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रेल गाड़ी पटरी पर चलती है? ना! ना जी, वह तो आजकल जुर्माने की रकम पर चलती है।

20 जून 2023, मंगलवार, आषाढ, शुक्ल पक्ष, द्वितीया, विक्रम संवत 2080

“क्या कह रहे हो?” चौंकना स्वाभाविक है। हम रेल विभाग के आय की बात कर रहे है। किसी भी संस्थान को सुचारू रूप से चलने के लिए उसकी नियमित आय होना आवश्यक है। और रेलवे की आय मालगाड़ियोंसे आती है यह भी सभी जानते है। क्योंकी यात्री टिकट अनुभाग से आय का स्रोत उसे लगने वाली लागत भी बमुश्किल निकाल पाता है। किसी जमाने मे वातानुकूल वर्ग की बुकिंग से होनेवाली आय, उसकी लागत से बेहतर थी मगर वह भी अब डंगड़ंग हो गई है।

दूसरा मुख्य कारण है, रेल कोच संरचना में साधारण ग़ैरवातानुकूलित कोचों का लगातार कमी करना। भारतीय रेल यह हमारे देश की ‘नैशनल कैरियर’ मानी जाती है, देश की यातायात का प्रमुख साधन और इसमे यात्रा करनेवाले 75% यात्री साधारण वर्ग से आते है। ऐसी स्थिति में, साधारण वर्ग का द्वितीय श्रेणी टिकट लेकर रेल में चढ़ने वाला यात्री, जब अपने डिब्बे नदारद पाता है तो मजबूरन आरक्षित कोच में चढ़ने का प्रयत्न करता है। इसके आगे की अवस्था रेल के वाणिज्य विभाग से टकराने की होती है। टिकट चेकिंग रेल के वाणिज्यिक विभाग का काम है।

इस रेल वाणिज्यिक विभाग ने बीते वर्षोंमें अपनी नीति को खासा बदला है। यह लोग अब यात्रिओंकी देखभाल (एमीनिटीज़) में कतई विश्वास नही करते। द्वितीय श्रेणी तो गिनती में ही नहीं है, मगर स्लिपर और अब तो वातानुकूल थ्री टियर में भी बमुश्किल एमिनिटी स्टाफ़, टी टी ई अपने कर्तव्योंको निभाते मिलते है। कई बार तो ऐसे होता है, आपकी यात्रा पूर्ण हो जाती है, मगर आरक्षित टिकट की जांच ही नहीं हो पाती। तो क्या रेल के वाणिज्यिक विभाग से टी टी ई ग़ायब हो गए? नहीं, बल्कि रेल विभाग ने उन्हें वसूली भाई बना दिया है😊। फिल्मी बात परे रखें, रेल विभाग ने एमिनिटीज स्टाफ़ को पूर्ण 22 कोच की गाड़ी में महज 2 या 3 कर्मी तक सीमित कर दिया है। 7, 8 स्लिपर पर एक या दो कर्मी, 7, 8 वातानुकूल कोच में एक या दो सीनियर कर्मी बस! बाकी सारे कर्मी टिकट जाँच दल में और महीने की खासी रकम के निर्धारित लक्ष्य पर तैनात। यह लक्ष्य 1 करोड़, 1.5 करोड़ के आँकड़े छूने लग गए है। अच्छी वसूली को रेल प्रशासन गौरवपूर्ण (?) नजरिए से पुरस्कार, सन्मान, अवॉर्ड्स देकर नवाज़ती है।

किस तरह हो पाती है, इतनी रकम? क्या यात्रिओंने टिकट निकालना छोड़ दिया है? हजारों यात्रिओंसे करोड़ों रुपयों का दण्ड वसूला जाना इसमे गौरव कैसा यह तो टिकट बुकिंग अव्यवस्थाओं पर घनघोर शर्मिंदगी की बात है!

