16 फरवरी 2025, रविवार, फाल्गुन, कृष्ण पक्ष, चतुर्थी, विक्रम संवत 2081
कल नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक दर्दनाक हादसा हुवा। रेलवे स्टेशन पर हुई यात्रिओंकी भगदड़ में करीबन 18 मौते और 10 गम्भीर रूप से घायल हुए है। बताया जा रहा है, प्लेटफार्म क्रमांक 14 पर नामित गाड़ी का प्लेटफार्म बदलकर 16 किया गया, ऐसी उद्घोषणा की गई और यात्रिओंकी भगदड़ मच गई। प्लेटफार्म बदलाव के चलते भगदड़ में यात्रिओंकी जान जाने के ऐसे मामले पहले ही भारतीय रेल के इतिहास में दर्ज है, फिर भी इस तरह के हादसे हो रहे है। कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है!

प्रत्येक दुर्घटना के पीछे कहीं न कही अनुशासनहीनता यह कारण होता है। यहाँपर हर स्तर पर अनुशासनहीनता दिखाई देती है। रेल यात्रिओंमें अनुशासन की कमी होना यह सहज बात है। यह लोग प्रोफेशनल या भीड़ व्यवस्थापन में अनुभवी नही होते है। लेकिन रेल कर्मियोंका क्या, और वह भी देश की राजधानी का शहर, जहाँ भारतीय रेल का मुख्यालय रेल बोर्ड है, मण्डल और क्षेत्रीय कार्यालय है। तमाम आधुनिक सुविधाए है, दल, बल है जिससे हर आपदाओं से निपटने की क्षमता होनी चाहिए?
रेल विभाग ने इस हादसे की जाँच के लिए उच्चस्तरीय समिति की घोषणा कर दी है। जाँच होती रहेगी, तथ्य सामने आएंगे भी। लेकिन खुली आँखों से दिखाई देती है, लापरवाही और नाकारापन। उसका इलाज़ कब होगा?
किस तरह किसी एक ही प्लेटफार्म पर क्षमता से ज्यादा यात्री प्रवेश कर जाते है? किस तरह मिस-अनाउंसमेंट की जाती है? जहाँ सैंकड़ों CCTV कैमेरे लगे हो, और यात्री नियंत्रित नही किए जा सकते? आखिर किस तरह का व्यवस्थापन है?
हाल ही में, हमने प्रयागराज जंक्शन पर रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था पर बात कही थी। वहाँपर चप्पे चप्पे पर यात्री सुरक्षा हेतु रेल सुरक्षा बल के जवान तैनात है। यात्रिओंको बेहतरीन तरीक़े से नियंत्रित कर प्लेटफार्म पर छोड़ा जाता है। चौबीस घण्टे गाड़ियोंकी सटीक उद्घोषणा की जा रही है। गाड़ी आने के संकेत के साथ, अमूमन गाड़ी के प्लेटफार्म पर पहुँचने से 30 मिनट पहले, यात्रिओंको प्लेटफार्म पर जाने की सूचना दी जाती है। प्लेटफार्म पर भी गाड़ी प्लेटफार्म पर आकर रुकने तक सुरक्षा बल के जवान प्लेटफार्म के किनारोंपर खड़े रहते है, ताकि यात्री कहीं पटरी पर न गिरे। माना की भीड़ का केंद्र प्रयागराज है, मगर व्यवस्थापन में इतनी कुशलता तो होनी चाहिए कि बदलते हालातों को भाँप सके!
रेल विभाग सुरक्षा साधनों से परिपूर्ण रहता है। प्रत्येक स्टेशनोंके ‘फुटफॉल’ अर्थात यात्रिओंकी आवाजाही के आँकड़े इनके रिकॉर्ड में है। तदनुसार रेलवे स्टेशनोंपर बंदोबस्त भी मुहैया किया जाता है। उन्नत तकनीकों द्वारा भीड़ का आभास भी पता किया जा सकता है। स्टेशनोंके आहाते से ही प्लेटफार्म की भीड़ को नियंत्रित किए जाने की आवश्यक प्रतिक्रिया ‘फीडबैक’ ली जा सकती है। इतनी अद्यतन व्यवस्थाओंके बावजूद इस तरह के हादसे होना यह बड़ी लापरवाही को उजागर करता है।
यह प्रजातन्त्र है। यहाँपर प्रतिनिधित्व पर कामकाज चलता है। जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है, सरकारें बनती है। सरकार फिर प्रत्येक विभाग के लिए मंत्री के तौर पर अपना प्रतिनिधि बनाती है जो सम्बंधित विभाग से जनता के हितों के अनुसार काम करवाता है। क्या हमारा प्रतिनिधि अपना काम सम्बंधित विभाग से यथायोग्य तरीके से करवा पा रहा है? मित्रों, बड़ा गहन प्रश्न है।
