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हमारी मेल/एक्सप्रेस गाड़ियाँ धीमे धीमे सम्पूर्ण आरक्षित, वातानुकूलित बनने की ओर जा रही है। रेल प्रशासन की यह सोच रेल यात्रिओंको रेलों में सुरक्षित वातावरण देने में सक्षम रहेगी?

24 मार्च  2023, शुक्रवार, चैत्र, शुक्ल पक्ष, तृतीया, विक्रम संवत 2080

एक निरन्तर प्रक्रिया के तहत सभी मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंको पुराने ICF कोच संरचना से नई LHB कोच संरचना में बदला जा रहा है। इस बदलाव में लगभग सभी गाड़ियोंमे अधिकतम कोच वातानुकूलित रहेंगे और मात्र 2,3 स्लीपर और उतने ही द्वितीय श्रेणी अनारक्षित कोच रहेंगे।

आरक्षण कोच के यात्री कुल संख्या 589.6 दशलक्ष

आम रेल यात्रिओंमें स्लीपर कोच बहुत लोकप्रिय है। यह आरक्षित श्रेणी यात्रिओंको लम्बे, मंझौले रेल यात्रा के लिए काफी किफ़ायती और ज्यादा सुविधाजनक लगती है। वहीं द्वितीय श्रेणी अनारक्षित कोच का लम्बे अंतर की रेल यात्रा में क्या औचित्य है यह समझ से बाहर है। जब हम रेल विभाग द्वारा जारी आँकड़े देखते है तो पता चलता है, तकरीबन 90% रेल यात्री अनारक्षित टिकट लेकर यात्रा करते है। निम्नलिखित चार्ट देखिए,

विभिन्न क्षेत्रीय रेल पर यात्री संख्या, दशलक्ष में
(अप्रैल 2022 से फरवरी 2023)

मध्य रेल CR, पश्चिम रेल WR, पूर्व रेल ER और दक्षिण रेल SR इन क्षेत्रीय रेल के आँकड़े बहुत इतर रेल मुख्यालयोंसे कई बड़े है। उसका कारण है, इन क्षेत्रीय रेल्वेमे चलने वाली उपनगरीय यातायात। इसके बावजूद महानगर मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली और चेन्नई की ओर चलनेवाली लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे अनारक्षित यात्रिओंकी संख्या कम नही है। उपरोक्त सारे संख्या की मिलाया जाए तो कुल 5864 दशलक्ष यात्रिओंने विगत वर्ष 22-23 में रेल से यात्रा की है। अब निम्नलिखित कथन देखिए,

रेल प्रशासन कहती है, हर रोज 96,000 यात्री प्रतिक्षासूची में रह जाते है।

इस बयानपर एक क्या कई प्रश्न और उपस्थित किये जा सकते है,

1: 96000 प्रतिक्षासूची यात्रिओंमें से PRS काऊंटर्स के छपे टिकट धारक कितने और ई-टिकट धारक कितने यात्री होंगे?चलिए, एक और सांख्यिकी बताती है, आजकल लगभग 80% आरक्षण डिजिटल प्रक्रिया से हो रहा है, अर्थात कुल प्रतिक्षासूची के 20% अर्थात करीबन 19,000 यात्री PRS टिकट धारक है जो प्रतिक्षासूची में रह गए।

2: ई-टिकट प्रतिक्षासूची का रिफण्ड ऑटोमैटिक हो जाता है मगर जो 19 हजार PRS प्रतिक्षासूची यात्री है उनमें से कितने धनवापसी के लिए रेल प्रशासन के पास पहुंचते है?

3: और जो प्रतीक्षा सूची टिकट धारी यात्री, धनवापसी नही लेते है, क्या रेल प्रशासन बता सकती है, उनके टिकट के धन का विवरण क्या है? रेल प्रशासन ऐसे धन को किस खाते में दिखाती है?चूँकि यह PNR गाड़ी के प्रस्थान समय से 30 मिनट उपरान्त ड्रेन अर्थात रद्द हो जाते है।

4: रेल प्रशासन क्या यह मान्य करती है, जो PRS प्रतिक्षासूची टिकट धारक रिफण्ड नही लेते, वह स्लीपर या अन्य कोचों में अपनी यात्रा पूर्ण करते है?

5: क्या इस तरह रद्द PNR के साथ यात्रा करता वह यात्री अधिकृत है? यदि नही, तो सम्पूर्ण रेल यात्रा में उसे अभियोजित क्यों नही किया जाता?

