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भारतीय रेल की शयनयान श्रेणी (स्लिपर क्लास) के हाल साधारण श्रेणी (जनरल क्लास) से बद्तर!😢

27 अप्रैल 2023, गुरुवार, वैशाख, शुक्लपक्ष, सप्तमी, विक्रम संवत 2080

दिनांक 26 अप्रैल, स्थान : गाड़ी क्रमांक 16210 मैसूरु अजमेर द्विसाप्ताहिक एक्सप्रेस का शयनयान आप वीडियो देखिए,

Twitter.com के सौजन्य से

कहीं आप वीडियो के दृश्य देखकर विचलित तो नही हो रहे हो? यदि हाँ तो आप निश्चित ही भारतीय रेल की उच्च श्रेणी के यात्री हो या आप भारतीय रेल से शायद ही यात्रा करते होंगे। क्योंकि यह परिदृश्य भारतीय रेल के तथाकथित सम्पूर्ण आरक्षित कोच ‘स्लिपर’ क्लास का है। देशभर के अमूमन सभी लम्बी दूरी की गाड़ियोंके ग़ैरवातानुकूलित कोचों की हालत लगभग यहीं है और आम भारतीय यात्री इन्ही श्रेणीयोंमें रेल यात्रा करता है।

कहने को स्लिपर क्लास सम्पूर्ण आरक्षित श्रेणी है। पुराने ICF कोचेस में 72 सीट/शायिका और नए LHB कोच में 80 सीट/शायिका रहती है। नियमानुसार कोच की यात्री क्षमता जितने ही यात्री उसमे यात्रा कर सकते है। यदि कोच में RAC (रिजर्वेशन अगेंस्ट कैंसलेशन) धारक भी मौजूद है तो यह संख्या 80/88 पहुंच जाएगी।

फिर यह इतने अतिरिक्त यात्री किस तरह इस वीडियो में दिखाई दे रहे है? वाज़िब प्रश्न! चलिए, बताते है। रेल प्रशासन अपनी रेल गाड़ियोंमे दो प्रकार से आरक्षण का आबंटन करता है, एक इलेक्ट्रॉनिक पद्धतिसे वेबसाइटों द्वारा ई-टिकट और दूसरा PRS रेल आरक्षण काऊंटर्स द्वारा ऑफलाइन कागज पर छपा टिकट। सारा खेला यही से बिगड़ना शुरू होता है। ई-टिकट प्रणाली में, चार्ट बन जाने के बाद यदि टिकट प्रतिक्षासूची में रह जाता है तो अपनेआप रद्द हो जाता है। उक्त रद्द टिकट की धनवापसी जिस खाते से धन आया था, उसमे क्लर्केज काटकर लौटा दी जाती है। वहीं PRS, छपी टिकटों में धनवापसी की कोई व्यवस्था नही है। यज्ञपी प्रतिक्षासूची की PRS टिकट का PNR (पैसेंजर नेम रिकॉर्ड) भी गाड़ी के प्रस्थान समयसे 30 मिनट बाद ड्रेन अर्थात खत्म हो जाती है, मगर टिकटपर धनवापसी न होने की सूरत में रेल प्रशासन को यह मानना पड़ता है, प्रतिक्षासूची टिकट धारक यात्री ने उसका धन का दावा छोड़ दिया है। गौरतलब यह है, इस तरह के ‘अन क्लेम्ड’ धन क्या रेल प्रशासन कौन से लेखा में शामिल करती है, इसका कोई अतापता नही है। चूँकि होता यह है, जब तक यात्री अपना टिकट काऊंटर्स पर जाकर रद्द नही करता, धन वापिस नही लेता, वह सोचता है, उसके पास स्लिपर क्लास की वेटिंग ही सही मगर टिकट है। जबकी यह टिकट रेल प्रशासन के नियमों में रद्द की जा चुकी है, वह स्लिपर क्लास में जबरन प्रवेश कर यात्रा करते रहता है।

