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सारा खेल ‘डिमान्ड एन्ड सप्लाय’ का है, बाबू भैय्या!

29 नवम्बर 2025, शनिवार, मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, नवमी, विक्रम संवत 2082

भारतीय रेल में तत्काल टिकट खरीदने हेतु ‘ओटीपी’ ऑथेंटिफिकेशन का बन्धन लागू होगा

पश्चिम रेल ने इस प्रणाली को दिनांक 01 दिसम्बर 2025 से लागू करने का परिपत्र जारी कर दिया है। हालाँकि यह व्यवस्था फिलहाल केवल 12009/10 मुम्बई सेंट्रल अहमदाबाद मुम्बई सेंट्रल शताब्दी एक्सप्रेस तक मर्यादित रहेगी और उपयुक्त परिणामस्वरूप इसे तमाम तत्काल आरक्षण में लागू किया जाएगा। आइए, समझते है किस तरह होगी यह व्यवस्था।

यात्री जब तत्काल टिकट बुक करेगा तब उसके पंजीकृत मोबाइल पर उसकी सत्यता प्रमाणित करने हेतु एक ओटीपी, वन टाइम पासवर्ड प्रकट होगा, जिसे यात्रीको बुकिंग सिस्टम से साँझा करना होगा तभी उसके टिकट की कार्यवाही आगे बढ़ पाएगी। यह व्यवस्था रेलवे के पी आर एस अर्थात आरक्षण काउंटर्स, अधिकृत एजेन्टो, आईआरसीटीसी वेबसाइट एवं ऍप पर समान रूप से लागू की जाएगी। भारतीय रेल का यह मानना है की इस व्यवस्था से तत्काल टिकट बुकिंग में सम्पूर्ण पारदर्शिता रहेगी।

दरअसल यह सारा खेल माँग और आपूर्ति में निर्माण हुए असमानता के चलते होता है।

हमारे देश मे केवल भारतीय रेल ही ऐसा सार्वजनिक परिवाहन है जो चन्द पैसे प्रति किलोमीटर से यात्रा उपलब्ध कराता है। हजारों किलोमीटर की सीधी सम्पर्कता, सुरक्षित एवं समयबद्ध यात्रा की निश्चितता यह हमारे रेल विभाग की पहचान है। मगर इसके साथ ही यह व्यवस्था अत्यंत किफायती भी है। ग़ैरवातानुकूलित यात्री किराए महज 25 से 40 पैसे प्रति किलोमीटर में उपलब्ध है। इसी ग़ैरवातानुकूलित कोच के आरक्षित टिकट के लिए भी यात्री को महज 50 पैसे प्रति किलोमीटर खर्च लगता है। ऐसे में रेल टिकटों की माँग किसी भी अन्य परिवाहन साधनोंसे कई ज्यादा रहना अत्यंत स्वाभाविक है।

वातानुकूलित श्रेणियोंमें भी यात्री किराए अन्य साधनोंसे किफायती ही है। लगभग 130 पैसे वातानुकूलित थ्री टियर तो टू टियर में 190 पैसे प्रति किलोमीटर किराया लगता है। यह साधारण बुकिंग्स चार्जेस है और तत्काल श्रेणी के लिए इन किरायों में लगभग 10 पैसे और जोड़ लीजिए, बस!

अब होता यह है की एक अनार और सौ बीमार! 40, 50 शायिकाओ के लिए उसके हजारों गुना यात्री कोशिश करते है। अर्थात एक प्रतिशत परिणाम के लिए यह जद्दोजहद होती है। इतनी अधिक माँग के चलते यात्री, और इतनी भागदौड़ के बाद भी असफलता हाथ लगती है तो सहज ही वह दलालों के चक्करों में आ जाता है।

रेल विभाग चाहता है, प्रमाणित यात्रिओंको टिकट मिलें और इसके लिए वह गैरकानूनी रूप से काम करने वालों पर कार्रवाई भी करते रहते है। कुछ लोग अलग अलग एप्लिकेशन बनाकर रेल आरक्षण सिस्टम में गड़बड़ झाला कर टिकटें बनाते है। उन्ही पर शिकन्जा कसने हेतु रेल विभाग इस तरह के बैरियरों को लाता है, ताकि सही व्यक्ति को टिकट मिले।

रेल विभाग का उद्देश्य तो सही है मगर गेँहू के साथ घुन भी पिसते है। अर्थात परेशानी अच्छे और बुरे दोनों का साथ भुगतनी होगी। ओटीपी आए जब तक कहीं सीट न निकल जाए। कई बार कमजोर नेटवर्क के चलते ओटीपी नही आया या लेट आया तो ‘मौका, मौका… ‘ गया।

कुल मिलाकर यह है, खरीददार कतारें लगाए खड़े है और विक्रेता है की सबको मिले इसलिए अड़ंगे लगा रहा है। चूँकि भारतीय रेल सार्वजनिक क्षेत्र से है और अपना प्रॉडक्ट बेचने से ज्यादा उसके वितरण में अपनी सामाजिक दायित्वता निभाने में पिसा जा रहा है। किराए बढाने नही दिए जाते इसलिए गाड़ियोंमें श्रेणियां वही केवल नामोंके वर्गीकरण से आसनोंके किराए बढ़ा दिए जाते है। उदाहरण देखे तो वातानुकूलित थ्री टियर संरचना वाली हमसफ़र एक्सप्रेस या साधारण द्वितीय श्रेणी की अंत्योदय, जनसाधारण एक्सप्रेस।

अब भारतीय रेल को अन्य परिवाहनोंसे अपने किरायों की तुलनात्मक जाँच पड़ताल करना और उन से समानता लाने की आवश्यकता है। किरायों को बढ़ाना चाहिए, खासकर ग़ैरवातानुकूलित श्रेणियों में किराए बहुत ही नाममात्र है। यह एकदम से कहना ग़ैरवाजिब हो सकता है, मगर कुछ तो बढ़ोतरी अवश्य होनी चाहिए। चूँकि तत्काल, प्रीमियम तत्काल यह आरक्षण मिलने के चांसेस बढ़ाता है, तो इस प्रकार के लिए रेल विभाग ज्यादा किराए बढ़ा सकता है। हाँ लेकिन यह इस टिकटोंकी मारामारी का हल तो कदापि नही होगा लेकिन ज्यादा शुल्क होने से यात्रिओंका ध्यान अन्य परिवाहनों पर जा सकता है।

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