हर रोज, आए दिन रेलवे के स्लिपर क्लास में माथापच्ची होते रहती है। यह टकराव स्लिपर के कन्फ़र्म यात्री और अनाधिकृत यात्रिओंके बीच चलते रहता है। रोज ट्विटर पर आपको शिकायतें देखने मिल जाएगी।
हक़ीकत क्या है, स्लिपर क्लास रेलवे का ऐसी लोकप्रिय श्रेणी है जिसका किराया जनरल, द्वितीय श्रेणी से लगभग दुगुना और वातानुकूलित थ्री टियर से लगभग आधा रहता है। स्लिपर और द्वितीय श्रेणी में बेसिक फर्क यह है की स्लिपर में आरक्षण मिलता है, यात्रिओंको एक सीट नम्बर मिलता है जिसपर वह अपनी यात्रा बैठकर या सोतें हुए, हक से कर सकता है। वहीं द्वितीय श्रेणी में कोई आरक्षण नही रहता। जिसे जगह मिल गयी वह जम गया या कभी यूँ भी कह सकते है, जिसकी लाठी उसकी भैस। बस एडजस्ट करते चले जाओ। स्टेशन आते जाएंगे खाली हुई तो आपको जगह मिल सकती है। स्लिपर और वातानुकूलित थ्री टियर में केवल वातानुकूलित का फर्क है। हाँ आजकल एक प्लस पॉइंट आप नोट कर सकते है की वातानुकूलित डिब्बें मैनड याने उस डिब्बे पर रेलवे की ओरसे एमिनिटीज मेंटेन करने के लिए कोई न कोई ड्यूटी ऑफिशियल TTE या कंडक्टर जरूर रहता है। वैसे तो स्लिपर में भी रहता है लेकिन 10-12 स्लिपर डिब्बों में 2 TTE रहते है जो हर डिब्बे में हाजिर नही रह पाते।
यहाँ से ही शुरू होती है स्लिपर डिब्बों की शोकांतिका। जब द्वितीय श्रेणी के यात्री यह देखते है, की किसी डिब्बे में TTE नही दिखाई दे रहा है तो वह स्लिपर में बैठ जाते है। 2-4 स्टेशन तक सफर करनेवाले यात्री, सीज़न टिकटधारी यात्री, सुविधा पास धारक, रेलवे एम्प्लोयी इनके लिए तो इस तरह का स्लिपर डिब्बा बेरोकटोक यात्रा करने का सुविधाजनक रास्ता है। यह यात्री तो हो गए अनाधिकृत रूपसे चढ़ने वाले लोग लेकिन इसके अलावा और भी लोग है जो स्लीपरों में बने रहते है। प्रतिक्षासूची के PRS टिकट धारक, यह लोग जब चार्ट बनने के बाद भी वेटिंग लिस्ट में रह जाते है, कन्फर्म नही हो पाते तो भी अपना टिकट रद्द नही करते और ना ही इनका टिकट PRS मैन्युअल होने से अपने आप रद्द होता है। यह यात्री स्लिपर डिब्बों में हक़ से बैठ जाते है। जितने भी अप्पर बर्थ, साइड बर्थ है, इन पर अधिकृत यात्रियोंको ठेलमठेल कर के बैठे रहते है।
इतने अनाधिकृत यात्री कम है, की एक नए किस्म के यात्री, चेकिंग स्टाफ द्वारा निर्मित भी आपको इन्ही स्लिपर क्लास में मिल जाएंगे। यह किस तरह बनते है, बताते है। आजकल आपने खबरें तो पढ़ी होगी, फलाँ फलाँ रेलवे के चेकिंग स्टाफ़ ने ने इतने करोड़ रुपैये अर्जित किए। हर महीने कैसे यह लोग करोड़ों रुपए बिना टिकट यात्रिओंसे जमा कर लेते है? क्या आपको ऐसा शक नही होता, की लोग टिकट खरीदते भी है या नही? क्या यह चेकिंग स्टाफ़ के लोग स्कॉटलैंड यार्ड की पुलिस या शरलॉक होम्स से भी इंटेलिजेंट है की फटाफट हजारों यात्रिओंमेंसे बराबर बिना टिकट यात्रिओंको छाँट कर चुन चुन कर दण्डित कर रेलवे की तिजोरी में इज़ाफ़ा करते रहते है? की यात्री खुद ही इनके पास जा जा कर कहते है, साहब हमे पकड़ो हम बिना टिकट है?


