गर्मी की छुट्टियां मतलब ट्रेन का सफर! गर्मी की छुट्टियों का एक अलग ही एक्साइटमेंट हुआ करता था| गर्मी की छुट्टियों का मतलब ही हुआ करता था कि ट्रेन से कहीं घूमने जाएंगे। सफर हमेशा स्लीपर क्लास में है हुआ करता था, खिड़की के पास वाली सीट मैं हमेशा अपने लिए मांगती थी। ट्रेन टाइम टेबल की एक प्रति हमेशा हमारे साथ होती , फिर जैसे-जैसे स्टेशन आते मैं उस प्रति से चेक करती की ट्रेन कितनी देर यहां रुकेगी और आने वाला स्टेशन कौन सा है? यदि कोई बड़ा स्टेशन आने वाला होता तो मैं भी स्टेशन पर उतरने की तैयारी में रहती।
ट्रेन टाइम टेबल के साथ, चाचा चौधरी ,पिंकी ,बिल्लू ,फैंटम, डोगा, नंदन, चंपक और रीडर्स डाइजेस्ट (लास्ट ऑप्शन) की ढेर सारी कॉमिक्स साथ होती। ट्रेन में लगता की पढ़ने की स्पीड पता नहीं कितनी फास्ट हो गई है और पढ़ने का मन करता ढेर सारी कहानियां। एक और काम में बहुत मन लगता, वह खिड़की के बाहर के नजारे देखने में, कैसे हर कुछ घंटों में मकानों की बनावट, लोगों की वेशभूषा, पेड़ पौधे अलग अलग तरह की फसलें बदलने लगती। हर जगह का एक अलग ही नजारा, आज भी मुझे उतना ही लुभाता है जितना की बचपन में, हर जगह पर उतर कर मैं वहां रहना चाहती थी । वहां के लोगों से बात करना चाहती थी। वहां की हर बात को महसूस करना चाहती थी।
हमारे घर का एक नियम था, सारे साल में जीतने भी फल खाते उनकी गुठलियां सूखा कर सफर में साथ ले जाते और फिर खाली जगहों पर ट्रेन की खिड़की से फेक देते इस कामना के साथ की ये एक बहुत बड़ा फलदार वृक्ष बने।एक अलग सा सुकून और मजा आता सोचकर की अगले कुछ सालों में यहां बड़ा सा पेड़ होगा! फलों से लबालब।
ट्रेन के सफर के लिए भी घर में अलग ही तैयारियां होती थी, नमकीन, बेसन के लड्डू ,रवा के लड्डू, नमक पारे, शक्कर पारे रास्ते में खाने के लिए बनाए जाते थे। पानी पीने के लिए छगल या छोटा कैंपर लेकर लेकर जाया जाता और ट्रेन मे खाया जाने वाला एक दिन का खाना! सूखे आलू, पुडी और आचार। साथ में छोटी स्टील की प्लेटें और गिलास। ट्रेन चलने के साथ ही खाने का डब्बा खुल जाता । चलती ट्रेन में आलू पूड़ी खाने में एक अलग ही स्वाद आता था। फिर शुरू होते थे ट्रेन के खेल लूडो और सांप सीढ़ी, से ऊपर की बर्थ पर चढ़ना उतरना और मम्मी की डांट खा कर चुपचाप बैठ जाना फिर से नजारे देखने के लिए। मैं हमेशा लाल जंजीर खींचकर देखना चाहती थी की ट्रेन कितनी देर में रूकती है?? मम्मी मेरे से इरादे को अच्छी तरह समझ गई थी फिर उन्होंने समझाया की इस तरह शैतानी में चेन खींचने से कितने लोगों को मुसीबत हो सकती है और हमें भी जुर्माना देना पड़ेगा।
ट्रेन से एक अलग सा रिश्ता महसूस होता है। ट्रेन का सफ़र हर उम्र में किया और कर रही हूं। हर बार अलग अहसास दिए मेरे सफर ने। कॉलेज की बास्केट बॉल टीम के साथ जब वेल्लोर गए तब पहले ही मैच में बाहर होने के करण कोच बिना रिजर्व कंपार्टमेंट में बिठा लाए । जीवन का आनंद आ गया। एक ही जगह पर बैठे- बैठे अपने आपको को और सामान को समेटे हुए।सब लड़िकयां खूब गुस्सा थी। पर फिर जैसे जैसे स्टेशन आता यात्री बदल जाते और हम सब भी एक दूसरे के पास आकर बैठ रहे थे। ये भी मजेदार अनुभव था १० – १२ घंटे बाद मैंने एक न्यूजपेपर खरीदा उसे बेर्थो के बीच बिछाया, समान सर के नीचे लिया और सो गई। उस दिन कबीर का दोहा- नींद ना देखे टूटी खाट …. भी समझ आ गया।
अकेले भी बहुत सफर किया, कभी एग्जाम देने के लिए, तो कभी ऑफिस के काम से, मेरी एक दोस्त का तो रिश्ता ही ट्रेन में हो गया था। ट्रेन में ही तो मैं शादी कर कर सारी बारात के साथ आई थी। बारातियों का सामान इतना ज्यादा था की कुलियों ने ट्रेन के कुछ लोगों का भी समान उतार लिया था हमारे साथ। फिर उन लोगों को ढूंढ कर उनका सामान भिजवाया गया।
ट्रेन की एक बोगी में कितने भिन्न-भिन्न तरह के लोग , अलग अलग तरह के कामों के लिए विभिन्न भावों से यात्रा कर रहे होते हैं। आज भी ट्रेन में सफर करना मुझे बेहद पसंद है, इंटरसिटी, राजधानी ,शताब्दी ,गरीब रथ, दुरंतो ट्रेन के सभी क्लासों, पैसेंजर ,लेडीज कंपार्टमेंट सभी में सफर का अनुभव ले चुकी हूं। बचपन का जो मेरा सपना था की ट्रेन से सभी जगह जाऊं आज लगभग पूरा हो चुका है मैं पूरा भारत देख चुकी हूं, मुझे पता है ट्रेन जब वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, रिजर्व फॉरेस्ट ,चाय बागान ,सॉल्ट लेक रेगिस्तान ,चंबल के बीहड़, पहाड़ों नदियों, खेतों के बीच से गुजरती है तो कैसा महसूस होता है। दार्जलिंग की टॉय ट्रेन में सफर का अनुभव बहुत ही विशेष है! इंडिन रेलवे ने भी पिछले कुछ वर्षों में बहुत इंप्रूवमेंट किया है, खानपान, सुरक्षा ,साफ टॉयलेट , साफ सफाई, हर क्षेत्र में। पर आज भी महानंदा और कामायनी जैसी ट्रेने धीमी गति से ही चल रही है। मेरी सारी रेल यात्राओं के अनुभव मेरे जीवन में बहुत ही अलग अनुभव लाए। मैं जम्मू और बारामुला के ट्रेन रूट के चालू होने की चालू होने का इंतजार कर रही हूं कश्मीर की वादियों में ब्रिजेस और सुरंगों के बीच के रोमांचक सफर के लिए।
आपकी यात्रा मंगलमय हो।
तो इस बार अपनी रेल यात्रा में फलों के बीज अपने साथ अवश्य जाए और बनाए धरती को हरा भरा।
रितु साकेत वर्मा
लखनऊ, उत्तर प्रदेश ।
लेखिका के अन्य आर्टिकल हिंदी और फौजी मैगज़ीन में पब्लिश किए गए है।
Instagram handle – https://instagram.com/ritusaketverma?utm_source=ig_profile_share&igshid=15sqbwn0ugtbk
