JAN 1, 2023, SUNDAY
PAUSH SHUKLA PAKSHA, DASHAMI,
रविवार, पौष, शुक्ल पक्ष, दशमी, विक्रम संवत. 2079
रेल प्रशासन के अभ्यासानुसार रेल टिकटोंका 80% व्यवहार ऑनलाइन किया जा रहा है। जिसमे आईआरसीटीसी की वेबसाइट, ऍप, UTS इत्यादि शामिल है। जब ऑनलाइन लेनदेन से टिकट बुकिंग की जा रही है तो कुछ प्रश्न प्रशासनिक दक्षता के लिए अनुत्तरित है। आइए, समझते है।
टिकटोंका ऑनलाइन लेनदेन अर्थात रिफण्ड के लिए सुविधाजनक। चूँकि ऑनलाइन लेनदेन में यात्री का बैंक खाता रेल प्रशासन के पास पहुंचता है और धनवापसी की अवस्था मे तुरन्त ही व्यवहार पूर्ण किया जा सकता है। यह न सिर्फ यात्री के लिए सुविधाजनक है अपितु रेल प्रशासन के लिए भी बेहद कारगर है।
ऐसा क्यों? यह समझने के लिए हमे रेल टिकट आरक्षण की प्रणाली को समझना होगा। रेल टिकटोंका आरक्षण दो प्रकार से किया जाता है। ऑनलाइन और ऑफलाइन लेनदेन। ऑनलाइन में आईआरसीटीसी के ऍप, वेबसाइट या अन्य आईआरसीटीसी से संलग्न ऍप/वेबसाइट से यह व्यवहार होता है। यह व्यवस्था सम्पूर्णतः डिजिटल प्रक्रिया होती है। टिकट छापने की आवश्यकता नही रहती। दूसरा प्रकार ऑफलाइन टिकिटिंग अर्थात PRS पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम रेलवे के काउन्टर्स पर दैहिक चलन, फिजिकल करेंसी देकर यात्री टिकट खरीदता है। टिकट वहीं काउन्टर्स पर छापकर दिया जाता है।
अब अव्यवस्था यहाँसे शुरू होती है। टिकटें कोई भी हो वह कन्फर्म्ड है तब तो ठीक है मगर प्रतिक्षासूची में अंकित हो तो ऑनलाइन टिकटें चार्टिंग के वक्त अपनेआप रद्द की जाती है और PRS टिकट अपनेआप रद्द नही की जाती। हालाँकि रेल नियमानुसार प्रतिक्षासूची की प्रत्येक टिकट का PNR गाड़ी के चार्टिंग स्टेशन से छूटने के नियोजित समय से 30 मिनट बाद ड्रेन याने रद्द हो जाता है और हर वह यात्री जो इस रद्द PNR के जरिये यात्रा कर रहा है वह नियमानुसार बिना टिकट दण्डित किया जा सकता है।
प्रतिक्षासूची के PRS टिकटधारक यात्री को यह गलतफहमी रहती है, उसके पास सम्पूर्ण देय रकम का टिकट है और वह रेल में यात्रा कर सकता है। वह यात्री उसका जिस वर्ग का प्रतिक्षासूची का टिकट है उसी श्रेणी में जबरन यात्रा करने का प्रयत्न करता है। हालाँकि न सिर्फ उसके आरक्षित वर्ग में अपितु द्वितीय अनारक्षित वर्ग में भी वह बिनाटिकट यात्री ही है, इस तरह की रेल यात्रा करना सर्वथा ग़ैरकानूनी है और उसे बिना टिकट दण्डित किया जा सकता है। क़ानूनन उसे रेल यात्रा आरम्भ करने से पहले अपने प्रतिक्षासूची टिकट को रद्द कर धनवापसी करा लेनी है और यदि यात्रा करनी है तो अनारक्षित टिकट खरीद कर आगे रेल यात्रा आरम्भ करनी है।
होता क्या है, PRS प्रतिक्षासूची का यात्री यह समझता है, उसने रिफण्ड लिया नही है अतः वह नियमित टिकट धारक है और वह अपने खरीदे आरक्षित वर्ग में यात्रा करने के लिए प्रयत्न कर सकता है या कमसे कम द्वितीय श्रेणी अनारक्षित वर्ग में तो जा ही सकता है। मगर यह उसका भ्रम है। चुँकि रेल प्रशासन के टिकट जाँच दल की अनुप्लब्धता कहे या अनदेखी ऐसे प्रतिक्षासूची टिकट धारक आरक्षित वर्ग के नियमित यात्रिओंको परेशान करते रहते है।
इसका उपाय क्या हो सकता है? ध्यान से समझे। भारतीय रेलोंमें टिकिटिंग 80% ऑनलाइन लेनदेन से हो चुकी है तो रेल प्रशासन निम्नलिखित कदम उठा सकती है। PRS काउन्टर्स पर डिजिटल पेमेन्ट अनिवार्य रूप से लागू करना, टिकट को केवल डिजिटलाइज्ड करना, प्लेटफॉर्मोंपर एवं आरक्षित यानोंमें यात्रिओंकी एन्ट्री बारकोड/ क्यू आर कोड से सुनिश्चित करना, टिकट जाँच पद्धति का विकेंद्रीकरण कर जाँच अधिकारी बढाना इत्यादि।
हम यह कदापि नही मानते की उपरोक्त सारे उपाय आम यात्री के रेल यात्रा करने में परेशानी की सबब बनेंगे अपितु जेन्युइन, प्रमाणित रेल यात्री की बहुत सी असुविधाएँ खत्म होगी और रेल प्रशासन द्वारा यात्रिओंको दी जाने वाली सुखसुविधा में भी बढ़ोतरी होगी। अवांछित तत्त्वों पर लगाम कसी जाएगी। पीछे रेलवे प्लेटफार्म पर गैरकानूनी रूपसे काम करनेवाले अवैध विक्रेताओं पर भी बारकोड मुद्रीत पहचान पत्र अनिवार्य किये जाने के लेख अनुसार कार्यवाही हुई और कई अवैध विक्रेता धराये गए, दण्डित किये गए और उनकी संख्यापर काफी हद तक अंकुश लगा है।
रेल प्रशासन जिस तरह यात्रिओंके लिए उच्चतम सुविधाओं में बढ़ोतरी करती चली जा रही है, जरूरी है, की यह सारी सुविधाएं केवल और केवल वास्तविक यात्रिओंको ही मिलती रहे।