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पुणे का बदहाल रेल टर्मिनल स्टेशन; हड़पसर!

04 अगस्त 2025, सोमवार, श्रावण, शुक्ल पक्ष, दशमी, विक्रम संवत 2082

रेल प्रशासन अपने यात्रिओंके लिए क्या विचार करता होगा, उनके प्रति कितनी आस्था होगी यह हड़पसर टर्मिनल स्टेशन देखते ही आपको पता चल जाएगा।

Photo courtesy : indiarailinfo.com

पुणे मध्य रेलवे के पांच विभागीय मण्डल में से वर्ष 1996 में स्थापित सबसे नविनतम मण्डल है। छोटा सा रेल नेटवर्क इस मण्डल के अधीन आता है। राजकीय महत्वकांक्षा के चलते स्थापित इस मण्डल में यात्री सुविधाओं की स्थिती बहुत निराशाजनक है।

समूचे देश भर से पुणे के लिए गाड़ियाँ चलवाने के लिए रेल यात्रिओंकी माँग रहती है। पुणे शहर विद्या की नगरी तो है ही मगर बड़ा IT हब, बड़ा औद्योगिक शहर भी है। इसके चलते विद्यार्थियों, कारागिरों, मजदूरों, तकनीशियन और व्यवसायीयों की बड़ी आवाजाही यहां से होते रहती है। मगर इस मायने में पुणे रेलवे स्टेशन इतना सक्षम बना ही नही है। महज छह प्लेटफार्म का यह स्टेशन और सैकड़ों यात्री गाड़ियाँ। हालात यह होते है की पुणे स्टेशन पर प्लेटफार्म उपलब्धता की चाहत में कई गाड़ियाँ स्टेशन के बाहर या किसी निकटतम छोटे स्टेशन पर घण्टो बिता देती है।

अब जब ढेरों मुश्किलें लदती दिखाई देने के बाद, रेल और स्थानीय प्रशासन सैटेलाइट टर्मिनल, अतिरिक्त रेल लाइनों के जुगाड़ करने में जुट रहा है। इसका पहला फल, दौंड से पुणे के बीच, पुणे स्टेशन से महज 4 – 5 किलोमीटर पहले ‘हड़पसर’ स्टेशन को टर्मिनल स्थापित करने का जुगाड़ रेल प्रशासन ने लाया है।

हड़पसर रेलवे स्टेशन जिस पर बीते 3 वर्ष से टर्मिनल सुविधा निर्माण के काम चल रहे है, मगर आज तक पूरे नही हुए। यह ऐसा टर्मिनल स्टेशन है, जहाँ कोई यात्री सुविधा नही है। न ढंग के प्लेटफार्म, न उस पर कोई छत, न खान पान के स्टॉल और न ही लिफ्ट, एस्कलेटर, रेम्प। यहाँपर आपको कोई कुली नही मिलेगा। टर्मिनल स्टेशन के नामपर सुने से पड़े प्लेटफार्म के अलावा कुछ भी नही। यात्रिओंके लिए वेटिंग रूम या गाड़ी के इंतज़ार में बैठने के लिए पर्याप्त साधन भी नही, न ही कोई वाहन पार्किंग स्थल है। जिनका स्टेशन है वह रेल विभाग इतनी अनास्था दिखाएगा तो स्थानिक प्रशासन की सोचिए उन्हें तो और भी परवाह नही है। इस स्टेशन पर पहुँचने के लिए किसी तरह की कोई यथोचित व्यवस्था नही है।

इतनी बदहाल स्थिती में भी रेल प्रशासन ने यहाँपर लम्बी दूरी की गाड़ियाँ टर्मिनेट करना शुरू कर दिया है। दो प्रतिदिन गाड़ियाँ हड़पसर जोधपुर हड़पसर प्रतिदिन एक्सप्रेस एवं हड़पसर काजीपेट हड़पसर त्रिसाप्ताहिक एक्सप्रेस है और नई शुरू की गई रीवा साप्ताहिक एक्सप्रेस। युँ तो यहां से कई सारी विशेष गाड़ियाँ चलाई गई। लेकिन आम यात्री जानता है, विशेष गाड़ी को एक अतिविशेष दर्जा प्राप्त है, रेल प्रशासन की अनास्था का। इन गाड़ियों की बदतर समयसारणी और अनेकों अव्यवस्था पर एक अलग लेख बन जाएगा। मगर नियमित गाड़ियाँ वह भी लम्बी दूरी की हो तो उसके प्रति इस कदर बेपरवाह होना रेल प्रशासन को कदापि शोभा नही देता। लम्बी दूरी के यात्रिओंके पास ज्यादा लगेज, सामान होता है। उन्हें स्टेशन पहुंचने या निकलने के लिए ज्यादा समय भी लगता है। अभी बरसात का मौसम चल रहा है और आपके टर्मिनल स्टेशन पर पर्याप्त छत नही है। किसी टर्मिनेटिंग ट्रेन में सैकड़ों यात्री एक ही समयपर प्लेटफार्म से बाहर निकलने के लिए तैयार रहते है और आपका केवल एक सकड़ा सा पैदल पुल उपलब्ध है। किसी बुजुर्ग यात्री को सामान के साथ यात्रा करना हो तो इस टर्मिनल को फिलहाल उसे टालना ही बेहतर होगा।

चूँकि जोधपुर प्रतिदिन एक्सप्रेस भले ही हड़पसर स्टेशन का टर्मिनल उपयोग करती है मगर यह गाड़ी पुणे स्टेशन होकर आगे हड़पसर पहुंचती है। वहीं कोई गाड़ी दौंड से पुणे के ओर जाती है और हड़पसर में टर्मिनेट होती है जैसे की नई घोषित रीवा एक्सप्रेस या काजीपेट एक्सप्रेस, उन यात्रिओंके लिए गाड़ी का निर्माणाधीन टर्मिनल हड़पसर पर टर्मिनेट होना एक सज़ा से ज्यादा कुछ नही। युँ तो कहा जा रहा है, रेल विभाग एकसौ पैंतीस करोड़ रुपए खर्च कर हड़पसर रेल टर्मिनल का पुनर्निर्माण करा रही है। कार्य जारी है, और इस वर्ष के लगभग दिसम्बर में पूरा होने की आशा है।

रेल प्रशासन को आग्रह है, निर्माणाधीन टर्मिनल स्टेशन पर लम्बी दूरी की गाड़ियोंको टर्मिनेट करने पर पुनर्विचार करें। खास कर जब वहाँ पर बेसिक सुविधाए पर्याप्त संख्या में उपलब्ध न करा पा रहे हो।

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