संक्रमण काल से ही रेलवे का रुख कुछ अजीब सा हो चला है। कहा जाता है, की यह सब शून्याधारित समयसारणी के तहत किया जा रहा है। मगर यह कौनसा न्याय है, की रेलवे स्टेशन हो और कोई भी यात्री गाड़ी ठहरती न हो?
यूँ तो सारे देशभर की सवारी गाड़ियोंको भारतीय रेल ने मेल/एक्सप्रेस श्रेणी में बदलकर रख दिया है, जो किसी भी सूरत में मेल/एक्सप्रेस की औसत गति में नही चलती। चूँकि उन्हें रेल प्रशासन जबरन मेल/एक्सप्रेस बोलता है तो कुछ तो एक्सप्रेस जैसी लगे इसलिए मार्ग के छोटे छोटे स्टेशनोंकी बलि दे दी गयी है। चलिए, उदाहरण के लिए हम मध्य रेल के भुसावल मण्डल की रूपांतरण की गई एक्सप्रेस गाड़ियोंको देखते है।
भुसावल – खण्डवा के बीच दो सवारी रूपांतरित मेल/एक्सप्रेस गाड़ियाँ चलाई जाती है। 11115/16 भुसावल इटारसी भुसावल और 11127/28 भुसावल कटनी भुसावल। अब हुवा यह है, की भुसावल से खण्डवा के बीच सारे स्टेशनोंपर रुकनेवाली सवारी गाड़ियाँ अपने नए नामकरण के बाद दुसखेड़ा, असीरगढ़ रोड, चांदनी, माण्डवा और बगमार इन स्टेशनोंपर नही रुक रही है।
भुसावल – देवलाली/इगतपुरी के बीच भी दो सवारी रूपांतरित मेल/एक्सप्रेस चलती है। 11113/14 भुसावल देवलाली भुसावल और 11119/20 भुसावल इगतपुरी भुसावल। यह गाड़ियाँ भी अब बदले रूप के बाद, लाहाविट, ओढ़ा, उगाँव, समिट, हिसवाहल, पाँझण, पिम्परखेड़, वाघली इन स्टेशनोंपर नही रुकती।
भुसावल बडनेरा/वर्धा के बीच भी दो सवारी रूपांतरित मेल/एक्सप्रेस चल रही है। 01365/66 भुसावल बडनेरा भुसावल विशेष मेमू और 11121/22 भुसावल वर्धा भुसावल। इन गाड़ियोंमे से बडनेरा मेमू तो सिवाय टाकळी स्टेशन के सभी स्टेशनोंपर रुकती है मगर 11121/22 वर्धा एक्सप्रेस आचेगांव, युवलखेड, टाकळी, टिमटाला, मालखेड़, डिपोरे, तलनी और कवठा इन स्टेशनोंपर नही रुकती।
अब तक तो हम ब्यौरा दे रहे थे, अब समस्याओं से अवगत कराते है। मित्रों, बरसों तक इन स्टेशनोंपर रेल व्यवस्था थी जो अब अचानक बन्द कर दी गयी है। क्या रेल प्रशासन इन स्टेशनोंको बन्द करने जा रहा है? क्या इन स्टेशनोंके यात्री जो कभी भी मेल/एक्सप्रेस रुकवाने का आग्रह नही करते थे, अब दिन भर में दो, चार गाड़ियाँ शहर से सम्पर्कता बनाये रखती थी उससे भी हाथ धो बैठेंगे? क्या गांव के किसान शहर जाने हेतु सड़क मार्ग से ही जाए, स्कूल, कॉलेज पढ़ने वाले विद्यार्थियों को सड़क मार्ग ही अपनाना पड़ेगा, लम्बी रेल यात्रा के लिए भी पहले सड़क मार्ग से जा कर किसी बड़े जंक्शन से गाड़ी पकड़नी होगी?
एक बात समझकर चलिए, सवारी गाड़ियोंके किराये जो मेल/एक्सप्रेस के रूपांतरण के बाद हवा हो गए है, उसके लिए कोई गाँव के लोग शिकायत नही कर रहे है, अपितु शुरवाती दिक्कत तो ठहराव को लेकर है और मित्रों इस विषय पर सारे ग्रामीण बेहद आक्रोशित है, खुद को बड़ा ठगा सा महसूस करते है। मंझौले स्टेशनोंके यात्रिओंने तो आंदोलन कर, राजनीतिक दबाव ला ला कर अपने ठहरावोंको प्रायोगिक तौर पर ही सही लेकिन शुरू तो करवा लिए है, मगर इन छोटे स्टेशनों के गिनेचुने यात्रिओंकी कहाँ और कौन सुनवाई करें?
रेल प्रशासन आखिर चाहती क्या है?
