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क्या हम अब यह मान लें, की ग्लास आधा खाली भी है?

07 अगस्त 2024, बुधवार, श्रावण, शुक्ल पक्ष, तृतीया, विक्रम संवत 2081

हमारे अभ्यासवर्गों में, यह पानी से आधे भरी और आधी खाली ग्लास की प्रेरणात्मक कथा बड़ी प्रसिद्ध है। हमे सकारात्मक रहने हेतु हमेशा से ग्लास आधी भरी हुई है, इस पर ध्यान केंद्रित रखने की प्रेरणा दी गई है और इसी दृष्टिकोण के चलते हम लोग किसी भी परिस्थितियों से सामना करने या उससे पार जाने की शक्ति पाते है। लेकिन उसका क्या करें, जो आजकल हमे हर जगह सुनाई देते है, “हमारा तो भैया, ग्लास आधा खाली ही है।”

अब आप एक वायरल तस्वीर देखिए,

कैप्शन देखिए,

क्या लगता है?

मित्रों, आँकड़े या सांख्यिकी से कोई भी विचार बदले जा सकते है। 1 अगस्त, 2024 तक, भारतीय रेलवे प्रतिदिन 13,523 यात्री ट्रेनें और 9,146 मालगाड़ियां चलाती है। भारतीय रेलवे नेटवर्क आकार के हिसाब से दुनिया में चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है, जिसकी रूट लंबाई 42,000 मील से अधिक है।

मुद्दे की बात यह है प्रतिदिन 13523 यात्री गाड़ियोंमें से लगभग आधी से ज्यादा सम्पूर्ण अनारक्षित गाड़ियाँ है। हालाँकि इनमें से अस्सी फीसदी, उपनगरीय गाड़ियाँ है। मगर फिर भी यहॉं सांख्यिकी ने अपना उत्तर दे दिया। सांख्यिकी यह भी बताती है, लम्बे दूरी की गाड़ियोंमे आरक्षित आसनोंकी माँग अनारक्षित आसनोंसे ज्यादा है और इसके चलते आरक्षित कोच यात्री गाड़ियोंमे बढ़ते चले गए। गौरतलब यह भी है, द्वितीय श्रेणी या ग़ैरवातानुकूलित श्रेणी में सारे यात्री निम्न आय वाले ही होते है, ऐसा कदापि नही है। यदि गाड़ियाँ खाली चल रही है, तो हर एक भारतीय अपने पैसों की कीमत जानता है, और आवश्यकता के अनुसार ही टिकट खरीदता है। उसे अपनी यात्रा सुनिश्चित करनी है, आरामदायक करनी है, गन्तव्य पर पहुँचने के बाद तुरन्त कामकाज में जुट जाना है तो वह उस प्रकार की यात्रा को चुनता है। इसमे गरीब, धनी का भेदभाव नही है। हाँ अपवाद हर जगह मौजूद रहते है।

भारतीय रेल में यात्री संख्या बहुतायत में बढ़ी है, इसमे दो राय नही है। एक नीति के तहत लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे उच्च वर्ग के कोच अकस्मात बढ़ाए गए थे जिसे अब सुधार कर ग़ैरवातानुकूलित कोचों की संख्या को सुनिश्चित किया गया है। अब प्रत्येक सर्वसाधारण मेल/एक्सप्रेस/सुपरफास्ट श्रेणी की गाड़ियोंमे कमसे कम 10 याने आधे कोच ग़ैरवातानुकूलित रहेंगे और उसमे में भी लगभग आधी संख्या अनारक्षित कोच की रहेंगी। हालाँकि दो हजार से पाँच हजार किलोमीटर तक की यात्रा करने वाली इन लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे अनारक्षित टिकटों का बेचा जाना सर्वथा गलत ही है।

अनारक्षित टिकट केवल सिटिंग याने बैठक, सीट्स निर्धारित करते है और 8 से 10 घंटे से ज्यादा की यात्रा बैठकर करना यकीनन थकान भरी होगी। हम पहले भी इस विषय पर चर्चा कर चुके है। 500 किलोमीटर से ज्यादा की अनारक्षित टिकटों की बिक्री पर रोक लगनी चाहिए। द्वितीय श्रेणी अनारक्षित में ज्यादातर यात्री 200 से 500 किलोमीटर की यात्रा करनेवाले ही होते है।

भारतीय रेलवे को चाहिए की द्वितीय श्रेणी के साधारण कोच को भी 2S वर्ग की तरह आरक्षित बुकिंग शुरू करे। इससे यात्रिओंको निम्नतम आरक्षण शुल्क जो ₹15/- मात्र है, देकर अपनी सीट कन्फर्म करते आएगी और जो भी छोटी, बड़ी रेल यात्रा है सुगमता से करते आएगी। ‘हाई डेन्सिटी’ सघन यात्री मार्गों पर, पांच सौ किलोमीटर के दूरी की इण्टरसिटी, डेमू, मेमू गाड़ियाँ लाई जानी चाहिए। जिससे इन लम्बी दूरी के यात्री गाड़ियोंमे कम अन्तर के यात्रिओंका दबाव कम होगा।

कम अन्तर के लिए वन्दे-मेट्रो गाड़ियाँ लाई जा रही है। मगर फिर यह गाड़ियाँ वातानुकूल और मुख्य बड़े स्टेशनोंके बीच ही दौड़ाई जाएगी। हमारे देश मे छोटे शहरों, गावों में भी औद्योगिकरण के चलते रेल यातायात काफी बढ़ा है। सस्ते, सुगम और सुरक्षित यात्रा के लिए रेल को कोई अन्य पर्याय है भी नही। 100 से 300 किलोमीटर की यात्रा के मद्देनजर आम यात्रिओंके लिए डेमू/मेमू गाड़ियाँ ही उचित पर्याय है।

आशा है, जिस तरह हम ग्लास को आधा भरा देखने के आदि हो चुके है, रेल प्रशासन अपने सीमित संसाधनों के साथ यह सोचती न रहे। दिन भर में दो गाड़ियाँ अब ग़ैरउपनगरिय क्षेत्रोंके लिए पर्याप्त नही रह गई है।

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