29 अक्टूबर 2025, बुधवार, कार्तिक, शुक्ल पक्ष, अष्टमी, विक्रम संवत 2082
जैसे ही छुट्टियाँ, त्यौहार आते है, हमारा रेल विभाग विशेष गाड़ियोंको लेकर सक्रिय हो जाता है। अलग अलग व्यस्ततम रेल मार्ग छांटे जाते है और गाड़ियाँ घोषित कर दी जाती है। यात्री बेचारे जो नियमित गाड़ियोंमें अग्रिम आरक्षण नहीं कर पाते, इन विशेष सेवाओंके घोषित होने की प्रतीक्षा करते रहते है, उन्हें भी राहत की साँस आती है। चलो, एक और विकल्प उपलब्ध हुवा।
लेकिन क्या वाकई में यह विशेष सेवाएं यात्री के लिए अच्छा बेहतर पर्याय है? मेरा ख़्याल है, नही! यह वो पर्याय है, जिसे यात्री एक बार उपयोग कर लें तो दोबारा उसे एकदम अन्तिम विकल्प पर रखना चाहेगा। आप त्यौहारों के किसी भी दिन की ट्रेन्स पोजिशन जाँच लीजिए, ‘0’ क्रमांक से चलने वाली यह विशेष गाड़ियाँ आपको बेहिसाब देरी से चलती दिखाई देंगी। इसकी वजह है, इनका अनशेड्यूल्ड रहना। अनशेड्यूल्ड का अर्थ है, नियमित समयसारणी में सम्मिलित यात्री गाड़ियोंके अलावा चलाई गई गाड़ियाँ। इन गाड़ियोंकी समयसारणी बनी तो रहती है, मगर उन्हें रेल परिचालन में कतई प्राथमिकता (प्रायोरिटी) नही दी जाती। जो यह गाड़ी दो-तीन घण्टे पिछड़ गई तो समझ लीजिए की 2-3 से कब 12-13 घण्टे पिछड़ जाएगी आपको पता ही नही चलेगा।
अब यात्रिओंकी दिक्कत यह है, की नियमित गाड़ियोंमें आरक्षण पहले ही फुल्ल हो जाते है और यात्रा तो करना अनिवार्य है। मरता क्या न करता, ले लेते विशेष गाड़ियोंके आरक्षण। कमाल की बात यह है, अमूमन पुराने कोच, गाड़ियोंमें ऑन बोर्ड चेकिंग स्टाफ़, एमिनिटी स्टाफ का न रहना, खान-पान का कोच पेंट्रीकार नही रहना मगर किराए नियमित किरायोंसे तीस से चालीस प्रतिशत ज्यादा। जवाबदेही के मामलों में भी रेल ऍप से इन गाड़ियोंको नदारद पाया जाता है। कई बार तो यह समझ नही आता कि आनेवाली गाड़ी आज की है या बीते कल की। विशेष गाड़ियोंका यह हाल प्रति वर्ष समान रूप से जारी है।
विशेष गाड़ियोंमें यात्री उसकी समयसारणी देख कर आरक्षण कराता है। आरक्षण करना याने उक्त यात्री ने रेल विभाग के साथ उस समयसारणी के अनुसार यात्रा करने का अग्रिम किराया देकर अनुबन्ध किया है और यदि यह गाड़ियाँ बेहिसाब देरी से चल रही है तो क्या यह उस अनुबंध का उल्लंघन, ‘ब्रीच ऑफ कॉन्ट्रेक्ट’ की श्रेणी का अपराध नही है? जिन विशेष गाड़ियोंमें रेल विभाग यात्रिओंके लिए आरक्षण उपलब्ध करवाता है, कमसे कम उनका तो समयपालन ढंग से करना चाहिए। कहते है, जापान में गाड़ी चंद मिनिट भी देरी से चले तो रेल विभाग यात्रिओंसे क्षमा मांगता है। हमारे यहाँ भी आईआरसीटीसी की निजी सेवाओं में देरी से चलने वाली गाड़ियोंके लिए दण्ड के तौर पर यात्री को कुछ मुवावजा देने का प्रावधान किया गया था। लेकिन रेल विभाग के इस तरह के अनियंत्रित कारोबार के मद्देनजर वह बात आई-गई हो गई। विशेष गाड़ियोंको लेकर यदि इस तरह की धनवापसी का कोई प्रावधान होता तो शायद रेल विभाग को लेने के देने पड़ जाते।
रेल विभाग को चाहिए, इन विशेष गाड़ियोंके लिए एक अलग विभाग बनाकर, रेल परिचालन विभाग से उचित समन्वय बनाकर ही इनके समयसारणी की घोषणा करनी चाहिए। विभिन्न क्षेत्र और ढेरों स्टोपेजेस देकर बनाई गई यह गाड़ियाँ परिचालन विभाग के लिए मुसीबत बन जाती है। बजाए इसके की किसी दो मुख्य स्टेशनों को केंद्रित कर नॉनस्टॉप दुरन्तो की तरह तेज सेवाएं चलाना ठीक रहेगा। उदाहरण के तौर पर मुम्बई, पुणे एवं उधना से वाराणसी के बीच सीधी बिना किसी स्टोपेजेस की सेवाएं चल सकती है। इन्ही स्टेशनोंके बीच ज्यादातर यात्रिओंकी माँग रहती है। आगे इन स्टेशनोंके आसपास जोड़ने वाली कम अन्तर की कनेक्टिंग गाड़ियाँ जैसे वाराणसी से पटना या अन्य माँग वाले स्टेशनोंके बीच इन्टरसिटी टाइप गाड़ियाँ चल सकती है।
रेल विभाग को बिना किसी आपदा के, मार्ग में बारह, पंधरह घण्टे देरी से चलती यह विशेष गाड़ियाँ दिखाई देना लांछनास्पद नही लगता? जरा इन गाड़ियोंमें यात्रा कर रहे यात्रिओंको देखें, प्रीमियम किराए देकर बेचारे बेहाल, बदहाल रेल यात्राएं करते है। रेल प्रशासन को इन विशेष गाड़ियोंके परिचालन पर गम्भीरता से विचार करना आवश्यक है।
