06 अक्टूबर 2024, रविवार, आश्विन, शुक्ल पक्ष, तृतीया, विक्रम संवत 2081
भारतीय रेल बीते 10, 15 वर्षोंमें अपने ढांचागत संरचना, चल स्टॉक आदि में तीव्रता से बदलते जा रही है। आधुनिक वन्दे सीरीज की तेज गाड़ियाँ, उन्नत चल स्टॉक अर्थात आधुनिक एल एच बी यात्री कोच, अत्याधुनिक सिग्नलिंग यंत्रणा, आदर्श स्टेशनोंपर लगी हुई उन्नत सेवाएं जैसे रैम्प युक्त फुट ओवर ब्रिज, बैटरी चलित प्लेटफार्म पर गाड़ी तक पहुंचने वाली गाड़ियाँ, लिफ्ट्स, एस्कलेटर, लाउंज इत्यादि
यह तो बीते वर्षों में भारतीय रेल में हुए उन्नत बदलाव हमे दिखाई दे रहे है, मगर दूसरी तरफ सर्वसाधारण रेल यात्री लगातार अपनेआप को कुंठित महसूस कर रहा है, भला ऐसा क्यों हो रहा है? क्या वजहें हो सकती है? आइए, समझते है।
संक्रमण तक भारतीय रेल सेवाएं नियमित और ठीक-ठाक अर्थात यात्रिओंके बिना किसी नाराजी या युँ कहे बिना किसी तक़रार के चल रही थी। थोड़ी बहुत शिकायतें थी मगर कोई बड़ा ऐसा नाराजी, परेशानी जैसा न था। फिर यह बदलाव कहाँ से शुरू हुवा? तो उसकी शुरुआत ZBTT शून्याधारित समयसारणी से हुई। छोटे छोटे स्टेशनोंके स्टोपेजेस रद्द किए जाना, सवारी गाड़ियोंका रद्द किया जाना और बाद में उन्हें मामूली से समय बदलाव कर एक्सप्रेस कर देना, नियमित एक्सप्रेस गाड़ियोंके समय मे भारी बदलाव करना जो डेली अप-डाउनर्स की दिनचर्या को बिगाड़ने वाला था। नियमित मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंकी कोच संरचना से द्वितीय श्रेणी के साधारण एवं स्लिपर श्रेणी के कोचोंकी अचानक ही कमी कर देना।
एक तरफ नियमित गाड़ियोंके यह असहनीय बदलाव और दूसरी तरफ प्रीमियम गाड़ियोंकी धड़ाधड़ उत्सवी लॉन्चिंग, सर्वसाधारण यात्रिओंको नागवार गुजरी। यात्रिओंकी निराशाओं, परेशानियों को विरोधी राजनीति ने बड़ी संजीदगी और अपनेपन से सींचा। फलतः सर्वसाधारण यात्री जो सुगबुगाहट कर रहा था खुल कर प्रकट होने लगा। नाराज़ी, विरोध पल-पल दिखाई देने लगा। रेल व्यवस्था अब सामान्य जन की सेवाएं संकुचित कर प्रीमियम, धनी यात्रिओंको प्राधान्य देने लगी है यह सिद्ध करने में लोकनेताओं (?) को सफलता मिली।
सामान्य रेल यात्री बेशक परेशान था और खुद को ठगा सा महसूस करने लगा था और जिस बात पर जल्द कोई निर्णय लिया जाना चाहिए था उसे जब पानी सर से ऊपर हुवा तब पुर्नस्थापित करना यह बात, पूर्व निर्णय सर्वथा गलत थे, इस पर मुहर लगा गए। लगभग 90 प्रतिशत रद्द किए गए स्टोपेजेस पुनर्स्थापित किए गए, सवारी गाड़ियोंके किराए पुनः बहाल किए गए, द्वितीय श्रेणी एवं स्लिपर कोचों की कठोरतापूर्वक कम की गई संख्या पुनः नियमित की गई।
क्या रेल प्रशासन द्वारा पहले लिए गए सारे निर्णय रद्द करने लायक ही थे या निर्धारित गति से जो बदलाव करने चाहिए थे या निर्णयों के साथ लाई जानी वाली वैकल्पिक, समांतर व्यवस्था का अमल में न ला पाना यह असहनीय गलती थी?
