27 दिसम्बर 2025, शनिवार, पौष, शुक्ल पक्ष, सप्तमी, विक्रम संवत 2082
प्रमुख शहरों में कोचिंग टर्मिनलों का विस्तार यात्रियों की बढ़ती मांग को पूरा करने, भीड़भाड़ कम करने और राष्ट्रव्यापी संपर्क सुविधा में सुधार लाने के लिए किया जाएगा: रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव
व्यस्त स्टेशनों पर यातायात सुगम बनाने के लिए क्षमता वृद्धि के लाभों को प्राप्त करने हेतु क्षेत्रीय रेलवे से अल्पकालिक और मध्यम अवधि के उपायों की मांग की गई है।
यात्रा की मांग में लगातार हो रही तीव्र वृद्धि को देखते हुए, अगले 5 वर्षों में प्रमुख शहरों की नई रेल गाड़ियों के संचालन की क्षमता को वर्तमान स्तर से दोगुना करना आवश्यक है। आगामी वर्षों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वर्तमान बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा। वर्ष 2030 तक संचालन क्षमता को दोगुना करने के लिए निम्नलिखित कार्य शामिल होंगे:
i. मौजूदा टर्मिनलों को अतिरिक्त प्लेटफॉर्म, स्टेबलिंग लाइन, पिट लाइन और पर्याप्त शंटिंग सुविधाओं से सुसज्जित करना।
ii. शहरी क्षेत्र में और उसके आसपास नए टर्मिनलों की पहचान और निर्माण करना।
iii. मेगा कोचिंग कॉम्प्लेक्स सहित रखरखाव सुविधाएं।
iv. विभिन्न स्थानों पर रेल गाड़ियों की बढ़ती संख्या की व्यवस्था करने के लिए यातायात सुविधा कार्यों, सिग्नलिंग उन्नयन और मल्टीट्रैकिंग के माध्यम से अनुभागीय क्षमता में वृद्धि करना।
टर्मिनलों की क्षमता बढ़ाने की योजना बनाते समय, टर्मिनलों के आसपास के स्टेशनों को भी ध्यान में रखा जाएगा ताकि क्षमता में संतुलन बना रहे। उदाहरण के लिए, पुणे के लिए, पुणे स्टेशन पर प्लेटफॉर्म और स्टेबलिंग लाइनों को बढ़ाने के साथ-साथ हडपसर, खड़की और आलंदी स्टेशनों की क्षमता बढ़ाने पर विचार किया गया है।

उपरोक्त प्रक्रिया उपनगरीय और गैर-उपनगरीय दोनों प्रकार के यातायात के लिए की जाएगी, जिसमें दोनों खंडों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाएगा। 48 प्रमुख शहरों की एक व्यापक योजना विचाराधीन है (सूची संलग्न है)। इस योजना में निर्धारित समय सीमा के भीतर रेल गाड़ियों की संचालन क्षमता को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नियोजित, प्रस्तावित या पहले से स्वीकृत कार्यों को शामिल किया जाएगा।
क्षमता को वर्ष 2030 तक दोगुना करने की योजना है, लेकिन यह आशा है कि अगले 5 वर्षों में क्षमता में क्रमिक वृद्धि की जाएगी ताकि क्षमता वृद्धि के लाभ तुरंत प्राप्त किए जा सकें। इससे आने वाले वर्षों में यातायात की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने में सहायता मिलेगी। योजना में कार्यों को तीन श्रेणियों, अर्थात् तत्काल, अल्पकालिक और दीर्घकालिक में वर्गीकृत किया जाएगा। प्रस्तावित योजनाएँ विशिष्ट होंगी, जिनमें स्पष्ट समयसीमा और परिभाषित परिणाम होंगे। यद्यपि यह अभ्यास विशिष्ट स्टेशनों पर केंद्रित है, प्रत्येक क्षेत्रीय रेलवे को अपने-अपने मंडलों में रेल गाड़ियों की संचालन क्षमता बढ़ाने की योजना बनाने के लिए कहा गया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि न केवल टर्मिनल क्षमता में वृद्धि हो, बल्कि स्टेशनों और यार्डों पर अनुभागीय क्षमता और परिचालन संबंधी बाधाओं का भी प्रभावी ढंग से समाधान किया जाए।
केंद्रीय रेल मंत्री, सूचना एवं प्रसारण मंत्री और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “हम यात्रियों की बढ़ती मांग को पूरा करने और भीड़भाड़ को कम करने के लिए विभिन्न शहरों में कोचिंग टर्मिनलों का विस्तार कर रहे हैं और अनुभागीय एवं परिचालन क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। इस कदम से हमारे रेलवे नेटवर्क का उन्नयन होगा और राष्ट्रव्यापी संपर्क सुविधा में सुधार होगा।”
यात्रिओंकी रेल यात्रा की मांग दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। तत्काल टिकटोंमे साधारण टिकट से लगभग 35 प्रतिशत ज्यादा किराया लगता है और प्रीमियम तत्काल में किराए तत्काल रेट से शुरू होकर जब तक जगह भर नही जाती तब तक हर बुकिंग के बाद बढ़ते ही चले जाते है। कई बार यह किराए सर्वसाधारण बुकिंग रेट से दुगुने, तिगुने हो जाते है। इसके बावजूद सभी बुकिंग चन्द मिनटों में फुल्ल हो जाती है। आखिर इसका क्या राज़ है?
