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भारतीय रेल के वाणिज्य विभाग का सम्पूर्ण डिजिटलिकरण ; सम्भव है, मगर नियत? शायद नही!

07 मई 2023, रविवार, जेष्ठ, कृष्ण पक्ष, द्वितीया, विक्रम संवत 2080

भारतीय रेल की हाल ही में एक खबर आई थी, रेल विभाग ने अपनी खुद के सारे याने पाँच मुद्रणालय बन्द करने का निर्णय लिया है। इन मुद्रणालयों में रेल विभाग की स्टेशनरी, फॉर्म्स, टिकट एवं समयसारणीयाँ छापी जाती थी। इस डिजिटलाइजेशन एवं कम्प्यूटर युग मे कागज़ी कार्रवाई दिनोंदिन कम होती जा रही है। रेल विभाग ने अपनी समयसारणीयाँ तो बरसोंसे या तो बन्द कर दी है या उन्हें निजी ठेकोंपर उतार दिया है। आरक्षित यात्री टिकटें 80 प्रतिशत से ज्यादा डिजिटली, ई-टिकट्स में बुक होती है। ऐसे में क्या रेल्वेके वाणिज्य विभाग अर्थात यात्री टिकट्स के हिस्से का सम्पूर्ण डिजिटलाइजेशन सम्भव है?

आज भारत की आबादी के 90 फीसदी से ज्यादा लोग मोबाईल का उपयोग करते है, यह संख्या तकरीबन 120 करोड़ है। उनमें करीबन 60 करोड़ से ज्यादा स्मार्ट फोन उपभोक्ता है। इन यूजर्स को हम डिजिटल ग्राहक मान सकते है। आरक्षित ई-टिकट के लिए रेलवे के पास IRCTC की वेबसाइट एवं मोबाईल ऍप की उन्नत व्यवस्था है। साथ ही अनारक्षित टिकटोंके लिये UTS ऍप कार्यान्वित है। रेल्वेके PRS काऊंटर्स से सुदुर बैठा व्यक्ति भी इन माध्यमोंसे अपने यात्री टिकट बड़ी आसानीसे खरीद सकता है। ऐसे में यात्री टिकटोंका सम्पूर्ण डिजिटलाइजेशन सहज सम्भव है। आगे इस खण्ड के डिजिटलाइजेशन के सम्भाव्य फायदे/नुकसान देखते है।

यात्री टिकिटिंग के डिजिटलाइजेशन के फायदे यात्री की नज़र से देखें तो, यात्री को अपने रेल टिकट, घर बैठे, बिना भीड़भाड़ का सामना किये, क़तारों में लगे बगैर बड़ी आसानी से मिल सकते है। वह बड़े इत्मिनान से अपनी सुविधानुसार अनेक गाड़ियाँ, सभी श्रेणियों को खंगाल कर अपनी टिकट बनवा सकता है। बनी हुई टिकटोंमे अकस्मात बदलाव अर्थात रद्दीकरण, सवार होने के स्टेधन में बदलाव इत्यादि बड़ी सुगमता से कर सकता है। डिजिटल पेमेंट में लेनदेन भी बड़ा सुविधाजनक होता है। अब रेल्वेके हैसियत से देखे तो, यात्री की रेल आहाते में टिकट व्यवस्था करना, उसकी सुविधाओं का ध्यान रखना, अलग अलग कर्मियों की नियुक्ति करना, स्टेशनरी का उपयोग करना, धन संग्रह और उसका लेनदेन सम्भालना, दलालों की दखल इन सब से रेल विभाग निज़ात पा सकता है।

डिजिटलाइजेशन के नुकसान भी है, यात्रिओंको अपने रेल टिकट की व्यवस्था खुद करनी है। टिकट निकालने के साधन से लेकर उसे जरूरतनुसार छापने तक और कुछ गलती हो गयी तो जिम्मेवारी भी उनकी खुद की। दूसरी बात रेल तकनीक की है। कई बार पेमेंट हो जाती है और टिकट नहीं बनती। ऐसी स्थिति में कई बार ग्राहक का बटुवा साफ़ हो जाता है, और हाथ बिना टिकट के ही रह जाते है। यह बात और है, अन बुक्ड टिकट का धन 2-4 दिन में खाते में लौट जाता है। मगर रेल टिकट बुकिंग में समय की नज़ाकत, जरूरत तो ई-टिकट निकालने वाले भलीभाँति जानते है। 😊

अब रेल विभाग के नुकसान की बात करते है। वैसे रेल विभाग का सीधा तो नुकसान नहीं है, बस PRS प्रतिक्षासूची के टिकट धनवापसी के लिए उपस्थित नहीं होते और वह यात्री जैसेतैसे अपनी रेल यात्रा पूरी कर लेते है। वहीं ई-टिकट के प्रतिक्षासूची टिकट अपने आप रद्द हो कर धनवापसी भी हो जाती है। यह रेल विभाग का एक तरह का घाटा है।

सम्पूर्ण डिजिटाइजेशन में रेल विभाग अपनी प्रतिक्षासूची पर भी अंकुश रख सकता अर्थात प्रतिक्षासूची के 4 महीने अग्रिम धन की नीयत पर न हो तो!😊 रेल विभाग जब अपनी आरक्षित टिकिटिंग सम्पूर्ण डिजिटलाइज कर दें, तब जो गाड़ियाँ पूर्णतयः बुक हो चुकी हो, उन्हें बुकिंग सूची से हटा देना चाहिए, अर्थात जैसे ही पूर्व बुक्ड टिकटोंका कैंसलेशन हो और सीट्स/बर्थस बुकिंग के लिए उपलब्ध हो जाये, वह गाड़ी फिर से बुकिंग साइट्स पर दिखने लग जाएगी। यह चीजें यदि आरक्षित टिकटोंका सम्पूर्ण डिजिटलाइजेशन हो चुका हो, तभी सम्भव है।

आजकल आरक्षित कोचों में अतिरिक्त, अनारक्षित और प्रतिक्षासूची धारकोंकी बड़ी भीड़ चलती है। यह लोग उक्त श्रेणियों का पूर्ण किराया चुकाए रहते है, अतः नैतिक रूप से उन्हें चेकिंग स्टाफ उतारते नही। दूसरा काम नियमानुसार कार्रवाई का होता है, जो रेल्वेके दो स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में बंट जाने की वजह से जटिल हो जाता है। रेल सम्बन्धी जानकारों ने बताया, रेल सुरक्षा बल को किसी भी अवांछित यात्री को कानूनी प्रक्रिया हेतु GRP स्थानीय पुलिस दल को सौंपना पड़ता है। इसी के चलते, रेल जाँच दल, सुरक्षा बल अपनी कार्रवाई को दण्ड तक सीमित कर लेते है और ऐसे अवांछनीय यात्री, अवैध विक्रेता और तृतीय पंथी, मांगनेवाले लोग रेल क्षेत्र, गाड़ियोंमे टहलते, यात्रा करते नजर आते है।

आखिर प्रश्न वहीं के वहीं रह जाता है, क्या रेल विभाग अपने यात्रियोंके साथ डिजिटलाइजेशन का कड़वा घूँट पिने को तैयार है? क्योंकि रेल यात्रिओंको भी अब PRS के छपे टिकटोंकी प्रतिक्षासूची वाले, अपनेआप रद्द न होने वाले टिकट पर सवारी करने की आदत हो गयी है।

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