पुराने पारम्परिक आई सी एफ के कोच की जगह नए सुरक्षित, तेज गति और आरामदायक एल एच बी कोच में बदलना आवश्यक था। एक्सप्रेस गाड़ियोंको तो एल एच बी कोच शनै शनै मिल सकते थे मगर सवारी गाड़ियोंको तोनए सुसज्जित डेमू/मेमू रैक में बदलना था। कार्यक्रम तय तो हुवा मगर अचानक ही कोच फैक्टरीयों में मेमू रैक की जगह प्रीमियम गाड़ियों के निर्माण को प्रधानता दी गई और मेमू रैक निर्माण पिछड़ गया, फलतः सवारी गाड़ियोंमे जो अपेक्षित बदलाव होने थे वह नही हो पाए। सवारी गाड़ियाँ एक्सप्रेस तो बना दी गई मगर समयसारणी ज्यों की त्यों ही रह गई।
नियमित मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमे शून्याधारित समयसारणी के तहत बदलाव कर या रद्द कर नई यात्री गाड़ियोंके लिए स्लॉट्स बनाया जाना था। यह शून्याधारित समयसारणी का प्रमुख उद्देश्य था। अपेक्षाएं थी, नई मेल/एक्सप्रेस, मेमू या इंटरसिटी गाड़ियोंकी मगर वह तो नाममात्र, न के बराबर आयी और जो आई वह सब प्रीमियम गाड़ियाँ ही आती चली गई।
आज देश नए युग के साथ कदम से कदम मिला कर चल पड़ा है। छोटे बड़े सभी स्टेशनोंसे यात्री निकल पड़े है। 100, 150 किलोमीटर के रोजाना चलनेवाले रेल यात्री ग़ैरउपनगरिय क्षेत्रमें बड़ी आम बात है। 200 से 500 किलोमीटर के सप्ताहन्त के यात्री भी बढ़ गए है। यह यात्री पर्यटक नही है जो अपने टिकट मूल्य की परवाह न करे, यह यात्री अपने जेब पर टिकट की रकम को अपनी तनख्वाह से नापतौल करने वाला है। इस यात्री को वातानुकूलित या आरामदायक सेवा के लिए पैसा ज्यादा नही देना है और इसे द्वितीय साधारण या स्लिपर से सन्तुष्टि है। यह यात्री, भारतीय रेल का मूल यात्री है और बहुसंख्य है। रेल प्रशासन इसकी अनदेखी कतई नही कर सकता। आजतक यह था की यह यात्री किसी भी मेल/एक्सप्रेस में पग भर जगह मिल जाए तो अपनी यात्रा कर लेता था मगर जब नियमित गाड़ियोंमे जो अप्रत्याशित बदलाव हुए, बहुत सहज था यह यात्री परेशान, पीड़ित एवं निराश हुवा।
प्रीमियम गाड़ियोंके किराए, इस यात्री के जेब को नही पोसाते, फिर गाड़ी भले ही आकर्षक हो, उपयोगी हो। इन्हें चाहिए मेमू, डेमू, इण्टरसिटी गाड़ियाँ। यदि यह गाड़ियाँ अप-डाउन यात्रिओंकी माँग के अनुसार चलती है तो इन्हें नियमित लम्बी दूरी की मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंकी तरफ झाँकने तक की जरूरत नही होगी। प्रीमियम गाड़ियाँ जो 500 से 800 किलोमीटर की रेंज में चलाई जा रही है, वह कोई गलत नही है मगर 200 से 500 किलोमीटर की रेंज के यात्रिओंकी माँग को रेल प्रशासन अब सहानुभूति पूर्वक और प्रधानता से देखें। यह आज के वक्त की सख्त जरूरत, नितांत आवश्यकता है।
( उपरोक्त लेख में प्रकट किए गए विचार लेखक के निजी अभ्यास एवं अनुभव से उधृत है)
