23 सितम्बर 2024, सोमवार, भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, षष्टी, विक्रम संवत 2081
प्रथमदृष्टया भिन्न भिन्न प्रकार के ऐसे काम अपने देश मे हो रहे, जिन्हें आतंकवादी गतिविधियाँ करार दिया जा सकता है। कुछ भी गैर कृत्य ख़बरों में आया फौरन उसे ‘जिहाद’ का नाम जोड़कर देश के जनमत को समझा दिया जाता है, ‘हाँ, वही है जो आप के जहन में चल रहा है।’
लव, थूक, रेल कोई भी शब्द लीजिए आगे जिहाद जोड़ लीजिए और मान लीजिए की वही है और उन्हें प्रशासन पकड़ लेगा। मन बड़ा असहज होता है, आखिर चल क्या रहा है?
आए दिन रेल ट्रैक पर कॉन्क्रीट ब्लॉक, लोहे के टुकड़े, पत्थर मिल रहे है। गैस सिलेंडर मिला और हद हो गई, की बारूद भी मिला। हम चाहते तो, मीडिया में आई इन वारदातों की तस्वीरें यहाँ जोड़ सकते थे, लेकिन समझते है की इससे आम जनता में उद्विग्नता ही बढ़ेगी। प्रशासन यह खोजबीन में लगी है, इन वारदातों के पीछे कौन है और सोशल मीडिया, इसे रेल जिहाद का नाम देकर अलग समझाईशें सादर करते जा रहा है।
रेल हमारे भारतीयोंके जीवन का अभिन्न अंग है, हमारी यातायात का प्रमुख हिस्सा है और इस तरह इसके परिचालन में कोई बारबार बाधा, विघ्न ला रहा है तो यह बहुत भयावह, डरावनी स्थिति है। आज देशभर में, हर रोज, हजारों रेल गाड़ियोंके जरिए लाखों, करोड़ों लोग यात्रा कर रहे है। करोड़ों के मूल्य का मालवाहन किया जा रहा है। इस तरह रेल यातायात में शंका उत्पन्न की जाएगी तो यह बड़ी गम्भीर स्थिति है।
एक सर्वसाधारण बात है, गुनहगारी की जड़ अवैधता से उत्पन्न होती है। जमीनोंके अवैध कब्ज़े, अतिक्रमण, अवैध व्यवसाय यहॉं से असंवैधानिक कार्योंकी शुरवात होती है।
आप देशभर में कहीं भी देख लीजिए, सभी सार्वजनिक स्थानोंपर आपको हर तरह की अवैधता दिखाई देंगी। इसमे अतिक्रमण, अवैध व्यवसाय, अवैध विक्रेता, भिखारी ई. शामिल है। रेलवे परिसर इन सार्वजनिक क्षेत्र में अवैधता के लिए अग्रस्थान पर है।
रेल पटरी के आजूबाजू की जगह झुग्गी-झोपड़ी से पटी पड़ी है।
रेलवे स्टेशनों, रेल परिसर में आपको हर तरह के अतिक्रमण, अवैध कार्यकलाप रोजाना होते नजर आएंगे।
रेलवे स्टेशनों के बाहर वैध सम्पत्ति की कीमत लाखों करोड़ो में है मगर वही अतिक्रमित ठेले वाला महज 100, 200 रुपए रोज देकर बड़ी शान से अपने व्यवसाय, व्यापार चला रहा है।
रेलवे स्टेशन पर अपनी व्यवसायिक इकाई लगानी है, तो कई पापड़ बेलने पड़ेंगे, प्रशासन से लाइसेंस लेना, अन्न प्रशासन से सामग्री वैध करवाना इत्यादि और वहीं अवैध विक्रेता चलती ट्रेनोमे, बिना किसी लाइसेंस, वैध प्रमाणपत्र के चाय, नाश्ता, खाना यात्रिओंको खिलाकर धड़ल्ले से अपना पैसा बना रहे है। यहॉं न रेल प्रशासन कोई कार्रवाई कर रहा है न कोई स्थानिक प्रशासन इन्हें हटक रहा है।
जब ऐसी स्थितियाँ देखते है, तब सोचने में मजबूर हो जाते है, आखिर प्रशासन कहाँ है? रेल गाड़ियोंमे धड़ल्ले से अवैध विक्रेता अपना व्यवसाय कर हजारों रुपए कमा रहे है, यात्रिओंके आरोग्य से खिलवाड़ कर रहे है। कोई यात्री अवैध विक्रेता से चाय, नाश्ता, खाना कहा कर बीमार हुवा तो क्या रेल प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से हाथ झटक लेगा?
शहरोंमें पटरियों के निकट बनी अवैध बस्तियों से यह सारे अवैध कामकाज होते है। रेल प्रशासन के पास उनकी खुद की प्रोटेक्शन फोर्स है, बड़ा दल-बल है और प्रशासन यदि कड़ाई अपनाए तो सारे रेल परिक्षेत्र में यत्किंचित भी अवैध कामकाज नही किए जा सकते। स्थानीय प्रशासन को भी सार्वजनिक स्थानों के अतिक्रमण को कड़ाई से निपटने की आवश्यकता है। जिम्मेदारीयाँ सुनिश्चित की जानी चाहिए और निर्वाहन न हो तो कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
देश की जनता अब समझने और मान लेने के मूड में नही रह पाएगी। लोग अब कड़ी कार्रवाई का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे है।
