16 अप्रैल 2024, मंगलवार, चैत्र, शुक्ल पक्ष, अष्टमी, विक्रम संवत 2081
आजकल भारतीय रेल का यात्री आरामदायक यात्रा के मद्देनजर, एकदम से बेसहारा और असुरक्षित हो गया है। यकीन न हो और हमारे बयान में इतनी सी भी अतिशयोक्ति लग रही हो तो किसी भारतीय रेल के रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाइए, जहाँ कोई मेल/एक्सप्रेस आनेवाली हो। गाड़ी पहले से ही खचाखच भरी होगी और दावा कर सकते है की किसी भी ग़ैरवातानुकूलित कोच में आपको पैर धरने तक की जगह नसीब नही होगी। यदि आरक्षण वातानुकूल कोच है किया हुवा है, तो मन्नत मांग लीजिए ताकी अपनी सीट पर सुगमता से पहुँच जाए।
यह आए दिन का माज़रा है। वैसे यह दिन रेलवे के भीड़भाड़ वाले दिन ही है मगर हमारी रेलवे की कार्यप्रणाली बताती है, बारह माह में नौ महीने भीड़ से भरपूर होते है। केवल फरवरी, मार्च एवं अगस्त महीने रेल रिकॉर्ड में ‘लीन पीरियड’ याने कम भीड़ वाला होते है। यूँ देखे तो, आजकल रेल विभाग द्वारा निर्देशित लीन पीरियड में भी आजकल गाड़ियोंमे आरक्षण नही मिल पाता। अब आरक्षित कोचों, फिर वह स्लिपर कोच हो या वातानुकूल थ्री टियर अवैध घुसपैठ क्यों होती है यह समझने का प्रयास करते है।

1: अमर्याद प्रतिक्षासूची के टिकटोंका आबंटन : रेल विभाग अपने ऑनलाईन IRCTC पोर्टल एवं PRS काउंटर पर छपे हुए आरक्षित टिकटोंकी बिक्री करता है। प्रत्येक गाड़ी में, गाड़ी के प्रारम्भिक स्टेशन से जनरल वेटिंग लिस्ट एवं RAC टिकट बुक होते है। इसके आगे कमसे कम 3 या 4 जगह PQWL पुलिंग कोटा और RLWL रिमोट लोकेशन टिकट के कोटे द्वारा टिकटोंका बुकिंग किया जाता है। RLWL में तो प्रतिक्षासूची ज्यादा लम्बी नही होती (करीबन 100 WL) मगर GNWL और PQWL में यही सूची अमर्याद होती है। 800, 900 WL भी दिख जाते है, जो बमुश्किल 5 से 10% कन्फर्म हो पाती है। जनरल WL में खाली स्लॉट्स देख कर भी सीटे भरी जाती है। इस बात की संभावना, आम तौर पर RLWL में नही होती और इसके चलते इस प्रतिक्षासूची मे कन्फर्म होने की सम्भवना न के बराबर होती है।
चूँकि IRCTC के ऑनलाईन टिकट चार्टिंग के बाद प्रतिक्षासूची में रह जाते है तो अपने आप कैन्सल हो कर धनवापसी, रिफण्ड सक्रिय हो जाते है। वहीं PRS के छपे टिकटों में यात्री के पास एक पूर्ण देय रकम का भले ही वह आखिर तक प्रतिक्षासूची मे रहा हो, टिकट होता है और उसके बलबूते वह अपनी रेल यात्रा पर निकल पड़ता है। यह ‘फुल्ली पेड़’ टिकटधारी यात्री इस बात को मानने को तैयार ही नही की वह आरक्षित कोच में अवैध यात्रा कर रहा है। चल टिकट निरीक्षक TTE की संख्या में कमी की वजह से यह प्रतिक्षासूची धारक जबरन आरक्षित कोचों में यात्रा करते पाए जाते है।
2: साधारण टिकटों की सहज और अमर्याद उपलब्धतता : आरक्षित टिकटोंपर रेल विभाग किसी हद तक अंकुश लगाती है मगर टिकट खिड़कियों पर सीधे उपलब्ध अनारक्षित टिकटों का क्या? यह चौबीसों घण्टे और अमर्याद संख्या में जब चाहों, जैसे चाहों उपलब्ध है। यह रेल टिकट, यात्री के लिए रेल यात्रा के सारे पर्याय खोल देता है। चाहें उस गाड़ीमे, जिस भी वर्ग में बन पड़े यात्री अपनी रेल यात्रा की शुरुआत कर सकता है, बशर्ते उसे गाड़ी पर मौजूद टिकट चेकिंग स्टाफ़ से सम्पर्क करना है, जगह की उपलब्धि समझना है और किराया डिफरेंस चुकाकर यात्रा करनी है। एकदम सहज नियमावली है। मगर आजकल अवैध यात्रा करने से पहले ही यात्री अपना दण्ड, पेनाल्टी बनवाकर सीधे आरक्षित कोच में जम जाते है। यह इतना सहज है, जैसे दरोगा को कह कर, पैनाल्टी पहले ही चुका कर डकैती करना। 😢 गाड़ियों के प्रारम्भिक स्टेशनोंपर, प्लेटफार्म पर टिकट चेकिंग स्टाफ़ मौजूद रहता है और आजकल टिकट चेकिंग के ऊँचे लक्ष्य निर्धारण के चलते यह असंवैधानिक कार्य बड़े धड़ल्ले से पूरा किया जाता है।
