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रेलवे प्लेटफार्म की इस ‘सफाई’ की अब आवश्यकता है।

08 फरवरी 2023, बुधवार, फाल्गुन, कृष्ण पक्ष, तृतीया, विक्रम संवत 2079

हाल की खबर है, मुम्बई के कल्याण स्टेशन पर प्लेटफार्म क्रमांक 4 और 5 ‘सफाई’ जारी है। आप कहेंगे, बीते 5, 7 वर्षोंसे लगभग सभी रेलवे स्टेशन काफी साफ-सुथरे दिखाई देने लगे है, फिर कल्याण में ऐसा क्या है?

कल्याण स्टेशन मध्य रेल का बेहद व्यस्त जंक्शन है। इसके 4/5 क्रमांक के प्लेटफार्म पर दिनभर में तकरीबन 277 गाड़ियोंका आवागमन चलता है, जिसमे सौ से ज्यादा मेल/एक्सप्रेस और मेन लाइन की उपनगरीय गाड़ियाँ शामिल है। यह आइलैंड प्लेटफार्म अर्थात प्लेटफार्म के दोनों दिशाओं में रेल पटरियाँ, क्रमांक 4 पर मुम्बई से कर्जत, पुणे और कसारा, नासिक की ओर जानेवाली गाड़ियोंके लिए और प्लेटफार्म क्रमांक 5 उपरोक्त मार्गोंसे मुम्बई की ओर जानेवाली गाड़ियोंके लिए उपयोग किया जाता है। आसानी से समझा जा सकता है, कितनी भीड़ इन प्लेटफार्म पर रहती होगी। आँकड़े बताते है, करीबन 2 लाख लोग प्लेटफार्म 4/5 का उपयोग करते है।

कल्याण स्टेशन के इस आईलैंड प्लेटफार्म पर, बीचोंबीच करीबन 750 वर्ग मीटर की जगह को घेरे ब्रिटिश काल से बने रेल्वेके 3, 4 कार्यालय बने हुए थे। जिसमें सहायक स्टेशन मास्टर, टिकट जांच, रेल सुरक्षा बल इत्यादि कर्मियोंके कामकाज चलते थे। इन दफ्तरों की वजह से 7 मीटर चौड़ा प्लेटफार्म सिकुड़कर 2-2 मीटर का रह गया था। यात्रिओंको गाड़ी पकड़ने, गाड़ी के आने के बाद डिब्बा ढूंढ उसमे सवार होने में बहुत तकलीफ़ होती थी। साथ ही सम्बंधित कार्यालय के कमियोंको भी असुविधाएँ हो रही थी। यात्री गाड़ी में सवार न होने की सूरत में ACP अलार्म चेन पुलिंग की जाती थी। पता चलता है, मध्य रेल पर चेन पुलिंग के मामलोंमें कल्याण स्टेशन का आँकड़ा सबसे ज्यादा है। आखिरकार रेल प्रशासन ने इस जगह को यात्रिओंके हित मे खाली करने का निर्णय लिया और वहीं सफाई अभी जारी है।

फिर हम और कौनसी ‘सफाई’ की बात करना चाहते है? जी, बिल्कुल ठीक सोच रहे है आप। यात्रिओंके मन की ही बात है। कल्याण जैसे ही अनेकों व्यस्ततम स्टेशनोंपर, प्लेटफार्म के बीचोंबीच लगे कैन्टीन, खानपान के ठेले, उनसे जुड़े खोमचे वाले विक्रेता गाड़ी के प्लेटफार्म पर प्रवेश करते ही अधिकृत यात्रिओंसे ज्यादा भीड़, होहल्ला मचाते है, इन पर रेल प्रशासन क्या सोचता है?