हाँ, हम बता रहे थे, दण्ड, जुर्माने की रकम बढ़ती बढ़ती करोड़ों में कैसे पहुंच जाती है? आजकल रेल आरक्षण मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। पहले ही ग़ैरवातानुकूलित कोच कम। उसमे एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति। यात्री कई गुना संख्याओं में। हजारोंकी संख्या में प्रतिक्षासूची के यात्री और उससे दुगुने साधारण टिकटधारक, इसके अलावा सीजन टिकट धारक, रेल कर्मी जो पास, ड्यूटी पास लेकर चल रहे है।

PRS रेल काऊंटर्स के छपे प्रतिक्षासूची के टिकट रद्दीकरण हेतु प्रस्तुत होते ही नहीं है। यह टिकटधारक मानकर चलते है, उन्होंने किराया चुका दिया है और उन्हें किसी स्थिति में रेल में आरक्षित कोच में यात्रा करनी है। अब टिकट जाँच दल इन्हें तथाकथित दण्ड, जुर्माना ₹250/- लगाकर आरक्षित कोच की तरफ रवाना कर देता है। दूसरे द्वितीय श्रेणी के टिकट धारक को जो प्लेटफार्म पर जाँच दलों के परमिट बाँटने के काऊंटर्स (?) लगा खड़े है, उनसे बाकायदा दण्ड की रसीद कटाकर आरक्षित कोच में यात्रा करने का फ़रमान लेकर चढ़ते है। मध्य रेल के आरंभिक स्टेशनोंपर, उत्तर और पूर्वी भारत की ओर जानेवाली सभी गाड़ियोंपर ऐसी पर्चियाँ काटने वाले रेल विभाग द्वारा पुरस्कार प्राप्त आदर्श आपको सरे आम दिखाई देंगे।

यात्रिओंके नज़र में सीधा हिसाब है। टिकट की झंझट नही, कभी भी स्टेशनपर जाएं, द्वितीय श्रेणी का टिकट खरीदें, बाबू से जुर्माने की पर्ची कटाए और बेख़ौफ़ रेल यात्रा करें।

रेल प्रशासन को पुरस्कार बाँटने से ज्यादा अपनी टिकट प्रणाली को सुधारने की जरूरत है। जुर्माने की रकम मामूली लगती है, आसान, सहज लगती है तो इसमे निश्चित है बढ़ोतरी की जरूरत है। महज जुर्माना वसूलने के बजाय सख़्त कानूनी कार्रवाई हो इस पर भी ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। PRS काऊंटर्स पर प्रतिक्षासूची टिकटोंका आबंटन स्थायी तौर पर बन्द होना चाहिए। मेल/एक्सप्रेस/सुपरफास्ट द्वितीय श्रेणी साधारण टिकटोको 2S आरक्षित सिटिंग में बदले ताकी यात्री की गाड़ी सुनिश्चित हो जाये। 500 किलोमीटर से ज्यादा के अनारक्षित टिकट बिल्कुल बन्द किये जायें, यह यात्री के लिए अमानवीयता है।

कुल मिलाकर रेल के वाणिज्यिक विभाग के टिकिटिंग, आरक्षण, एमिनिटीज, टिकट चेकिंग विभागोंमें आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। नहीं तो, “अन्धा पीसै, कुत्ता खावें” वाली गत तो रेल विभाग की बन ही चुकी है। बस एखाद बार आंतरराष्ट्रीय मानवतावादी संगठन की नज़र रेल्वेके लम्बी दूरी की अनारक्षित कोचों पर पड़ना बाकी रह गया है, फिर बची खुची भी लग पड़ेगी।

# अंततः एक बात उन आदर्श बन बैठे जाँच दल से भी कहूँगा, कुछ जुर्माने की पर्चियाँ काट कर जिन यात्रिओंको आरक्षित कोचों में लाद दिया जाता है, उस से महीनोंपहले आरक्षण करवाये हुए यात्रिओंपर कितनी बुरी बीतती है, कल्पना भी नही की जा सकती। अपनी बर्थ पर सोना, बैठना मुश्किल, शौचालय का उपयोग करना मुश्किल, भोजन करना, हर बात परेशानी भरी, पूरी यात्रा सुगमता से करना बहुत मुश्किल। ऊपर से हर स्टेशनपर उद्घोष चलता रहता है, “आपकी यात्रा सुखद एवं मंगलमय हो” क्या ख़ाक होगी, जब इस तरह के रेल कर्मी मेज़बान हो और इस तरह की उनकी नीति के हो?

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