03 अप्रैल 2023, सोमवार, चैत्र, शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी, विक्रम संवत 2080
देश भर में वन्देभारत प्रीमियम गाड़ियोंकी धूम है। औसत प्रत्येक महीनेमें नयी वन्देभारत का उद्धाटन किया जा रहा है। अब तक 11 वन्देभारत गाड़ियाँ शुरू हो चुकी है और तकरीबन 4 से 6 करीबी दिनोंमें पटरियों पर आने की सम्भावना है। जहाँ यात्री प्रतिक्रिया कम मिलने की अपेक्षा है, उन मार्गोंपर मिनी याने 8 कोच की वन्देभारत चलाई जाने की रेल प्रशासन की तैयारी है। जिस तरह से रेल प्रशासन जी जान लगाकर यह प्रीमियम गाड़ी लॉन्च करते चली जा रही है, आम रेल यात्री के मन मे कुछ खटक रहा है।
देश में उत्पादित, अत्याधुनिक, आरामदायक और उन्नत दर्जे की यात्री सुविधा, वन्देभारत एक्सप्रेस उपलब्ध कराती है तो इसमें खटकनेवाली बात क्या हो सकती है? यातायात में सुपर लक्जरी किसे नही चाहिए? यात्री सुविधाऐं बढ़े, यात्रा आरामदायक हो इसके कौन खिलाफ हो सकता है, मगर कुछ अनसुलझे प्रश्न है, जिनके उत्तर शायद ही किसी रेल प्रेमी या युँ कहे वन्देभारत प्रेमियों के पास होंगे।
इन बातोंको समझने के लिए हमें, वन्देभारत एक्सप्रेस का बोलबाला होने के थोड़े से पूर्वकाल मे चलना पड़ेगा। याद कीजिये, संक्रमण काल और वह सब गाड़ियोंका परिचालन रुकना खासकर यात्री गाड़ियाँ। मानों रेल की साँसे ही थम गई थी।वह वक्त का तक़ाज़ा भी था। संक्रमण के फैलाव रोकने के लिए इससे उचित कदम भला क्या होता? मगर रेल विभाग का एक इवेंट और भी था। गाड़ियोंके थमने से, जरा सा पहले वह “शून्याधारित समयसारणी” प्रचलित करने की कवायद। रेल प्रशासन ने बरसोंसे चली आ रही समयसारणी को शून्य कर, शुरू से यात्री गाड़ियोंकी पुनर्रचना करने के विशुद्ध(?) हेतु से ZBTT शून्याधारित समयसारणी का क्रांतिकारी प्रयोग अपनाने निर्णय लिया था।
ZBTT के नाम पर अक्षरशः हजारों स्टोपेजेस और बरसोंसे चलती आ रही यात्री गाड़ियाँ रद्द करने के प्रस्ताव आम यात्रिओंपर थोपे गए। यह एक झटका था। यह तो संयोग की बात है, उसी दौरान संक्रमण कालीन यात्री गाड़ियोंके रद्द की सूचना आना और फिर महीनों तक यात्री गाड़ियोंमे सुविधाओंका प्रतिबंधित रहना, रेल यात्रिओंको शून्याधारित समयसारणी के झटके का अलगसे एहसास ही नही हुवा। गाड़ियाँ और स्टोपेजेस रद्द करने के पीछे विविक्षित रेल मार्ग का संतृप्त होना बताया गया था। रेल मार्ग संतृप्त रहना याने, उस मार्ग की क्षमता से ज्यादा गाड़ियोंका परिचालन किया जाना।
एक वक्त था, रेल बजट में ढेर नई गाड़ियाँ, प्रचलित गाड़ियोंका मार्ग विस्तार, फेरे बढाना इत्यादि घोषणाओंका होना आम बात थी, या रेल बजट में रेल विभाग की कमाई के आँकड़ों से ज्यादा आम यात्रिओंको गाड़ियोंके घोषणाओंकी अहमियत ज्यादा रहती थी। आम जनता रेल बजट देखती ही उसके लिए थी यह भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नही होगी। रेल बजट के दौरान ही राजनियिकोंका हल्लागुल्ला सुनने को मिलता था। आम तौर पर जिस क्षेत्र से रेल मंत्रालय को प्रतिनिधित्व मिला होता उसी क्षेत्र के इर्दगिर्द यात्री सुविधा की भरमार रहती थी। जैसे रेल बजट का अलग से सादरीकरण रुका यह सारा रेल बजट का आकर्षण ही खत्म हो गया।
हम यह बीती बातें इसलिए कर रहे है, क्योंकि तब रेल गाड़ियों सम्बंधित घोषणाओंका, समयसारणी के किसी भी बड़े बदलाव का एक नियोजित वक्त होता था, वह था रेल बजट भाषण। मगर अब पूरा रेल परिचालन ही अनियमित सा लगने लगा है। वर्ष 2019 से 2022 तक रेल समयसारणी का कोई ठौर ही नही था। एक परिपत्रक आता था और बदलाव की तारीख से बदलाव जारी हो जाता था। अभी भी यही चल रहा है। हाल ही में 02 अप्रैल की गाड़ी का 100 मिनट से प्रास्थगन, प्रिपोनमेन्ट किया गया वह भी मात्र 18 से 20 घण्टे पहले घोषणा कर किया गया, है न बड़ी हैरत की बात!!