इसकी वजह है रेलवे के नाममात्र किराए। मुम्बई – पुणे के बीच मेल/एक्सप्रेस साधारण श्रेणी के किराए मात्र 85/- रुपए है। जबकी मुम्बई पुणे शहरोंमें स्टेशन पहुँचने के लिए 2, 4 किलोमीटर टैक्सी, रिक्शा के इससे ज्यादा रुपए लग जाते है। मुम्बई से पुणे के बीच रोडवेज के किराए 250 रुपये से शुरू होते है। फर्क समझिए! वही वन्देभारत गाड़ी में टिकट आसानी से उपलब्ध है।
यात्री तत्काल टिकट भी ले लेगा तो रेलवे में सिटिंग के 125 रुपए लगते है। बताइए क्यों न हो रेलवे में भीड़? रही बात लम्बी दूरी की गाड़ियोंकी तो यह गाड़ियाँ सीमित होती है। विशिष्ट स्टेशन के लिए दिन भर में एखाद या दो। उसमे में भी सड़क परिवहन या हवाई यात्रा से रेलवे बहुत ही कम किराए लेती है, साथ ही गंतव्य तक की पहुँच, सुरक्षा एवं आराम में बेहतर!
अब उक्त परिस्थितियों में रेल विभाग अपनी क्षमता दुगुनी क्या तिगुनी भी कर ले तो भीड़ छंटनी नही है।
रेल प्रशासन को चाहिए की 250 से 500 किलोमीटर तक की इंटरसिटी/मेमू एक्सप्रेस गाड़ियाँ बढ़ाए और लम्बी दूरी की गाड़ियोंके स्टोपेजेस घटाए। इससे स्थानीय यात्रिओंका लम्बी दूरी की गाड़ियोंपर अवलम्बन कम होगा। ज्यादातर यात्री इसी अंतर तक की यात्रा करनेवाले होते है। लम्बी दूरी की गाड़ियोंमें प्रीमियम गाड़ियाँ छोड़ अन्य को सैटेलाइट टर्मिनल्स से चलाए। मुख्य टर्मिनल्स पर ज्यादा से ज्यादा स्थानीय गाड़ियाँ लाई जानी चाहिए। इन यात्रिओंको ज्यादातर स्टेशन पर वक्त नही बिताना होता है इसलिए यात्रिओंकी आवाजाही तेज गति से होती है और ट्रैफिक तेजी से क्लियर होता है।
रेल विभाग ने अपनी संचालन क्षमता बढ़ाने के लिए जो चार मदें तय की है, उस पर पहले ही उनका काम शुरू हो चुका है।
मुम्बई में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, लोकमान्य तिलक टर्मिनस, दादर, पनवेल, मुम्बई सेंट्रल, बान्द्रा टर्मिनस, जोगेश्वरी
पुणे में पुणे जंक्शन, हड़पसर, खड़की
नागपुर में नागपुर, इतवारी, अजनी
नई दिल्ली में नई दिल्ली, दिल्ली जंक्शन, आनन्द विहार, हज़रत निजामुद्दीन, दिल्ली सफदरजंग
बेंगलुरु में सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया टर्मिनल, बयापनहल्ली, बेंगलुरु कैंट
चेन्नई में चेन्नई सेंट्रल, चेन्नई एग्मोर, पेरंबूर
हैदराबाद में सिकन्दराबाद, काचेगुड़ा, चारलापल्ली
हावड़ा में कोलकाता, शालीमार, सांतरागाछी
इन्दौर में लक्ष्मीबाई नगर, डॉ आंबेडकर नगर
इत्यादि उदाहरण है।
अतिरिक्त प्लेटफार्म, स्टेबलिंग एवं पिट लाइनोंके लिए मौजूदा जमीन कम पड़ेगी अतः टर्मिनल्स पर बने लोको शेड, रेलवे दफ्तर, स्टाफ क्वार्टर्स को भी हिलाना पड़ सकता है।
सिग्नलिंग प्रणाली को उन्नत करने से दो स्टेशनोंके बीच के खण्ड में ज्यादा गाड़ियाँ चल सकती है।
कुल मिलाकर रेल विभाग भले ही यह कहे कि वह आने वाले पाँच वर्षोंमें गाड़ियोंके संचालन क्षमता बढ़ाएगी मगर उपरोक्त मदों पर उसने पहले ही काम शुरू कर उसका उपयोग भी ले रहे है। अब देखना यह है, और कितने नए टर्मिनल्स, लाइनें, स्टेबलिंग और पिट लाइनें नई बनेगी।
(उपरोक्त लेख pib.in के वार्तापत्र पर आधारित है)
