04 जून 2023, रविवार, जेष्ठ, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा, विक्रम संवत 2080
कितना सहज है, मुँह उठाकर यह कह देना की इस्तीफा दे दीजिए?
कहाँ तक उचित होगा की युद्धजन्य परिस्थिति है, 300 के करीब जानें जा चुकी है, हज़ार से ऊपर घायल है और मुखिया हाथ ऊपर कर दे, हमसे देखा नहीं जाता या हाँ, नैतिकता (?) की आड़ लेकर परे हट जाए?
परिस्थिति क्यों बिगड़ी यह जानने, समझने की जितनी जिज्ञासा आम लोगों को है उससे कई ज्यादा जानने का हक़, अधिकार उस मुखिया का है, जिसका इस्तीफ़ा मांगा जा रहा है। आखिर वह भी तो समझे, हादसे के पीछे उसके कर्मी की लापरवाही है या कोई साज़िश है? तकनीकी कमी है या मशीनों का मालफंक्शन?
यह बात निश्चित है, इतने बड़े दुःखद प्रसंग का बोझ किसी भी मुखिया को वहन करना, कतई आसान नही होगा।
सर्वप्रथम कार्य है पीड़ितों को संवारना, दिलासा देना मगर हम तो हम है, मुँह उठाये और चढ़ा दिए प्रमुख को सूली। भई, इस्तीफा होना। तब भी नैतिकता दिखाए और इस्तीफा दिए थे, आज भी ऐसा ही होना चाहिए, तुरन्त इस्तीफ़ा दीजिए ताकि हम हमारी अगली चाल चलाए, पाँसे फेंके, कौड़िया जोड़ें!
घटना बहुत पीड़ादायी है, दृश्य बेहद विचलित करने वाले है। घटनाक्रम मात्र 30 सेकण्ड का था और मन्जर भयावह! चेतने का इतना सा भी वक्त काल ने किसी को नही दिया।
रेल कर्मी, संसाधन, सिग्नलिंग, तकनीकी विभाग, रखरखाव विभाग सब के सब जाँच के कटघरे में है। अनियमतता और घातपात दोनों मुद्दे कसौटियों पर परखे जाने है। थोड़ा वक्त जाएगा, लेकिन हर भेद खुलेगा।
नतीजों का इंतज़ार तो कर लीजिए, फिर लगे तो यह बताईएगा, हमने तो पहले ही कहीं थी….इस्तीफ़ा दो!