3 : गाड़ी की कोच संरचना का मानकीकरण : रेल विभाग ने यात्रिओंको हितों को बिना किसी संज्ञान में लिए विद्यमान मेल/एक्सप्रेस की कोच संरचना से ग़ैरवातानुकूलित कोचों को 60 से 80% कम कर दिया। किसी एक दिन अचानक जाहिर हो जाता है, आने वाले ARP एडवांस रिजर्वेशन पीरियड की तिथि से फलाँ गाड़ी की कोच संरचना बदल जाएगी। ग़ैरवातानुकूलित कोच जो फिलहाल 10 स्लिपर, 4 साधारण यह है, 2 स्लिपर और 2 साधारण रह जाएगी। संरचना में स्लिपर कोचों की जगह वातानुकूल कोच रहेंगे (उदा.12779/80 निजामुद्दीन गोवा एक्सप्रेस) क्या होगा? क्या हो रहा है? साधारण टिकट धारी यात्री जबरन वातानुकूल कोचों में, आरक्षित यात्रिओंकी जगहों पर बलपूर्वक यात्रा कर रहे है। आए दिन शिकायतें हो रही है और रेल प्रशासन हतबल होता दिख रहा है। क्योंकि उनके पास इस तरह की समस्याओं से निपटने की शायद कोई गाइडलाइंस, दिशानिर्देश नही है। गाड़ी चलते रहती है और यात्री शिकायत करते करते अपने गन्तव्य स्टेशन तक पहुंच कर अपनी सुखद, सुरक्षित (?) रेल यात्रा की राहत महसूस करता है।
4: कम अंतर चलनेवाली गाड़ियोंमे, पुराने कोच की जगह नए मेमू संरचना में गाड़ियोंका बदलना : रेल विभाग ने बीते 3, 4 वर्षों में कम अंतर की रेलगाड़ियों में बदलाव करने का निर्णय लिया। इन गाड़ियोंमे पुराने ICF कोचों की जगह नई आधुनिक मेमू गाड़ियाँ लाई गई। निर्णय बहुत अच्छा था मगर कुछ गड़बड़ी हो गई। मेमू गाड़ियोंमे कोच संख्या 4 के स्लैब में बढ़ती है। रेलवे ने अमूमन सभी मेमू गाड़ियोंमे 8 कोच की संरचना रखी जो पूर्वचलित ICF की 14, 16 कोचों की गाड़ियोंके मुकाबले बहुत अपर्याप्त साबित हुई। जहाँ ICF के साधारण कोच की मानक यात्री क्षमता 90 समझ आती है मगर सीटों के ऊपर लगें लगेज रैक/अपर बर्थ पर भी उतने ही यात्री यात्रा कर सकते है। अर्थात पुराने ICF साधारण कोच में भीड़भाड़ के दिनों में बड़ी सहजता, सुगमता से 150/180 यात्री बैठकर यात्रा कर लेते थे। याने 16 कोच की संरचना में अढ़ाई से तीन हजार यात्री। “विद्यमान स्टेनलेस स्टील मेमू के ट्रेन सैट में आठ कोच रहते हैं – दोनों छोर पर दो ड्राइविंग मोटर कोच (डीएमसी) जिसमें 55 यात्रियों के बैठने की क्षमता और 171 यात्रियों के खड़े होने की क्षमता (कुल 226 यात्री) है और छह ट्रेलर कोच (टीसी) जिसमें 84 यात्रियों के बैठने की क्षमता और 241 यात्रियों के खड़े होने की क्षमता (कुल 325 यात्री) है। इस प्रकार, इस स्टेनलेस स्टील मेमू रेक की कुल वहन क्षमता 2402 यात्रियों की है।” चूँकि यह कम अंतर की रेल यात्रा, उपनगरीय रेल यात्रा जितनी भी कम नही होती, जिनमे यात्री 10, 15 मिनटोंकी रेल यात्रा खड़े खड़े कर लेता है और ना ही उसके पास इन ग़ैरउपनगरिय यात्रिओंकी तरह यात्री सामान होता है। आम रेल यात्री भले ही मेमू गाड़ियाँ आधुनिक और तेज हो, आज के यातायात साधनोंकी माँग हो मगर पुराने ICF कोचों की ‘कम्फर्ट’ से दूर ही है। खैर, कालाय तस्मै नमः!