स्टेशनोंपर अस्वच्छता फैलानेवाले अनेक तत्वों में प्रमुख, खाद्यान्न के गुणवत्ता की रत्तीभर की गारंटी नही, रेल्वे स्टेशनोंके एकाधिकार का पुरेपुर लाभ उठाते हुए बेहद तल्ख भाषा का प्रयोग करनेवाले विक्रेता, खाद्यान्न का तोल, वजन, संख्या, पैकेजिंग प्रत्येक मद में असन्तुलन। क्या यह रेल प्रशासन की गरिमा को बढाने का काम करते है? कदापि नही। आये दिन पानी की बोतल के दाम पर आपको शिकायतें मिल जाएंगी। जिसमे भी 90% लोग चुपचाप मांगे वही दाम चुकाकर सामान खरीद लेते है। रेल प्रशासन कहता है, बिना रिसीट, बिल के दाम न दे, फ्री, मुफ्त ले जाये। ज़नाब, कौनसी दुनिया मे है आप? बिना दाम लिए, आप खाद्यान्न को हाथ तो लगाकर दिखाए! जो आपने सामान उठा भी लिए तो अभद्र भाषा से आपको झाड़कर आपके हाथ से सामान छीन लिया जाता है। फिर पूरा प्लेटफार्म घुमलो आपको कोई सामान नही देगा। खाने का दाम लिखने का कुछ और बेचने का कुछ और ही होता है।

गुणवत्ता के मामले में राम ही राजी है, अर्थात भगवान ही मालिक है। प्याज के पकौड़े के नाम पर पत्ता गोभी के पकोड़े खिलाए जाते है और मकदूर है, की आप उस वेण्डर को सामने से शिकायत कर दो, आप की ऐसीतैसी न हो जाए? चाय का दाम ₹5/- लिखा है, बस लिखा है। ₹10/- कम में चाय और ₹20/- से कम में कॉफी किसी रेलवे स्टेशन केवल किसी अफसर या यात्री समिति सदस्य को ही मिलती होगी। रही बात पके, तले नाश्ते की, उसका कोई भरोसा नही की वह दो दिन पुराने मसालोंको ही गर्म कर परोसा जा रहा है। टेस्ट बिगड़ा लगा तो फेंक दीजिए, शिकायत और वह भी सामने, बहुत मुश्किल है।

हाल ही में पैकेज्ड फूड की तारीख उतरी हुई की शिकायत एक यात्री समिति के सदस्य ने खुद की। वह सदस्य भुक्तभोगी था, अतः रेल अधिकारियों द्वारा कुछ कार्रवाई की गई, अन्यथा किसी अधिकारी के पास यात्रिओंकी सुविधाओंकी तरफ ध्यान देने का कहाँ वक्त है? शिकायत के बाद शायद कार्रवाई होती हो, मगर दक्षता रखने की सूरत में तो शायद ही होती होगी। जितने वेन्डर्स प्लेटफार्म पर उधम मचाते है, उतने ही आपको चलती गाड़ियोंमे अवैध विक्रेताओं की सूरत में भी मिल जाएंगे।

यह विषय इतना बड़ा है और उतना ही कोयले जैसा काला। कितना ही घिस लो, काला ही निकलेगा। हालाँकि भारतीय रेल के सभी स्टेशनोंपर यह अवस्था न होगी, कुछ स्टेशन तो अपने व्यंजनों से जाने जाते है लेकिन दूध का जला छाँछ भी फूँक कर ही पियेगा न? इसका सिर्फ एक इलाज है, यात्री अपना खानपान खुद अपने हिसाब से लेकर निकले। चलती गाड़ी में तो अवैध विक्रेताओं से बिल्कुल ही न खरीदे। रेल प्रशासन ने चाहिए की अवैध विक्रेताओंपर लगाम लगाये। स्टेशन वेन्डर्स की सँख्या पर नियंत्रण करे, हर रोज गुणवत्ता जाँच के लिए किसी अधिकारी, कर्मियोंकी नियुक्ति हो और साथ ही उसकी जवाबदेही भी तय हो। अनुचित व्यवस्थामें पाए जाने पर तुरन्त कार्रवाई की जाए और उस अवस्था मे भरपाई यात्री को मिले न की सिर्फ प्रशासन उसे दण्डित कर जारी रखते चली जाए और यदि किसी स्टेशन पर यह सम्भव न हो तो वहाँ कैन्टीन, फूड स्टॉल बन्द कर दे। इसके अलावा कैन्टीन से बाहर निकल स्टॉल, खोमचे, ठेले चलाने की अनुमति कतई न दी जाए और ऐसी अवस्था मे कैन्टीन का परमिटधारक पाया जाए तो उसकी अनुमति रद्द हो।

कचरा, गन्दगी की सफाई तो अच्छे से हो रही है, अब कचरा, गन्दगी करने वालों, अवैध व्यवसाय कर भारतीय रेलवे की गरिमा को बाधा पहुंचाने वालोंके ‘सफाई’ की आवश्यकता है।

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