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‘स्मार्ट ट्रेन कन्सेप्ट’ अर्थात पुरानी ‘क्लोन ट्रेन’ : बोतल नई, दारू वहीँ

14 जुलाई 2024, रविवार, आषाढ़, शुक्ल पक्ष, अष्टमी, विक्रम संवत 2081

रेल प्रशासन ने बीते दिनों एक ‘क्लोन ट्रेन’ नामक संहिता में लोकप्रिय मेल/एक्सप्रेस श्रेणी की गाड़ियोंके समानांतर विशेष गाड़ी चलाने का प्रावधान किया था। यह ‘क्लोन’ गाड़ियाँ लोकप्रिय, भीड़-भाड़ वाली गाड़ियोंके लगभग 20, 30 मिनट पीछे चलती थी, स्टापेजेस भी समान होते थे। हाँ मगर किराए…! किराए विशेष दर से वसूले जाते थे।

हाल ही में, सोशल मीडिया में फिर यही ‘क्लोन ट्रेन’ को ‘स्मार्ट ट्रेन कन्सेप्ट’ के नाम से पुनर्जीवित करने की खबरें वायरल है। गौरतलब यह है, ‘स्मार्ट ट्रेन कन्सेप्ट’ में यह जोर देकर कहा गया है, इस गाड़ी की संरचना में ज्यादातर ग़ैरवातानुकूलित कोच रहेंगे। हालाँकि अभीतक किराए की बात साफ नही की गई है।

हम पूछते है, क्यों ‘क्लोन’ या ‘स्मार्ट’ ट्रेन्स लानी पड़ती है? रेल विभाग अपनी आरक्षण पद्धति पर काम क्यों नही करती, उसमे सुधार क्यों नही लाती? जिस गाड़ी का बुकिंग फुल्ल हुवा उसे आरक्षण की सूची से हटाना चाहिए, न की उसमे ही सैकडों प्रतिक्षासूची के यात्रिओंकी बुकिंग जारी रखी जाए। एक तरफ दनादन, बेशुमार प्रतिक्षासूची के टिकट जारी किए जाते है उसके बाद प्रति यात्री रद्दीकरण शुल्क वसूला जाता है। जिस में यात्री को यह तक नहीं समझ आता की उसकी टिकट कन्फर्म होगी भी या नही? फाइनली चार्टिंग के बाद जब उसे प्रतिक्षासूची क्रमांक ही नजर आता है। ई-टिकट है तो पैसा कट के रिफण्ड आ जाता है अन्यथा फिर काऊंटर्स पर जा कर रिफण्ड प्रोसेस कराना है।

इससे बेहतर है, रेल विभाग अपने अग्रिम आरक्षण की 120 दिनोंकी सीमाओं को भी घटाए, उसे 30 दिनोंतक ले आए।

गाड़ी छूटने की तिथि से 30 दिन पूर्व से लेकर 7 दिन पूर्व तक किसी भी तरह के बदलाव के लिए टिकट मूल्य के 50 से 75% तक शुल्क लगाया जाए। जैसे की यात्री के नाम मे बदलाव या रद्दीकरण। इससे आरक्षित रेल टिकटोंकी कालाबाजारी करने वालों पर खासा अंकुश लगेगा। यह लोग धड़ल्ले से 120 दिन पहले आरक्षण कराते है। 7 दिन पहले से लेकर गाड़ी के चार्टिंग के समय तक और आगे के रद्दीकरण शुल्क यथावत रखे जा सकते है।

प्रीमियम तत्काल के कोटे को तत्काल कोटे से आधा कर के उस में से बची शयिकाओ को बीच स्टेशनोंके तत्काल कोटे में वर्ग करना चाहिए, भले तत्काल कोटे के शुल्क को बढाना पडे।