उपरोक्त प्रथमदृष्टया समस्याओं पर रेल विभाग किस तरह की उपाय योजना कर रहा है या कर सकता है! :
1: रेल विभाग को अपने आरक्षण प्रणाली में अमुलाग्र बदलाव करना होगा। 120 दिनों की ARP एडवांस रिजर्वेशन पीरियड को कम करना या लोकप्रिय गाड़ियोंमे क्रमशः घटाना या लम्बे अवधि में सीट बुकिंग के लिए अतिरिक्त राशि लगाना। इससे चार चार महीने पहले ही अनावश्यक रीति से सीटें अटका कर रखने वालों पर कुछ अंकुश आएगा।
2: आरक्षण कोटा को टप्पे टप्पे से उपलब्ध कराना। जैसे तत्काल, प्रीमियम तत्काल कोटे के लिए कुछ सीटे बचाए रखी जाती है, उसी भाँति 120 दिनों की ARP में आखरी माह में, आखरी सप्ताह में कोटे को बाँटना।
3: PRS काउन्टर से प्रतिक्षासूची के टिकट का आबंटन पूर्णतः तत्काल प्रभाव से रोकना, बन्द करना और आगे चलकर ऑनलाईन ई-टिकट में भी प्रतिक्षासूची टिकटोंको क्रमशः बन्द करना।
4: अनारक्षित टिकट पर डिस्टेन्स रिस्ट्रिक्शन अर्थात दूरी पाबंदी जारी करना। यह टिकट केवल 300 किलोमीटर की दूरी अर्थात 4, 5 घंटे की यात्रा के ही उपलब्ध कराए जाए। इससे लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे अनारक्षित यात्रा पर अंकुश लगेगा।
5: रेल विभाग अपनी विद्यमान मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंका वर्गीकरण करना चाहिए। मिक्सड कोच संरचना न हो। गाड़ियाँ दो प्रकार की बनाई जाए। पूर्णतः ग़ैरवातानुकूलित और पूर्णतः वातानुकूल। इससे उच्च वर्ग के कोचों का रखरखाव सुचारू तरीके से हो पाएगा।
6: प्रीमियम गाड़ियोंमे केवल आरक्षित, वातानुकूल कोच रहें। यह गाड़ियाँ सीमित स्टोपेजेस के साथ मुख्य टर्मिनल्स जैसे मुम्बई छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, मुम्बई सेंट्रल,के. एस. आर. बंगलुरू सेंट्रल, नई दिल्ली, चेन्नई सेंट्रल, हावड़ा इत्यादि स्टेशनोंसे अपनी सेवाएं दे और नॉन प्रीमियम गाड़ियाँ सैटेलाइट टर्मिनल्स से अपनी सेवाएं दे। इससे गाड़ियोंमे, स्टेशनोंपर अनावश्यक भीड़ से निज़ात मिल पाएगी। हालाँकि रेल विभाग ने इस पहलु पर काम शुरू किया है, मगर विद्यमान मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंको लेकर, उसकी कोच संरचना बदलने से बड़ी गड़बड़ी हुई है। रेल विभाग को चाहिए की उनकी कुछ विद्यमान से शुरू कर, मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंको क्रमशः आरक्षित करते हुए धीरे धीरे पूर्णतः आरक्षित गाड़ी में बदले और बाद में उन्हें पूर्णतः वातानुकूल रखना है या ग़ैरवातानुकूलित रखना है इस पर निर्णय ले।
मित्रों, यात्रिओंकी समस्याएं बहुत गम्भीर है। हम अपनी समझ और अनुभव से जो भी कुछ उपाय यहाँ बता रहे है, हो सकता है, रेल विभाग अपने प्रबुद्ध अफसरों, विचारवन्तों के उपाय योजनाओं से भिन्न हो या कमतर हो, उन्हें लागू करें या ना करें, कुछ और ही समाधान निकालें। मगर समस्या तो है और दिनोंदिन यह विकराल रूप धरते जा रही है। चेकिंग स्टाफ़ पर हमले, यात्रिओंके जानमाल का नुकसान भी होना शुरू हो गया है। आम रेल यात्री एक तो शिकायत नही करता, कर भी दें तो उसको अन्जाम तक पहुंचने तक डटा नही रहता। वह अंदर की अंदर कलपता है और यात्रा पूरी हुई, तो यात्रा दौरान हुई तकलीफों को वही भुला देता है। रेल विभाग में समस्याओं के निवारण हेतु सुरक्षा बल के जवान भी मौजूद रहते है मगर क्या वह इतनी संख्या में है, की किसी भी अधिकृत यात्री की रेल यात्रा सुखद, सुरक्षित और सुगम करा सकें?
