफार्म टिकट के भी चर्चे हो रहे है, यात्री यह टिकट खरीदकर जिस तरह भी चाहे, अपनी रेल यात्रा को अन्जाम दे सकता है। यूँ तो इस सम्बंध का नियम नया नही अपितु काफी पुराना है। पहले प्रिप्रिन्टेड, कार्ड टिकट होते थे, जिनकी उपलब्धता हमेशा ही नही रहती थी। तब टिकटबाबू BPT ब्लैंक पेपर टिकट बनाकर यात्री को दे देते थे। मगर अब सारी रेल प्रणाली कम्प्यूटराइज्ड हो गयी है, जिस स्टेशन की मांग हो, टिकट बनाई जा सकती है। संक्रमण के काल मे गाड़ियोंमे यात्री टिकट नही मिल रही थी, सभी गाड़ियाँ केवल आरक्षित आसन व्यवस्था में चलाई जा रही थी इस स्थिति में यात्री के पास केवल एक ही पर्याय था की प्लेटफार्म टिकट खरीद कर गाड़ी पर पहुंचे, TTE को अपनी स्थिति बताकर, यात्रा टिकट बनवाकर यात्रा करें। आम दिनोंमें भी अपने बोर्डिंग स्टेशन को साबित करने के लिए ‘प्लेटफार्म टिकट’ ही सबसे वैध सबूत है। अब वह टिकट जाँच दल के विवेक पर निर्भर करता है, की वह यात्री को दण्डित कर टिकट बनाये या सर्वसाधारण टिकट बनाये।

दूसरा मुद्दा ‘गार्ड सर्टिफिकेट’ वाला भी होता था। यात्री गाड़ी का गार्ड, जिसे अब ट्रेन मैनेजर कहते है, यात्री गाड़ी का इंचार्ज होता है, उससे अनुमति लेकर यात्री गाड़ी में यात्रा कर सकता है। इसमे गार्ड सम्बन्धित TTE या स्टेशन मैनेजर को सूचना देकर यात्री से टिकट शुल्क वसुल करवाएगा।

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