इसके अलावा स्लिपर के अनाधिकृत यात्रिओंमें रोजमर्रा छोटी यात्रा करने वाले द्वितीय श्रेणी के अनारक्षित टिकट धारक, मासिक सीजन टिकट (MST) धारक ज़बरन शयनयान के कोच में लदे रहते है। एक विशेष बात और देखी गयी है। रेल विभाग द्वारा आजकल बड़े बड़े आँकड़े जारी किए जा रहे। फलाँ वाणिज्य कर्मीने रिकॉर्ड तोड़ पेनाल्टी द्वारा आय अर्जित की है। क्या रेल प्रशासन यह सोचती है, रेल विभाग में करोड़ों रुपयोंकी पेनाल्टी रकम क्यों जमा हो रही है? प्लेटफार्म पर द्वितीय श्रेणी के टिकट धारकोंको गाड़ी में सवार होने से पहले ही पेनाल्टी रसित काट कर स्लिपर कोच में चढ़वा दिया जाता है। ऐसे पेनाल्टी रसीद धारक भी इन स्लिपर कोचों में भरे रहते है। क्योंकि हमारे कानून में किसी जुर्म के लिए दो बार सजा नही मिलती और यह यात्री बकायदा जुर्माने का परचम लहराते, सीना तान कर स्लिपर कोच में यात्रा कर लेते है।

पहले गाड़ी के प्रत्येक आरक्षित कोच में यात्री सुविधाओं के लिए रेलवे की ओरसे TTE नियुक्त रहता था। पहले उच्च आरक्षित श्रेणियाँ फर्स्ट क्लास, AC क्लास में कंडक्टर और स्लिपर में TTE रहते थे। अब के हालात अलग है। अब गाड़ियोंमे वातानुकूल कोच संख्या बढ़ रही है और स्लिपर कम हो रहे है। चूँकि उच्च श्रेणियों में रेल प्रतिनिधि की उपस्थिति आवश्यक है, अतः बहुतांश स्लिपर कोच अन-मैन अर्थात बिना निगरानी रह जाते है। इसके चलते स्लिपर कोचों में ढेर यात्रिओंके अनाधिकृत प्रवेश हो जाते है। जिस तरह वीडियो में दिखाई दे रहा है, ऐसी हालातोंमें कोई भी TTE उस कोच में गाड़ी अपने गन्तव्य तक पहुंच जाए, नही आएगा।

इसके उपाय क्या होने चाहिए,

रेल विभाग को चाहिए, जिस तरह उच्च श्रेणियों के आरक्षित कोच की सुव्यवस्था बनी रखी जाती है, उसी तरह स्लिपर क्लास भी आरक्षित ही श्रेणी है और उसके यात्रिओंकी भी सुव्यवस्था बनी रहें। किसी भी तरह के अनाधिकृत प्रवेशोंको सभी आरक्षित कोचोंमे रोका जाना चाहिए।

रेल विभाग चाहें तो अपनी PRS टिकिटिंग में प्रतिक्षासूची के टिकट बन्द कर ई-टिकट प्रणाली में ही शुरू रख सकता है। दरअसल जिस गाड़ी के टिकट फूल हो जाये उन्हें सूची से हटा भी दिया जाए तो कोई हर्ज नही। इससे प्रतिक्षासूची के टिकतधारी यात्रियों की अनाधिकृत यात्रा पर कुछ अंकुश आ पायेगा। साथ ही अनारक्षित टिकटों की अन्तर सीमा तय हो। 500 किलोमीटर से ज्यादा के सभी अनारक्षित टिकटोंका आबंटन बन्द होना चाहिए या संक्रमण काल मे जिस तरह द्वितीय श्रेणी को आरक्षित सिटिंग 2S की तरह आरक्षण बुकिंग दी जाती थी उस तरह किया जाय।

रेल विभाग के पास प्रत्येक डेटा मौजूद रहते है। इसी डेटा के एनालिसिस, समीक्षा कर लम्बी दूरी की आरक्षित सेकण्ड सिटिंग, कम अन्तरोंमें चलनेवाली अनारक्षित डेमू/मेमू/इण्टरसिटी गाड़ियाँ चलानी चाहिए।

भारतीय राजनीति के माननीय नेता ने हवाई जहाज के इकोनॉमी क्लास को “कैटल क्लास” कह भर्त्सना की थी। यदि वह ये वीडियो देखते है तो असल “कैटल क्लास” किसे कह सकते है, पता चलता। भारतीय रेल का यात्री अपने हक़ के प्रति बहुत लापरवाह है। 72/80 की क्षमता वाले स्लिपरमें 200 लोग और 90/100 की क्षमतावाले साधारण कोचेस में दुगुने, तिगुने यात्री बड़े आसानीसे यात्रा कर लेते है और वह भी बिना किसी शिकायत के। रेल अधिकारियों को तो यह तक पता नही चलता, हमारे देश मे मवेशी सिर्फ वन्देभारत के सामने आकर नही कटते (जिसकी आये दिन “ब्रेकिंग न्यूज” बनाकर न्यूजचैनल वाले परोसते रहते है) बल्कि रेल के ग़ैरवातानुकूलित कोचमें यात्रा भी करते है।

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