चलिए, हम फिर अपने मुद्दे पर आते है, जब रेल मार्ग संतृप्त है, नियमित गाड़ियाँ रेल प्रशासन रद्द कर देता है, फिर यह प्रीमियम वन्देभारत गाड़ियोंको किस तरह से स्लॉट मिल सकता है? किस तरह से लगभग 80% स्टोपेजेस यात्री माँग के दबाव में, फिर से पुन:स्थापित किये जाते है फिर भले ही वह छह माह के प्रायोगिक तत्वों पर क्यों हो? एक एक वन्देभारत की जगह बनाने के लिए किस तरह नियमित गाड़ियोंको खिसका खिसकाकर स्लॉट बनाया जाता है? क्या आम रेल की गाड़ियोंका एक रात में समय परिवर्तन करना उचित है?
यूँ तो देशभर में रेल के बुनियादी ढांचे का विकास कार्य अपने चरम पर है। जहाँ एकहरी पटरी है, उसका दोहरीकरण, जहाँ दोहरी रेल है है उसका तिहरी करण, चौपदरी करण किया जा रहा है। लगभग सारे रेल मार्ग विद्युतीकृत किये जा रहे है। रेल सिग्नल प्रणाली अत्याधुनिक हो रही है। मालगाड़ियों के लिए समर्पित रेल गलियारों के डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर DFC बन रहे है। जहाँ DFC नही है, वहां मालगाड़ी के लिए अलगसे पटरियाँ बिछाई जा रही है। स्टेशन बिल्डिंग यात्री सुविधाओं में हवाई अड्डे की तर्ज पर सुधारी जा रही है। सवारी गाड़ियाँ मेमू एक्सप्रेस बनाई जा रही है। ग़ैरवातानुकूल डिब्बे दिनोंदिन हटाये जा रहे है। गाड़ियोंकी गति 130 KMPH हो गयी है और 160 KMPH होने वाली है।
मगर अन्दरखाने यात्री रेल यातायात की स्थिति क्या है, गाड़ियोंकी गति भले ही 160 kmph पहुंच गई हो औसत गति जस की तस है जो आज भी 40/50 kmph से ज्यादा नही है। आज भी औसत 55kmph की गाड़ी हमारे देश मे सुपरफास्ट की श्रेणी में नापी जा रही है। भले ही गाड़ियोंमें वातानुकूलित कोच बढ़ गए है, मगर आज भी ग़ैरवातानुकूल कोचोंमे जानवरों से बदतर हालातोंमें यात्री यात्रा कर रहे है। मात्र चवन्निभर प्रति किलोमीटर किराये देकर मासिक पास धारी मनचाही गाड़ियोंमे यात्रा कर रहे है। रेल प्रशासन आम यात्रिओंको कौनसा सपना दिखा रही है? वर्षों पहले जिस तरह प्रचलित समयसारणी में ही नई गाड़ियाँ ठूंस दी जाती थी, उसी तरह अभी भी प्रीमियम गाड़ियाँ ठुसी जा रही है।
प्रीमियम गाड़ियोंका लॉन्चिंग हो, वह चले, मगर आम यात्रिओंकी कोई तो व्यवस्था हो? आम यात्रिओंकी गाड़ियोंका बलिदान कर चलनेवाली यह कैसी प्रीमियम गाड़ियाँ? एक उन्नत रेल परिचालन प्रणाली की चाह में, पुनर्रचना के महत्वाकांक्षी ZBTT, शून्याधारित समयसारणी कार्यक्रम को क्या रेल प्रशासन भुला चुकी है? आम रेल यात्री अब यात्री सुविधाओंके ऐवज में ज्यादा किराया चुका रहा है। वरिष्ठ नागरिकों के साथ साथ कई किराया रियायतें रेल प्रशासन बन्द कर चुकी है। सवारी गाड़ियोंका परिचालन पता नही दोबारा होगा या नही, फिलहाल तो नदारद है। ऐसी स्थिति में रेल प्रशासन को चाहिए की प्रीमियम गाड़ियोंसे पहले आम यात्रिओंकी जिनकी संख्या बहुत अधिक है, इंटरसिटी, डेमू, मेमू, कम अंतर में चलने वाली गाड़ियाँ प्रचलन में लाये।
यह सुना गया है, जहाँ डेमू, मेमू गाड़ियाँ उत्पादित की जानेवाली थी उन रेल कारखानों में फिलहाल पूर्ण क्षमता से वन्देभारत के रैक बनाये जा रहे है। प्रीमियम गाड़ियोंको लाने की आखिर ऐसी भी क्या जल्दी है, जो आम रेल यात्रिओंकी रोजमर्रा गाड़ियोंकी माँग को दूर रख निभाई जा रही है? यात्री गाड़ियाँ बढ़े इसमे कोई हर्ज नही, मगर पहले रोजगार पर जानेवाली जनता सुविधाओं को प्राधान्य मिले यही अपेक्षा है, बस और क्या!😊