6: सबसे महत्वपूर्ण निरीक्षण ; रेल प्रशासन द्वारा जारी किए अमर्याद अनारक्षित द्वितीय श्रेणी टिकट लेकर जो यात्री, रेल प्रशासन के ही पुरस्कार प्राप्त टिकट जाँच दल द्वारा दण्ड/जुर्माना रसीद लेकर (जिसे आम यात्री रेल के आरक्षित कोच में यात्रा करने का परमिट बताते है) आरक्षित कोच में यात्रा करते है उनकी गिनती रेल प्रशासन कौनसी श्रेणी में करती है? आरक्षित, अनारक्षित, अनाधिकृत या टिकट जाँच दल द्वारा आरक्षित कोच में लादे गए विशेष टिकटधारी यात्री? *क्योंकी उनके हाथ रसीद देख कर उन्हें न कोई चेकिंग स्टाफ पूछता है न ही कोई सुरक्षा बल का सिपाही।*

इन सारे अनारक्षित, अनधिकृत यात्रिओंको स्लीपर के आरक्षित यात्री अक्षरशः झेलते है। स्लीपर कोच की ऊपरी बर्थस पर, साइड बर्थ के कोनोंपर, पैसेज में, टॉयलेट के बरामदे में यह यात्री ठूंसे भरे रहते है। न कोई चल टिकट निरीक्षक, न रेल सुरक्षा बल का जवान इन्हें अभियोजित करता है। ऐसी स्थिति में रेल प्रशासन अब लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे अनारक्षित द्वितीय श्रेणी और स्लीपर के कोच लगातार कम करते जा रही है। लेकिन केवल इतना ही करने से इन अवैध यात्रिओंपर कोई खास असर नही पड़ने वाला है।

रेल प्रशासन को चाहिए,

द्वितीय श्रेणी टिकटों का आबंटन 500 km से ज्यादा दूरी का बन्द किया जाए।

स्लीपर टिकटों का प्रतिक्षासूची टिकट का आबंटन केवल और केवल डिजिटल अर्थात ई-टिकट के रूप में ही किया जाए, ताकी चार्ट बनने के बाद प्रतिक्षासूची में टिकट रह जाये तो अपनेआप धनवापसी हो कर रद्द हो जाये।

इंटरसिटी, डेमू, मेमू गाड़ियोंका परिचालन अभ्यासपूर्ण तरीके से बढाया जाए और द्वितीय श्रेणी टिकट पर गाड़ी प्रस्थान की समय सीमा अंकित हो। टिकट पर मेल/एक्सप्रेस में यात्रा करनेपर “प्रतिबंधित” ऐसे छपना चाहिए।

अग्रिम रेल आरक्षण की समय सीमा को 120 दिनोंसे घटाकर 30/45 दिन की जाए। या तत्काल वर्ग के आसनोंकी संख्या सीधे 75% की जाए।

अवैध यात्रिओंपर लगने वाला दण्ड/जुर्माना ₹250/- से बढ़ाकर ₹500 से 1000/- तक किया जाए। जुर्माना वसूल करने के बाद भी यात्री को रेल में यात्रा करने की अनुमति नही होनी चाहिए। जुर्माने की रसीद लेकर यात्री दोबारा यात्रा करते धरा जाता है, या गन्तव्य पर धरा जाता है तो जुर्माने की रकम दुगनी या यात्री को अभियोजित करने की प्रक्रिया की जानी चाहिए।

मान्यवर रेल प्रशासन, अपने ही कानून, नियम में लूप होल्स निकाल यात्रिओंको अवैध तरीक़े से यात्रा करने देते है जो सर्वथा अधिकृत आरक्षित यात्रिओंके साथ अन्याय, अत्याचार है।

एक और सांख्यिकी यह दर्शाती है, रेल्वेज में वातानुकूलित वर्ग मे यात्रिओंका रुझान बढ़ा है। इसे रेल प्रशासन यात्रिओंकी मजबूरी समझे न की यात्रिओंका रुझान। आम यात्री ग़ैरवातानुकूल कोच के अवैध, अनाधिकृत यात्रियों, विक्रेताओं से बेहाल हो चुका है और बेचारा सोचता है, वातानुकूलित श्रेणी में वह सुरक्षित यात्रा कर पायेगा। मगर अवैध यात्रिओं, विक्रेताओं का अतिक्रमण अब इन कोचेस को भी नही बख्शता है, इधर भी हालात बदतर हो रहे है। रेल प्रशासन को जागना, मुस्तैदी दिखाना अब आवश्यक हो गया है।

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