हाँ, बिल्कुल सही! यही होता है। यात्री खुद चेकिंग स्टाफ़ के पास बाकायदा कतार से खड़े हो कर पेनाल्टी की रसीदें कटवाते है, और एक जुबानी वायदा लेते है की अब वह स्लिपर डिब्बे में बैठ सकते है। मुम्बई, पुणे इन स्टेशनोंपर, प्लेटफॉर्म्स पर, गाड़ी के सामने खड़े होकर, द्वितीय श्रेणी के टिकट धारक अपना टिकट ले जा कर पेनाल्टी की परमिट साथ जोड़कर स्लिपर डिब्बे में ठूंस कर भर दिए जाते है। उत्तर भारत की ओर चलने वाली ट्रेनोंमें तो चेकिंग वाले जब गाड़ी अपने स्टार्टिंग स्टेशनोंसे छूटती है तब बाकायदा आवाज लगाते हुए आगे बढ़ते है, ” किसी की पेनाल्टी की रसीद बनानी है?”
यह जो भी कमाई रेलवे की हो रही है, इसका मर्म तो आपके समझ मे आ ही गया होगा। लेकिन इसका हर्जाना जिन यात्रिओंने 120 दिन पहले कन्फर्म टिकट लिया है या ज्यादा प्रिमियम, पैसा खर्च करके तत्काल या प्रिमियम तत्काल टिकट खरीद कर अपना बर्थ कन्फ़र्म किया है वह क्यों भुगते? क्या इसके लिए उन्होंने अपना टिकट आरक्षित करवाया है की वह अपनी ही बर्थ पर एडजस्ट हो कर यात्रा करें? बाथरूम इस्तेमाल करना हो तो दस बार सोचें की किस तरह जाया जाए? कुछ तस्वीरें हम आज यहाँ पर पोस्ट कर रहे है। देखिए और सोचिए क्या और कैसे यात्रा करें स्लिपर के अधिकृत यात्री।



हम रोजाना रेलमंत्रीजी को ट्वीट कर रहे है, स्लिपर डिब्बों की समस्या से निजात दिलाए। PRS में मैन्युअल वेटिंग टिकट बन्द करें। स्लिपर डिब्बे में एमिनिटीज स्टाफ़ हमेशा मौजूद रहे ताकी अनाधिकृत प्रवेश पर अंकुश हों। स्टेशनोंपर स्लिपर डिब्बों की पेनाल्टी बनाना बन्द करें और अनाधिकृत यात्रिओंको दण्डित करने के बाद डिब्बे से हटाया जाए न की उसी डिब्बे में यात्रा करने दिया जाए।
सबसे अहम बात, आख़िर ऐसा कौनसा लॉजिक है जो रेलवे प्रशासन 500-600 वेटिंग लिस्ट टिकट जारी करती है? रेल प्रशासन से हमारा दावा है, किसी सूरत में यह टिकट कन्फर्म नही होती है तब कौनसे आधार पर इतने वेटिंग टिकट जारी किए जाते है? क्या रेल प्रशासन इन वेटिंग धारकोंको अलग डिब्बे मुहैया करानेवाली होती है या अलग गाड़ी छोड़ने वाली होती है? क्या यह रेल प्रशासन की मालप्रक्टिस नही है? RAC टिकट तक ठीक है मगर वेटिंग लिस्ट टिकट देना भारतीय रेलवे ने बन्द कर देना चाहिए।
Station photo credit : Manoj Soni, train photo credit : @saratmouli
