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वाह री सुपरफास्ट !

भारतीय रेल में कई तरह की यात्री गाड़ियाँ चलाई जाती है। जिसमे शुरुसे तीन प्रकार थे मेल, एक्सप्रेस और सवारी गाड़ियाँ।

वैसे तो तेज गाड़ियोंका चलन राजधानी एक्सप्रेससे, 1969 से शुरू हुवा। सबसे पहली राजधानी एक्सप्रेस हावड़ा नई दिल्ली के बीच 3 मार्च 1969 को चलाई गई। राजधानी एक्सप्रेस चलाने की मुख्य संहिता किसी राज्य की राजधानी से देश की राजधानी तक, कमसे कम समय मे पहुंचना यह थी। लेकिन सुपरफास्ट का टैग लेकर चलने वाली सबसे पहली गाड़ी थी मुंबई हावड़ा गीतांजलि एक्सप्रेस जो नवम्बर 1977 में शुरू की गई। सुपरफास्ट होने का मानक था, गाड़ी की अपनी पूर्ण यात्रा का एवरेज स्पीड, गति 55 km प्रति घंटा या उससे ज्यादा का रहना चाहिए।

1988 में भोपाल नई दिल्ली शताब्दी शुरू की गई, जिसने राजधानी एक्सप्रेस का देश की सबसे तेज गाड़ी होने का रिकार्ड तोड़ा। अभी तेज गाड़ियोंकी श्रेणी में कई नाम जुड़ गए है। देश की सबसे तेज गाड़ीयों में सबसे पहले आती है, वन्दे भारत एक्सप्रेस, उसके बाद गतिमान एक्सप्रेस, और फिर आती है, दुरंतो एक्सप्रेस। इन के बाद सुपरफास्ट में ही लेकिन अलग श्रेणी की एक्सप्रेस गाड़ियाँ है, जनशताब्दी, संपर्क क्रांति, अंत्योदय, गरीब रथ एक्सप्रेस। लेकिन हमारा आज का विषय है सुपरफास्ट टैग वाली, हर छोटे बड़े स्टेशनोंपर ठहरने वाली गाड़ियाँ।

एक मानक, सिर्फ वही एक, एवरेज स्पीड 55 km प्रति घंटा लगाने से कई साधारण गाड़ियाँ सुपरफास्ट एक्सप्रेस की श्रेणी में आ गई है। 1977 से याने आजसे 42 साल पहले जो मानक सुपरफास्ट श्रेणी के लिए तय किया गया था, आज के गतिमान और वन्दे भारत एक्सप्रेस के जमाने मे भी वही चला आ रहा है। आज की जो तथाकथित सुपरफास्ट गाड़ियाँ है वो किसी मायने में सुपरफास्ट नही लगती, भलेही उनका एवरेज स्पीड 55 km/h हो। हर 25 km पर स्टॉप लेने वाली 12139/12140 सेवाग्राम एक्सप्रेस को कोई सुपरफास्ट कैसे कह सकता है? यह तो एक उदाहरण है, ऐसी कई गाड़ियाँ है, जिनमे सुपरफास्ट गाड़ी होने के कोई लक्षण नज़र नही आते, गिनवाए तो कई पेजेस कम पड़ जाएंगे।

आखिर क्या मिथक है, ऐसी गाड़ियोंको सुपरफास्ट टैग लगाने का? क्या रेल प्रशासन, आम लोगोंसे सुपरफास्ट चार्ज, जो द्वितीय श्रेणी के ₹15/- से लेकर फर्स्ट एसी के ₹75/- तक वसूल कर के अपना घाटा, पाट रही है?

कोई गाड़ी अपने यात्रा में कमसे कम 100 km तक ना रुके तो समझता है, यहां हर 25 km पर रुकने वाली सुपरफास्ट? जब छोटी, कम अंतर वाली यात्रा करने या के रोजाना जाना आना करने वाले यात्रिओंको यह सुपरफास्ट का अतिरिक्त प्रभार चुकाना याने सचमुच अतिरिक्त भार ही लगता है।

आज रेल प्रशासन को जरूरी है, की वे अपने सुपरफास्ट के नए मानक तयार करें। जो लम्बी दूरी तक चलने वाली, कम स्टोपेजेस लेनेवाली गाड़ियोंको ही सुपरफ़ास्ट का दर्जा दे। सुपरफास्ट गाड़ियोंकी एवरेज गति में भी सुधार होने की जरूरत है। नहीं तो ट्रेक की, लोको की, नए LHB डिब्बोकी क्षमता 160km/h और गाड़ी की एवरेज स्पीड देखों तो आती है 55 km/h आज की सवारी गाड़ियाँ भी 110 km/h की दौड़ लगा लेती है।

रेल प्रशासन, भले ही एवरेज इन्कम में बढ़ोतरी का उद्देश्य रखती हो या लूज और मार्जिन टाइमिंग्स देकर गाड़ियोंके समय पालन की शाबासी लेना चाहती हो, लेकिन आज 42 वर्षोंके बाद, कहीं न कहीं, सही मायने में सुपरफास्ट गाड़ियोंकी व्याख्या तय करने का वक्त आ गया है।

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