प्रत्येक मेल/एक्सप्रेस श्रेणी की गाड़ियोंमे चार अनारक्षित कोच लाए जा रहे है। इसकी जगह क्रमशः इन अनारक्षित कोच को आरक्षित द्वितीय श्रेणी में बदला जाए। रेल विभाग द्वितीय श्रेणी अनारक्षित के असंख्य टिकट बेचती है, जिससे किसी विशिष्ट गाड़ी में यात्री संख्या का अंदाजा लेना बेहद जटिल काम हो जाता है और गाड़ी के प्रारम्भिक स्टेशन से शुरू होकर बीच मे रुकने वाले हरेक स्टेशन के लिए निरन्तर प्रक्रिया होती है।

मुम्बई से इटारसी के लिए जारी किए गए अनारक्षित टिकट धारक यात्री मुम्बई से चलनेवाली और इटारसी की दिशा में जानेवाली प्रत्येक गाड़ी में सवार होने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। वह यात्री मुम्बई से कल्याण, मनमाड, भुसावल तक जानेवाली किसी भी गाड़ी के अनारक्षित वर्ग में सवार हो सकता है। ऐसी स्थिति में रेल प्रशासन उस यात्री की मंशा को किस तरह समझ सकती है और किस तरह की सेवा मुहैय्या करा सकती है?

जब तक यात्री किस गाड़ी में मुख्यतः सवार होने जा रहा है यह आईडेन्टिफाई याने पहचाने नही जाता, स्वीकृत नही किया जाता तब तक कोई उसे किस तरह सेवा प्रदान कर सकता है? मुख्य मार्गोंपर एक के पीछे एक लगातार मेल/एक्सप्रेस गाड़ियाँ चलती है। जब तक यात्री को किसी एक गाड़ी के लिए नामित यात्री न समझा जाए प्रशासन उस गाड़ी की यात्री संख्या की गणना नही कर सकती। इसीलिए 90/100 यात्री क्षमता के अनारक्षित जनरल कोच में बहुतसी बार दुगुने/तिगुने यात्री ठूंसे रहते है तो कभी कोच बिल्कुल खाली भी रहते है। शायद पूर्वानुमान की कमतरता के चलते ही अनारक्षित विशेष या अनारक्षित जनसाधारण गाड़ियाँ अनियमित यात्री संख्या से चलती है और शायद इसी वजहों से अंत्योदय श्रेणी की कई गाड़ियोंको रद्द करना पड़ा।

अनारक्षित श्रेणी की गाड़ियाँ 200 से 500 किलोमीटर की रेल यात्राओंके लिए ठीक है। लम्बी दूरी की अनारक्षित रेल यात्रा इन दिनों, गाड़ियोंमे चलती बेतहाशा भीड़ को देखते हुए अमानवीयता करार दी जा सकती है।

रेल प्रशासन को चाहिए की यात्रिओंको क्रमशः आरक्षित रेल यात्रा की ओर मोड़े। उन्हें प्रेरित करें कि वह केवल आरक्षण कर के ही रेल यात्रा करें, न की लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे अनारक्षित कोच बढाना एवं लम्बी दूरी की अनारक्षित गाड़ियाँ चलाकर स्टेशनोंपर, गाड़ियोंमे यात्रिओंकी बेकाबू भीड़ को बढाने को उकसावा दिया जाए।

आगे ही रेल प्रशासन का विशेष गाड़ियोंके प्रति रवैया ‘अनशेड्यूल्ड ट्रेन’ का रहता है। आजकल की कोई भी परिचालित विशेष ट्रेन को देख लीजिए कमसे कम 75% विशेष गाड़ियाँ देरी से और बहुत ज्यादा देरी से चल रही है और जो करीबन करीबन समयपर चल रही है तो उनके समयसारणी में बहुत सारा लूज टाइमिंग दिया रहता है। डर है, कहीं रेल प्रशासन की यह ‘स्मार्ट ट्रेन्स कन्सेप्ट’ वाली गाड़ियोंका भी यही हाल न हो और यात्री इन मे बैठने से कतराए।

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